लेख का उद्देश्य:
1. हरयाणा सीएम खट्टर साहब की तरह कंधे से ऊपर की मजबूती दिखाने बाबत!
2. हर हरयाणवी किसान का बालक अब सर छोटूराम बन जाओ, जिन्होनें इनकी हर घिनौनी चाल की गाँठ बाँध के रख दी थी। और रोया करते थे एकमुश्त उनकी चालों के आगे!
चौधरी छोटूराम जी की पहली शिक्षा थी कि हमें धार्मिक तौर पर कभी भी कट्टर व रूढ़िवादी नहीं होना चहिये। उस समय संयुक्त पंजाब में 55 हजार सूदखोर थे, जिनमें से लगभग 50 हजार सूदखोर पाकिस्तान के पंजाब में थे और इनमें अधिकतर अधिकतर वहाँ के हिन्दू अरोड़ा/खत्री व्यापारी थे। ये सभी लगभग सिंधी, अरोड़ा-खत्री हिन्दू थे, क्योंकि इस्लाम धर्म में सूद (ब्याज) लेना पाप माना गया है। उस समय पंजाब की मालगुजारी केवल 3 करोड़ थी। लेकिन सूदखोर प्रतिवर्ष 30 करोड़ रुपये ब्याज ले रहे थे। अर्थात् पंजाब सरकार से 10 गुना अधिक। उस समय पंजाब में 90 प्रतिशत किसान थे जिसमें 50 प्रतिशत कर्जदार थे।
जब गरीब किसान व मजदूर कर्जा वापिस नहीं कर पाता था तो उनकी ज़मीन व पशुओं तक यह सूदखोर गहन रख लेते थे। चौ॰ छोटूराम की लड़ाई किसी जाति से नहीं थी, इन्हीं सूदखोरों से थी, जिसमें कुछ गिने-चुने दूसरी जाति के लोग भी थे। ये सूदखोर लगभग 100 सालों से गरीब जनता का शोषण कर रहे थे। उसी समय कानी-डांडी वाले 96 प्रतिशत, तो खोटे बाट वाले व्यापारी 49 प्रतिशत थे। किसानों का भयंकर शोषण था। हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों के अखबार चौ. साहब के खिलाफ झूठा और निराधार प्रचार कर रहे थे कि “चौधरी साहब कहते हैं कि वे बनियों की ताखड़ी खूंटी पर टंगवा देंगे।” इस प्रचार का उद्देश्य था कि अग्रवाल बनियों को जाटों के विरोध में खड़ा कर देना। जबकि सच्चाई यह थी कि चौधरी साहब का आंदोलन सूदखोरों के खिलाफ था, जिनमें अधिकतर अरोड़ा/खत्री जाति के थे। उसके बाद यह प्रचार भी किया गया कि चौधरी साहब ने अग्रवाल बनियों को बाहर के प्रदेशों में भगा दिया। जबकि सच्चाई यह है थी कि अग्रवालों का निवास अग्रोहा को मोहम्मद गौरी ने सन् 1196 में जला दिया था जिस कारण अग्रवाल समाज यह स्थान छोड़कर देश में जगह-जगह चले गये थे और यह अभी अग्रोहा की हाल की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि अग्रवालों ने इस स्थान को जलाया जाने के कारण ही छोडा था। (पुस्तक - अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल)।
संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीतसिंह के शासन के बाद से ही इन सूदखोरों ने किसान और गरीब मजदूर का जीना हराम कर दिया था। क्योंकि अंग्रेजी सरकार को ऐसी लूट पर कोई एतराज नहीं था क्योंकि वे स्वयं भी पूरे भारत को लूट रहे थे। एक बार तो लार्ड क्लाइव 8 लाख पाउण्ड चांदी के सिक्के जहाज में डालकर ले गया जिसे इंग्लैण्ड के 12 बैंकों में जमा करवाया गया। इस पर अमर शहीद भगतसिंह ने भी अपनी चिंतन धारा में स्पष्ट किया था कि “उनको ऐसी आजादी चाहिए जिसमें समस्त भारत के मजदूरों व किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य हो तथा इसके लिए किसान और मजदूर संगठित हों।”
इसी बीच जब 1947 में अलग से पाकिस्तान बनने की चर्चायें चलीं तो काफी सूदखोर पाकिस्तान में ही रहने की संभावनायें तलाशने लगे थे, लेकिन अलग पाकिस्तान की घोषणा होते ही मुस्लिमवर्ग में एकदम इन शोषणकारियों के विरुद्ध गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने बदले की भावना से प्रेरित होकर शोषणकारी अरोड़ा/खत्री हिन्दुओं की हत्या करनी शुरू कर दी। उस समय सिक्ख भी हिन्दुओं के रिश्तेदार थे इस कारण वे भी इस गुस्से के शिकार हुये। इस पर हिन्दू और सिखों ने पाकिस्तान से भागना प्रारंभ कर दिया, जिसमें काफी को उनके घरों व रास्ते में मुसलमानों ने कत्ल कर दिया| जिसमें लगभग 1 लाख हिन्दू व सिक्ख मारे गये और लगभग 1 करोड़ बेघर हो गये| जबकि हिन्दुस्तान व पाकिस्तान की सरकारों ने कभी किसी मुस्लिम व हिन्दू को देश छोड़ने का आदेश नहीं दिया। (समाचार पत्रों के अनुसार)
ज्यों ही ये मारकाट के समाचार पाकिस्तान के पंजाब से हमारे पंजाब में पहुंचे तो सिक्ख व् हिन्दू जाटों व अन्य ने इन हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों पर हुए अत्याचार की प्रतिक्रिया स्वरूप मुसलमानों को मारना शुरू कर दिया। इस सच्चाई को पंजाब के तत्कालीन गर्वनर मिस्टर ई. एम. जैनकिम्स का पत्र दिनांक 4-8-1947 पूर्णतया सिद्ध करता है कि सबसे पहले दंगे 4 मार्च से 20 मार्च तक लाहौर में भड़के फिर 11 और 13 अप्रैल को अमृतसर में। उसके बाद फिर 10 मई को गुड़गांव जिले में भड़के और इस प्रकार लगभग सारे संयुक्त पंजाब में फैल गए। हिन्दू पंजाबी अखबारों में हिन्दु मृतकों की संख्या लाखों में बतलाई लेकिन राजपाल के इस पत्र के अनुसार पंजाब में कुल 4632 लोग मारे गए और 2573 घायल हुए। जिसमें देहात में 1044 और शहरों में 3588 मारे गए। इससे सिद्ध होता है कि अखबारों के आंकड़े बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखे गए ताकि अधिक से अधिक मुआवजा व सहानुभूति बटोरी जा सके। गवर्नर ने अपने पत्र में साफ टिप्पणी की है कि “On the morning of March 4th 1947 rioting broke out in Lahore first. Rohtak disturbances were directly connected with those of in western unit provinces” अर्थात् “4 मार्च 1947 को सबसे पहले लाहौर में दंगे भड़के जो रोहतक में सीधे तौर पर दंगे भड़कने का कारण था।” यही इसका प्रमाण है। इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में हिन्दू जाटों व अन्य ने मुसलमानों को मारना शुरू किया। प्रांरभ में यह किसी भी प्रकार का धार्मिक दंगा नहीं था, यह तो शोषण के विरोध में मुसलमानों की बदले की भावना की प्रतिक्रिया थी जो मारकाट के रूप में परिवर्तित हुई। हमने हिन्दू शरणार्थियों के मुँह से सुना है कि जो मुसलमान उनके घर की दहलीज पर बैठकर उन्हें सलाम करते थे वही हिन्दू व सिखों के सबसे कट्टर दुश्मन बने, इसका स्पष्ट कारण मुसलमानों का शोषण था। यह किसी भी प्रकार से प्रांरभ में हिन्दू मुस्लिम दंगा नहीं था, यदि ऐसा होता तो पड़ोस के कश्मीर में उस समय किसी भी एक हिन्दू या मुसलमान की हत्या क्यों नहीं हुई?
इसको बाद में हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक दंगे का रूप दिया गया और इसके बाद इस बारे में आज तक अनेक फिल्में, पुस्तकें व लेखों आदि के माध्यम से इसे दंगा ही प्रचारित किया जाता रहा है क्योंकि पत्रकार व फिल्मकार इसी वर्ग से अधिक रहे हैं। जिससे शरणार्थियों के लिए यहाँ के हिन्दू व सिखों से पूरी-पूरी सहानुभूति बटोरी जाती रही है और वे यहां बसने में तथा लूट मचाने में सफल रहे।
इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में बेगुनाह मुसलमानों का कत्ल किया गया तथा उन्हें यहाँ से भगाया गया। जबकि उनका कोई भी कसूर नहीं था, वे सभी तो हम हिन्दुओं के ही बीच से कभी मुसलमान बने थे, हमारी भाषा बोलते थे, हरयाणवी संस्कृति के पालक थे तथा सभी हिन्दू त्यौंहारों को हमारी तरह मनाते थे। ये सभी चौ० छोटूराम के कट्टर समर्थक थे और इस सच्चाई को कोई झुठला नहीं सकता। लेकिन हम लोगों ने उनको सदा-सदा के लिए पाकिस्तान में मुहाजिर (शरणार्थी) बना दिया और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया। क्योंकि वे भी हमारी ही तरह सीधे-साधे लोग थे जिनको पाकिस्तानी मुसलमानों ने कभी भी अपने गले नहीं लगाया। क्योंकि वहां भी पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ सहगल (हिन्दू खत्री) जैसे लोग थे। जबकि हम लोगों ने आने वाले शरणार्थियों का कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि हम भी दिल के साफ़ थे, आज तक भी हैं।
