Saturday, 22 August 2015

हरयाणा में पंच/सरंपच/नगर निकाय चुनाव और शैक्षणिक योग्यता!

मैं निडाना नगरी जिला जींद हरयाणा का सपूत हूँ| मेरे गाँव की "खाप-खेत-कीट पाठशाला" अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है| मेरे गाँव और गुहाँडों में एक-एक किसान ऐसा है जो फसलों के सैंकड़ों कीटों का बायोलॉजिकल ज्ञान से ले उनके गुण-चरित्र, फसलों में उनकी लाभ-हानि की सारी बातें आपको फिंगर-टिप्स पे बता देगा| एक हिसाब से चलती-फिरती डिक्शनरी हैं मेरे गाँव के किसान फसलों के कीटों की|

देश और राज्य के कृषि विभागों से ले तमाम जानी-मानी एग्रीकल्चर युनिवर्सिटियों के वैज्ञानिकों-प्रोफेसरों तक की आँखें शर्म से झुक जाती है (और वास्तविकता में झुकी भी हैं) जब वो इन किसानों के फसल कीट ज्ञान को देखते-सुनते और जांचते हैं तो| भारत की किसी भी एग्री-यूनिवर्सिटी में विरला ही कोई ऐसा वैज्ञानिक-प्रोफेसर होगा जो मुश्किल से दस कृषि कीटों पे आपको पेपर में पास होने लायक जानकारी भी लिख सके तो|

अमूमन ऐसा ही हाल सरकारी विभागों के कृषि कर्मचारियों और अफसरों का है, सिर्फ माननीय स्वर्गीय डॉक्टर सुरेंद्र दलाल जैसे प्रतिबद्ध व् कटिबद्ध अफसरों को छोड़ कर|

मेरे गाँव के किसानों के कीट ज्ञान बारे इतना तक दावा कर सकता हूँ कि अगर इन चारों के बीच यानी कृषि अफसरों, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि प्रोफेसरों और कृषि-कीट-कमांडो यानी कृषकों के बीच, परीक्षा की भाषा हिंदी रखते हुए और इनमें जो किसान अनपढ़ है उसको लिखने के लिए एक हेल्पर देते हुए फसल कीट ज्ञान विषय पर एक परीक्षा करवा दी जावे तो यह किसान 80% से 90% अफसरों-वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों से ज्यादा अंक अर्जित करेंगे|

तो क्या यह ज्ञान, ज्ञान नहीं, यह इतनी बड़ी समझ जो लाखों-लाख खर्च करके बनाये गए साइंटिस्ट-इंजीनियर-अफसरों को मात दे दे उनका ज्ञान सिर्फ इसलिए ज्ञान नहीं क्योंकि उनके ज्ञान पे किसी सरकार या कानून ने लाखों-लाख नहीं खर्चे? या तथाकथित स्वर्ण बुद्धिजीवियों में से किसी ने इसको इंटेलेक्ट की श्रेणी ही नहीं दी?
दूसरी बात जिंदगी में सिखाई जाती है कि पढाई के साथ कढ़ाई यानी मनुष्य का अनुभव बहुत जरूरी होता है| धीरू-भाई अम्बानी दसवीं पास भी नहीं थे परन्तु उनकी रखी नींव पे आज उनका वंश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक व् राष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप रखने वाला घराना कहलाता है| सचिन तेंदुलकर भी कोई बड़ी डिग्री नहीं रखते और ना रखती स्मृति ईरानी|

मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि किसान को अपनी नॉलेज को पहचान दिलवाने के लिए आंदोलन चलाना होगा तभी इन भीरु लोगों को यह समझ आएगी कि किसान तुमसे कितने बड़े ज्ञानी हैं| किसान को भी अपने इंटेलेक्ट पे लिटरेचर क्रिएट करना होगा, तभी यह लोग समझेंगे कि किसान कोई माँ के पेट से पैदा नहीं होता, तुम्हारी ही तरह पूरी जिंदगी खपानी पड़ती है एक किसान बुद्धिजीवी बनने में|

असल में गलती इनकी भी नहीं है, क्योंकि जब तक मनुवादी मति के लोग सरकारों में रहेंगे, यह किसी और के ज्ञान-अनुभव को स्थान देंगे ही नहीं| 

जय योद्धेय! - फूल मलिक

No comments: