Sunday, 27 September 2015

जाटो या तो आर्यसमाजी रह के मूर्तिपूजा से निषेध के ही रास्ते पे चलो अन्यथा अपने जाट महापुरुषों की मूर्तियां बना के उनको पूजो!

अगर जाट समाज ने अपना आर्य-समाज का मूर्ती-पूजा विरोधी होने का सिद्धांत त्याग दिया है तो फिर अपने जाटों महापुरुषों, अवतारों और यौद्धेयों की ही मूर्तियां बनवानी और पूजवानी शुरू कर दो; वरना अपने मूर्ती-पूजा विरोधी के स्टैंड पे ही कायम रहो!

वैसे जाट मूर्ती उपासक जरूर रहा है परन्तु पूजक नहीं और यही हमारा आर्य समाज कहता आया है| तो फिर अब अगर उपासक से पूजक बन ही रहे हो तो फिर "गॉड गोकुला" को पूजो, "महाराजा सूरजमल" को पूजो, "जाटवान जी महाराज" को पूजो, "दादिरानी भागीरथी महारानी" को पूजो, "महाराजा हर्षवर्धन" को पूजो, "बाला जी जाट जी" को पूजो, "वीर तेजा जी" को और बड़े स्तर पर पूजो, "रामलाल खोखर जी" को पूजो, "बाबा शाहमल तोमर" जी को पूजो, "सर छोटूराम जी" को पूजो, "बाबा टिकैत" के मंदिर बनवाओ, "चौधरी चरण सिंह" के मंदिर बनवाओ, "ताऊ देवीलाल" के मंदिर बनवाओ, "दादिरानी समाकौर" को पूजो, "दादिरानी भंवर कौर" को पूजो, "धन्ना भगत" जी की भक्ति को और फैलाओ, "दादा भूरा जी और निंघाहिया" जी को पूजो, "जाट हरफूल जुलानी वाले" के मंदिर बनवाओ, "राजा नाहर सिंह" जी को पूजो, "सरदार भगत सिंह" जी को पूजो, "महाराजा रंजीत सिंह जी" को पूजो, "महात्मा गौतम बुद्ध" को पूजो, "भगत फूल सिंह को पूजो|

दिखती सी बात है राजा-महाराजा के नाम पर जब "राजा राम" की पूजा हो सकती है तो हमारे वालों की भी हो सकती है| और जितनी चाहिए लम्बी चाहिए उतनी लम्बी लिस्ट बना देता हूँ, हमारे जाट समाज के ही अपने देवी-देवताओं की, जो कि वासतव में हो के भी गए और हमें और समाज को भी गौरवान्वित करके गए|

कहने का अर्थ यही है जाट-समाज कि या तो अपनी मूर्ती-विरोधी आर्य-समाजी विचारधारा को पकडे रहो अन्यथा हर मंदिर में जाट देवी-देवता बैठा दो| और अपने ही समाज के पुजारी और कर्मचारी बैठा दो|
इससे हिन्दू धर्म को भी आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि हम खुद हिन्दू हो के हिन्दू की मूर्ती बना के उसकी पूजा करेंगे तो कौन हिन्दू ऐतराज करेगा, या करेगा कोई? वैसे भी तैंतीस कोटियों में तैंतीस करोड़ से ज्यादा देवी-देवता हैं, उसमें पचास-साथ, सौ-दो सौ हमारे और सही।

पूर्णत: मूर्तिपूजा निषेध रखा तो सबसे अग्रणी समाज बने; अब मूर्तिपूजा में उतर रहे हो तो फिर अपनों की मूर्तियां बनवा के उनको पूजो| वर्ना वो दिन दूर नहीं जब "धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का" और "कौवा चला हंस की चाल, अपनी ही चाल भूल बैठा वाली बनेगी| जी हाँ मूर्ती पूजा निषेध के हम हंस हैं, परन्तु मूर्ती-पूजा के कव्वे| लेकिन अगर मूर्ती-पूजा के भी हंस बनना है तो अपनों की मूर्तियां बना के पूजो, वर्ना हंस से कव्वे बनने का दिन दूर नहीं| बाकी मूर्ती-पूजा निषेध के तो हम हंस पहले से हैं ही|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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