An open letter to ‘Haryana Punjabi Swabhiman Sangh’:
मैं आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट लिख दूँ कि मैं बचपन से ही आप लोगों (हिन्दू अरोड़ा/खत्री समुदाय) को यदाकदा नादान व् अनभिज्ञ लोगों द्वारा 'रिफूजी' कह के सम्बोधित करने का विरोधी रहा हूँ और जहां-जहां मेरी पहुँच हुई मैंने ऐसे लोगों को ऐसा ना बोल आप लोगों को अपना भाई मानने की सदा वकालत की है| आपके समुदाय में मेरे बहुत अच्छे मित्र-बंधू भी है और सामाजिक सौहार्द के रिश्ते भी हैं|
परन्तु आप लोगों द्वारा कल से एक पत्र वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है कि पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान द्वारा वर्तमान सीएम हरयाणा को पाकिस्तानी मूल का कहने से आपको बड़ी आपत्ति हुई है| और आपने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर करने हेतु हरयाणा के तमाम जिला उपायुक्त दफ्तरों को पत्र लिखा है।
इससे पहले कि इससे और आगे बढूँ आपको इस पाकिस्तानी सम्बोधन बारे बचपन की कुछ यादें बता दूँ:
1) हरयाणा के हर दूसरे गाँव की भांति मेरे गाँव में भी 1947 के वक्त आपके समुदाय के कुछ लोग आ कर बसे थे| जिनके साथ मेरे परिवार का बड़ा सहयोग, सद्भाव और तन्मयता का रिश्ता था| परन्तु फिर भी मेरी दादी जी मुझे दुकान से कुछ लाने को कहती तो कहती कि वो पाकिस्तानियों वाली दूकान पे जाना वहाँ यह चीज मिल जाएगी|
2) आप सब तो यह जानते ही होंगे कि आप लोग 1947 से दुपहिया वाहनों पर हरयाणा के गाँव-नगरियों में कपडा-लत्ता बेचने जाते रहे हो| हमने बचपन से औरतों के जिक्रों में जब भी यह बात आती कि 'आएं बेबे यु किस्तें लिया' तो लेने वाली जवाब देती 'ए बेबे फलाना पाकिस्तानी दे गया था, तू कहवै तो तेरी खातर और मंगवा द्यूं!'
3) 'रिफूजी' शब्द का तो खैर मैं मेरी जिंदगी के शुरू दिन से ही विरोधी रहा हूँ, परन्तु स्कूलों-कालेजों में नादान बच्चे आज भी इसक प्रयोग कर लेते हैं|
मुझे नहीं पता आप लोगों को अपने पाकिस्तानी मूल का होने की पहचान को छुपाने की आज एकदम से कैसे और क्या जरूरत आन पड़ी|
खैर अब आता हूँ कल के आपके खत पर|
आज जब बात इस हद तक बढ़ गई कि एक जाट को सीएम साहब के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी तब जा कर आप बोले? इससे पहले जब निम्नलिखित बयानबाजियों और कार्यवाहियों की डेवलपमेंट हो रही थी, तब आप क्यों नहीं बोले?
क्यों आपने इन निम्नलिखित हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों को इनके जाट व् खाप विरोधी बयानों और स्टेण्डों बारे सामाजिक अथवा कानूनी स्तरों पर टोका नहीं? क्यों इनको इनकी हरकतों पे जाट समाज से माफ़ी बारे नहीं कहा? क्यों नहीं इन लोगों को आपने कहा कि आप लोगों की हरकतें सामाजिक तानाबाना बिगाड़ रही हैं इसलिए आप लोग अपनी हरकतों, बयानों के लिए माफ़ी मांगे? आप लोगों को आज जब खुद पर पड़ी तो मानसिक उत्पीड़न नजर आ गया और जाट समाज के खिलाफ आपके समाज के लोग 2005 से तो आधिकारिक यहां तक कि कानूनी तौर पर भी जो उत्पीड़न करते आ रहे हैं वो नजर नहीं आया? मतलब आपका उत्पीड़न, उत्पीड़न और हमारा उत्पीड़न मजाक या चुटकी?
आप लोग इन लोगों पे भी असल तो ऐसे ही राजद्रोह के मुकदमों की सिफारिस करें अथवा इनसे जाट व् हरयाणवी समाज के सन्मुख माफ़ी मंगवाएं|
1) हरयाणा सीएम श्रीमान मनोहर लाल खट्टर ने अभी हाल ही में एक के बाद एक दो बयान दिए, एक में कहते हैं कि 'डंडे मार के हक छीनने वाले लोग' व् दूसरा अभी गोहाना में दिया कि "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!"
अगर आप लोग यह सोचते हो कि शब्दों की चालाकी की वजह से जनता उनके "डंडे मार के हक छीनने वाले लोग" बयान को नहीं समझेगी तो यह आपकी बहुत बड़ी गलत-फहमी है, क्योंकि सार्वजनिक बयान मौका-स्थिति और माहौल देख के समझे जाते हैं| और इस वक्त मौका है जाट आरक्षण का, स्थिति है जाटों को 'लठ तंत्र' वाले बताने की और माहौल है आरक्षण पे पुनर्विचार का| इसलिए नादाँ से नादाँ भी सीएम के इस वक्तव्य से वो किसपे निशाना साध के गए स्पष्ट पकड़ लेगा|
दूसरी बात शायद आप और सीएम साहब आजतक भी खुद को हरयाणवी नहीं मानते होंगे इसलिए आप लोगों को सीएम साहब के दूसरे बयान "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" में खुद उसी स्टेट के लोगों का अपमान नहीं झलका जिनके कि सीएम साहब मुखिया हैं? क्या है या भूतकाल में हुआ हो भारत में ऐसा कोई दूसरा सीएम जो अपने ही राज्यों के लोगों का इतना भद्दा मजाक उड़ाए?
तो क्या आप कल जैसा एक और ऐसा ही खत हरयाणा के तमाम जिला-उपायुक्तों को लिखेंगे, कि खट्टर साहब के खिलाफ भी उन्हीं के प्रदेश की पहचान पर ऐसे कटाक्ष करने के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो? अब कृपया यह दलील मत दीजियेगा कि सीएम साहब ने तो चुटकी लेते हुए हल्के अंदाज में कहा था| और अगर यही दलील है आपकी तो जब आप सीएम साहब के बयान को चुटकी में ले सकते हो तो फिर सांगवान साहब के बयान में क्या दिक्कत?
अब ऐसे में सांगवान साहब ने आपको 'पाकिस्तानी मूल' कहा तो लाजिमी सी बात है अपनी हरयाणवी पहचान पे वो भी सीएम जैसी पोस्ट पे बैठी सख्सियत की तरफ से ऐसा हमला कैसे सहन हो सकता था? मेरे ख्याल से आप जितने सेंसिटिव इंसानों को जब सांगवान साहब के बयान में मानसिक उत्पीड़न दिख गया तो सीएम साहब के बयान में भी दिख जाना चाहिए कि नहीं?
2) 2014 के चुनाओं के मौके पर पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने कब्जा कर उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? लेकिन हमने ऐसा कहना होता तो कब के मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर कह चुके होते|
खैर, मुद्दे की बात यही है कि श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी जी ब्यान में मानसिक उत्पीड़न क्यों नहीं दिखा? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
4) मई 2015 में जाट आरक्षण से आपको कोई लाभ-हानि ना होते हुए भी, आपका उससे कोई लेना-देना ना होते हुए भी आप लोग जाट आरक्षण के विरुद्ध आपके इसी मंच से धरना भी देते हैं और ज्ञापन भी? आपको विरोध करना था तो या तो सारे आरक्षण का करते, या आपको अपने लिए माँगना था तो सरकारों के आगे जा के अपनी मांग रखते, आपने यह जाट आरक्षण का ही विरोध क्यों किया?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे खुद आपके ही ऊपर राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
5) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उनसे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के आप लोगों ने इसको जाटों की तानाशाही बताया? मतलब आपके लोग हमारे समाज का ऐसे खुला मजाक उड़ावें और हम उसके खिलाफ आवाज भी उठावें तो तानाशाही?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
6) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाले आपके ही समुदाय के पंचकुला से श्रीमान साहनी साहब हैं| यह शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में एक अनोखा मामला होगा ऐसा मामला होगा, जिसमें यह जनाब एक या दो-चार व्यक्ति नहीं अपितु लाखों-लाख का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के खिलाफ ही जा खड़े हुए|
क्या आप लोगों ने टोका उनको कि किसी व्यक्ति-विशेष के खिलाफ बेशक शिकायत करो, परन्तु पूरी सामाजिक संस्था को कोर्ट में खड़ा करना सभ्यता नहीं? तब आपको नजर नहीं आया कि इससे जाटों और खापों का मानसिकत उत्पीड़न होगा?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
आज सीएम साहब के बयान पे किसी हरयाणवी का पलटवार हुआ तो आप लोगों ने जितनी जल्दी से उनकी जन्मतिथि व् जन्मस्थल की डिटेल्स निकाली, क्या कभी इतनी ही तन्मयता से अपने बच्चों को हरयाणवी सिखाई है? हरयाणत क्या होती है बताई और समझाई है? हरयाणत का मान-सम्मान क्या होता है कभी बताया है? मेरी सोशल मीडिया चैट्स में आज भी मेरे आपके समुदाय से जो मित्र हैं वो मुझे "और हरयाणवी", "और तुम्हारे हरयाणा में ये हुआ वो हुआ" जैसे वर्ड प्रयोग करते हुए शब्द दर्ज हैं| कईयों को तो मैंने कहा भी कि भाई आप रेस/नश्ल से बेशक हरयाणवी ना हों, परन्तु जन्म से तो हरयाणवी हो तो इसी नाते अपने आपको हरयाणवी कह लिया करो? और अब जन्म लेने मात्र से भी कोई हरयाणवी हो सकता है यह आपके ही द्वारा सिद्ध भी कर दिया गया जब आप सीएम साहब को सिर्फ जन्म स्थल के आधार पर हरयाणवी साबित कर रहे हैं| जबकि वही सीएम साहब ऊपर पहले बिंदु में बताये तरीके से हरयाणवियों की खिल्ली उड़ा रहे हैं|
जाट समाज अगर इतना ही उददंड होता तो आप लोगों को 1947 के बाद दोबारा से 1984-86 के दौर में जब आप पंजाब से भगाए गए थे तो फिर से अपने यहां की जीटी रोड़ बेल्ट पे बिना किसी अवरोध के बसने देता क्या? और वो भी बावजूद यह पता होते हुए कि आप 1981 के जनगणना रिकॉर्डों में आप लोग पंजाब में खुद को हिंदी बताए थे और हरयाणा में पंजाबी?
ऐसे-ऐसे रिकॉर्डों और आपके स्टैंडों से तो सांगवान साहब ही क्या मैं खुद भी आपकी असली सोशल आइडेंटिटी बारे दुविधा में हूँ| परन्तु कभी भी इस पर टिप्पणी नहीं की| क्योंकि हम खाप विचारधारा की सोशल डेमोक्रेटिक सोच को पालने वाले समुदाय के लोग हैं| दूसरे समुदाय का मानसिक उत्पीड़न करके ना हमने कभी जीना सीखा और ना किसी के ऐसा करने का समर्थन किया| ना ही हमने कभी मराठों ने जैसे बिहार-पूर्वांचल तो कभी दक्षिण भारतियों को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पे महाराष्ट्र में ना सिर्फ उनका मानसिक उत्पीड़न किया वरन बाकायदा पीट-पीट के भगाया भी, ऐसे हमने हरयाणा में बसने वाले तमाम गैर-हरयाणवी समुदायों के साथ नहीं किया| हाँ व्यक्तिगत लेन-देन या झगड़े किसी के हुए हों तो वो समाज में सामान्य बात है परन्तु महाराष्ट्र जैसे अपवाद हमने कभी नहीं खड़े किये, जबकि हरयाणा (आपके मीडिया बांधों की भाषा में जाटलैंड) तो महाराष्ट्र से भी पुराना इतिहास संजोये हुए हैं विस्थापितों व् सरणार्थियों को अपने यहां बसाने और रोजगार देने का| और 1947 से तो आप भी इस बात के साक्षी हो कि हमने आप तो क्या कभी तीन दशक से यहां रोजगार करने आ रहे बिहारी-बंगाली-असामी भाईयों तक को इस भाषावाद, क्षेत्रवाद और नश्लवाद की आग में नहीं झुलसाया|
जबकि आप लोग ऐसा करने की (वो मूल हरयाणवी जैसे कि जाट के साथ) मंशा रखते हो, इसके बाकायदा मीडिया और कोर्टों तक में पुख्ता सबूत दर्ज हैं| हम सर छोटूराम की विचारधारा पर चलने और खाप की विचारधारा में पैदा हुए जींस हैं, हमें आप इतना व्यर्थ तंग ना करें|
अंत मैं आपसे यही प्रार्थना करूँगा कि अगर इससे भी जाट की महत्वता, सामाजिकता व् सौहार्द समझ नहीं आता तो आप लोग पहले ऊपर बताये मुद्दों पर अपने समाज के लोगों से माफ़ी मंगवाएं, और जाट समाज से आपको कैसे रिश्ते चाहियें यह स्पष्ट शब्दों में सामने रखें| यह राजनैतिक पार्टियों को इमोशनल ब्लैकमेल करने के हथकंडे त्यागें और सामाजिक पहलुओं पर समाजों के बीच बैठ के बात करें, इनको राजनैतिक रंग ना देवें|
Email sent to:
1) hemant.bakshi44@gmail.com (State President, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
2) mahen.french@gmail.com (Chief-secretary, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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मैं आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट लिख दूँ कि मैं बचपन से ही आप लोगों (हिन्दू अरोड़ा/खत्री समुदाय) को यदाकदा नादान व् अनभिज्ञ लोगों द्वारा 'रिफूजी' कह के सम्बोधित करने का विरोधी रहा हूँ और जहां-जहां मेरी पहुँच हुई मैंने ऐसे लोगों को ऐसा ना बोल आप लोगों को अपना भाई मानने की सदा वकालत की है| आपके समुदाय में मेरे बहुत अच्छे मित्र-बंधू भी है और सामाजिक सौहार्द के रिश्ते भी हैं|
परन्तु आप लोगों द्वारा कल से एक पत्र वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है कि पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान द्वारा वर्तमान सीएम हरयाणा को पाकिस्तानी मूल का कहने से आपको बड़ी आपत्ति हुई है| और आपने उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर करने हेतु हरयाणा के तमाम जिला उपायुक्त दफ्तरों को पत्र लिखा है।
इससे पहले कि इससे और आगे बढूँ आपको इस पाकिस्तानी सम्बोधन बारे बचपन की कुछ यादें बता दूँ:
1) हरयाणा के हर दूसरे गाँव की भांति मेरे गाँव में भी 1947 के वक्त आपके समुदाय के कुछ लोग आ कर बसे थे| जिनके साथ मेरे परिवार का बड़ा सहयोग, सद्भाव और तन्मयता का रिश्ता था| परन्तु फिर भी मेरी दादी जी मुझे दुकान से कुछ लाने को कहती तो कहती कि वो पाकिस्तानियों वाली दूकान पे जाना वहाँ यह चीज मिल जाएगी|
2) आप सब तो यह जानते ही होंगे कि आप लोग 1947 से दुपहिया वाहनों पर हरयाणा के गाँव-नगरियों में कपडा-लत्ता बेचने जाते रहे हो| हमने बचपन से औरतों के जिक्रों में जब भी यह बात आती कि 'आएं बेबे यु किस्तें लिया' तो लेने वाली जवाब देती 'ए बेबे फलाना पाकिस्तानी दे गया था, तू कहवै तो तेरी खातर और मंगवा द्यूं!'
3) 'रिफूजी' शब्द का तो खैर मैं मेरी जिंदगी के शुरू दिन से ही विरोधी रहा हूँ, परन्तु स्कूलों-कालेजों में नादान बच्चे आज भी इसक प्रयोग कर लेते हैं|
मुझे नहीं पता आप लोगों को अपने पाकिस्तानी मूल का होने की पहचान को छुपाने की आज एकदम से कैसे और क्या जरूरत आन पड़ी|
खैर अब आता हूँ कल के आपके खत पर|
आज जब बात इस हद तक बढ़ गई कि एक जाट को सीएम साहब के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया देनी पड़ी तब जा कर आप बोले? इससे पहले जब निम्नलिखित बयानबाजियों और कार्यवाहियों की डेवलपमेंट हो रही थी, तब आप क्यों नहीं बोले?
क्यों आपने इन निम्नलिखित हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों को इनके जाट व् खाप विरोधी बयानों और स्टेण्डों बारे सामाजिक अथवा कानूनी स्तरों पर टोका नहीं? क्यों इनको इनकी हरकतों पे जाट समाज से माफ़ी बारे नहीं कहा? क्यों नहीं इन लोगों को आपने कहा कि आप लोगों की हरकतें सामाजिक तानाबाना बिगाड़ रही हैं इसलिए आप लोग अपनी हरकतों, बयानों के लिए माफ़ी मांगे? आप लोगों को आज जब खुद पर पड़ी तो मानसिक उत्पीड़न नजर आ गया और जाट समाज के खिलाफ आपके समाज के लोग 2005 से तो आधिकारिक यहां तक कि कानूनी तौर पर भी जो उत्पीड़न करते आ रहे हैं वो नजर नहीं आया? मतलब आपका उत्पीड़न, उत्पीड़न और हमारा उत्पीड़न मजाक या चुटकी?
आप लोग इन लोगों पे भी असल तो ऐसे ही राजद्रोह के मुकदमों की सिफारिस करें अथवा इनसे जाट व् हरयाणवी समाज के सन्मुख माफ़ी मंगवाएं|
1) हरयाणा सीएम श्रीमान मनोहर लाल खट्टर ने अभी हाल ही में एक के बाद एक दो बयान दिए, एक में कहते हैं कि 'डंडे मार के हक छीनने वाले लोग' व् दूसरा अभी गोहाना में दिया कि "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!"
अगर आप लोग यह सोचते हो कि शब्दों की चालाकी की वजह से जनता उनके "डंडे मार के हक छीनने वाले लोग" बयान को नहीं समझेगी तो यह आपकी बहुत बड़ी गलत-फहमी है, क्योंकि सार्वजनिक बयान मौका-स्थिति और माहौल देख के समझे जाते हैं| और इस वक्त मौका है जाट आरक्षण का, स्थिति है जाटों को 'लठ तंत्र' वाले बताने की और माहौल है आरक्षण पे पुनर्विचार का| इसलिए नादाँ से नादाँ भी सीएम के इस वक्तव्य से वो किसपे निशाना साध के गए स्पष्ट पकड़ लेगा|
दूसरी बात शायद आप और सीएम साहब आजतक भी खुद को हरयाणवी नहीं मानते होंगे इसलिए आप लोगों को सीएम साहब के दूसरे बयान "हरयाणवी सिर्फ कंधो के नीचे से मजबूत होते हैं उपर से नहीं!" में खुद उसी स्टेट के लोगों का अपमान नहीं झलका जिनके कि सीएम साहब मुखिया हैं? क्या है या भूतकाल में हुआ हो भारत में ऐसा कोई दूसरा सीएम जो अपने ही राज्यों के लोगों का इतना भद्दा मजाक उड़ाए?
तो क्या आप कल जैसा एक और ऐसा ही खत हरयाणा के तमाम जिला-उपायुक्तों को लिखेंगे, कि खट्टर साहब के खिलाफ भी उन्हीं के प्रदेश की पहचान पर ऐसे कटाक्ष करने के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो? अब कृपया यह दलील मत दीजियेगा कि सीएम साहब ने तो चुटकी लेते हुए हल्के अंदाज में कहा था| और अगर यही दलील है आपकी तो जब आप सीएम साहब के बयान को चुटकी में ले सकते हो तो फिर सांगवान साहब के बयान में क्या दिक्कत?
अब ऐसे में सांगवान साहब ने आपको 'पाकिस्तानी मूल' कहा तो लाजिमी सी बात है अपनी हरयाणवी पहचान पे वो भी सीएम जैसी पोस्ट पे बैठी सख्सियत की तरफ से ऐसा हमला कैसे सहन हो सकता था? मेरे ख्याल से आप जितने सेंसिटिव इंसानों को जब सांगवान साहब के बयान में मानसिक उत्पीड़न दिख गया तो सीएम साहब के बयान में भी दिख जाना चाहिए कि नहीं?
2) 2014 के चुनाओं के मौके पर पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने कब्जा कर उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? लेकिन हमने ऐसा कहना होता तो कब के मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर कह चुके होते|
खैर, मुद्दे की बात यही है कि श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी जी ब्यान में मानसिक उत्पीड़न क्यों नहीं दिखा? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
4) मई 2015 में जाट आरक्षण से आपको कोई लाभ-हानि ना होते हुए भी, आपका उससे कोई लेना-देना ना होते हुए भी आप लोग जाट आरक्षण के विरुद्ध आपके इसी मंच से धरना भी देते हैं और ज्ञापन भी? आपको विरोध करना था तो या तो सारे आरक्षण का करते, या आपको अपने लिए माँगना था तो सरकारों के आगे जा के अपनी मांग रखते, आपने यह जाट आरक्षण का ही विरोध क्यों किया?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे खुद आपके ही ऊपर राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
5) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उनसे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के आप लोगों ने इसको जाटों की तानाशाही बताया? मतलब आपके लोग हमारे समाज का ऐसे खुला मजाक उड़ावें और हम उसके खिलाफ आवाज भी उठावें तो तानाशाही?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
6) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाले आपके ही समुदाय के पंचकुला से श्रीमान साहनी साहब हैं| यह शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में एक अनोखा मामला होगा ऐसा मामला होगा, जिसमें यह जनाब एक या दो-चार व्यक्ति नहीं अपितु लाखों-लाख का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के खिलाफ ही जा खड़े हुए|
क्या आप लोगों ने टोका उनको कि किसी व्यक्ति-विशेष के खिलाफ बेशक शिकायत करो, परन्तु पूरी सामाजिक संस्था को कोर्ट में खड़ा करना सभ्यता नहीं? तब आपको नजर नहीं आया कि इससे जाटों और खापों का मानसिकत उत्पीड़न होगा?
क्यों मान्यवर, क्या यह किसी समाज का मानसिक उत्पीड़न नहीं? क्या करेंगे इसपे राजद्रोह के मुकदमे की सिफारिस?
आज सीएम साहब के बयान पे किसी हरयाणवी का पलटवार हुआ तो आप लोगों ने जितनी जल्दी से उनकी जन्मतिथि व् जन्मस्थल की डिटेल्स निकाली, क्या कभी इतनी ही तन्मयता से अपने बच्चों को हरयाणवी सिखाई है? हरयाणत क्या होती है बताई और समझाई है? हरयाणत का मान-सम्मान क्या होता है कभी बताया है? मेरी सोशल मीडिया चैट्स में आज भी मेरे आपके समुदाय से जो मित्र हैं वो मुझे "और हरयाणवी", "और तुम्हारे हरयाणा में ये हुआ वो हुआ" जैसे वर्ड प्रयोग करते हुए शब्द दर्ज हैं| कईयों को तो मैंने कहा भी कि भाई आप रेस/नश्ल से बेशक हरयाणवी ना हों, परन्तु जन्म से तो हरयाणवी हो तो इसी नाते अपने आपको हरयाणवी कह लिया करो? और अब जन्म लेने मात्र से भी कोई हरयाणवी हो सकता है यह आपके ही द्वारा सिद्ध भी कर दिया गया जब आप सीएम साहब को सिर्फ जन्म स्थल के आधार पर हरयाणवी साबित कर रहे हैं| जबकि वही सीएम साहब ऊपर पहले बिंदु में बताये तरीके से हरयाणवियों की खिल्ली उड़ा रहे हैं|
जाट समाज अगर इतना ही उददंड होता तो आप लोगों को 1947 के बाद दोबारा से 1984-86 के दौर में जब आप पंजाब से भगाए गए थे तो फिर से अपने यहां की जीटी रोड़ बेल्ट पे बिना किसी अवरोध के बसने देता क्या? और वो भी बावजूद यह पता होते हुए कि आप 1981 के जनगणना रिकॉर्डों में आप लोग पंजाब में खुद को हिंदी बताए थे और हरयाणा में पंजाबी?
ऐसे-ऐसे रिकॉर्डों और आपके स्टैंडों से तो सांगवान साहब ही क्या मैं खुद भी आपकी असली सोशल आइडेंटिटी बारे दुविधा में हूँ| परन्तु कभी भी इस पर टिप्पणी नहीं की| क्योंकि हम खाप विचारधारा की सोशल डेमोक्रेटिक सोच को पालने वाले समुदाय के लोग हैं| दूसरे समुदाय का मानसिक उत्पीड़न करके ना हमने कभी जीना सीखा और ना किसी के ऐसा करने का समर्थन किया| ना ही हमने कभी मराठों ने जैसे बिहार-पूर्वांचल तो कभी दक्षिण भारतियों को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पे महाराष्ट्र में ना सिर्फ उनका मानसिक उत्पीड़न किया वरन बाकायदा पीट-पीट के भगाया भी, ऐसे हमने हरयाणा में बसने वाले तमाम गैर-हरयाणवी समुदायों के साथ नहीं किया| हाँ व्यक्तिगत लेन-देन या झगड़े किसी के हुए हों तो वो समाज में सामान्य बात है परन्तु महाराष्ट्र जैसे अपवाद हमने कभी नहीं खड़े किये, जबकि हरयाणा (आपके मीडिया बांधों की भाषा में जाटलैंड) तो महाराष्ट्र से भी पुराना इतिहास संजोये हुए हैं विस्थापितों व् सरणार्थियों को अपने यहां बसाने और रोजगार देने का| और 1947 से तो आप भी इस बात के साक्षी हो कि हमने आप तो क्या कभी तीन दशक से यहां रोजगार करने आ रहे बिहारी-बंगाली-असामी भाईयों तक को इस भाषावाद, क्षेत्रवाद और नश्लवाद की आग में नहीं झुलसाया|
जबकि आप लोग ऐसा करने की (वो मूल हरयाणवी जैसे कि जाट के साथ) मंशा रखते हो, इसके बाकायदा मीडिया और कोर्टों तक में पुख्ता सबूत दर्ज हैं| हम सर छोटूराम की विचारधारा पर चलने और खाप की विचारधारा में पैदा हुए जींस हैं, हमें आप इतना व्यर्थ तंग ना करें|
अंत मैं आपसे यही प्रार्थना करूँगा कि अगर इससे भी जाट की महत्वता, सामाजिकता व् सौहार्द समझ नहीं आता तो आप लोग पहले ऊपर बताये मुद्दों पर अपने समाज के लोगों से माफ़ी मंगवाएं, और जाट समाज से आपको कैसे रिश्ते चाहियें यह स्पष्ट शब्दों में सामने रखें| यह राजनैतिक पार्टियों को इमोशनल ब्लैकमेल करने के हथकंडे त्यागें और सामाजिक पहलुओं पर समाजों के बीच बैठ के बात करें, इनको राजनैतिक रंग ना देवें|
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1) hemant.bakshi44@gmail.com (State President, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
2) mahen.french@gmail.com (Chief-secretary, Haryana Punjabi Sawbhiman Sangh)
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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