पाकिस्तान से आनेवाला लगभग पूरे का पूरा हिन्दू अरोड़ा/खत्री समाज सामान्य वर्ग से सम्बन्ध रखता है, जैसे कि हरयाणा में जाट समाज। जाने वाले मुसलमान लगभग सभी के सभी अनपढ़ व पिछड़ा वर्ग था, लेकिन पाकिस्तान से आनेवाले हिन्दू व सिक्ख अधिकतर पढ़े लिखे थे, क्योंकि अंग्रेजों ने भारत में कलकता, मद्रास, बम्बई तथा इलाहबाद के बाद पांचवां विश्वविद्यालय लाहौर में ही स्थापित किया था। दिल्ली कॉलेज जो सन् 1864 में स्थापित किया गया, को भी सन् 1877 में लाहौर हस्तांतरण कर दिया गया था। इसी प्रकार दिल्ली से पहले लाहौर में सन् 1865 में उच्च न्यायालय स्थापित किया जिसके पीछे अंग्रेजों के अपने स्वार्थ जुड़े थे।
इस प्रकार आने वाले शिक्षित शरणार्थियों ने अपनी जो भी योग्यता बतलाई, उसी को उस समय भारत सरकार व पंजाब सरकार को मानना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान से इसकी तसदीक (verification) करना संभव नहीं था। इन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता को झूठा लिखवाकर नौकरियां पाई| क्योंकि दंगों और पलायन का बहाना बनाकर डिग्रियां खोने या गुम हो जाने के बहाने जो चौथी कक्षा तक पास था उसने 8वीं लिखवाई और 8वीं वाले ने 10वीं और 10वीं वाले ने अपने आप को एफ.ए. लिखवाकर आते ही स्थनीय लोगों की नौकरियोंं पर कब्जा कर लिया| यह है इनकी बड़े-बड़े अफसर बनने के पीछे की मेहनत का राज और स्थानीय हरयाणवियों के रोजगार पे झूठ बोल के डाका|
इस प्रकार मुट्ठीभर हिन्दू अरोड़ा/खत्री शरणार्थी आज हरयाणा में लगभग 36.94 प्रतिशत राजपत्रित नौकरियों पर कब्जा किया हुआ है जो लगभग सारे का सारा जाट समाज का हिस्सा है, जबकि प्रचार यह किया जाता रहा कि दलित समाज जाटों की नौकरी हड़प गया। हरयाणा में सामान्य वर्ग में लगभग 32 प्रतिशत जाट (सिख जाट+मूला जाट को मिलाकर) हैं, इस प्रकार मुसलमानों को काटकर जाटों ने अपनी कुल्हाड़ी से अपने ही पैर काट लिये।
सन् 1901 के जमीन एलीगेशन एक्ट के तहत पुराने पंजाब में हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों से जमीन लेकर वास्तविक कास्तकारों यानि किसानों को वापिस कर दी गई थी| उसी जमीन को 1947 में हरियाणा में आने पर अपने नाम की बताकर उसके बदले जमीनें ली और फिर उनको बेचकर दिल्ली व् अन्य बड़े शहरों में पलायन कर गए| इस प्रकार वास्तव में जमीन के मालिक ना होते हुए भी झूठ के बल पर जमीनें ली और फिर हरयाणा के किसानों को ही बेच के अमीर बन गए| यह है इनकी मेहनत का नंबर एक रहस्य| जिनकी कोई जमीन नहीं थी उन्होंने भी झूठ बोलकर यहां मुसलमानों की जमीन हथियाई। 4-4 बार मुआवजा लिया और दिल्ली में कई बार मुफ्त में प्लाट लिए। वहां यह लोग लगभग सारे के सारे traders (व्यापारी) थे, यहां आने पर आर्थिक traitors हो गए। यह पूरा घपला उस समय इनके पुनर्वास मन्त्री मेहर चन्द खन्ना के इशारे पर हुआ। वहां यह नारे लगाते थे - सर सिकन्दर - छोटू कन्जर। लेकिन यहां आने पर खुद कन्जर से भी बदतर हो गए।
चौ. छोटूराम ने एक बार पेशावर में कहा था कि पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़। लेकिन हमने चौ. छोटूराम को भुलाकर अपनी गलती से इनको अपनी ही चौखट पर बुला लिया। चौधरी छोटूराम ने इनको काबू में रखने के लिए "पहलवानी ब्रिगेड" बना रखी थी, क्योंकि यह हिन्दू अरोड़ा/खत्री उनकी हर रैली में विघ्न डालते थे। इसलिए वो रैली के चारों ओर पहलवान खड़े करके तब रैली करते थे, ताकि इनमें से कोई भी रैली में व्यघ्न ना डाल सके। और इसीलिए यह लोग जब कुछ नहीं कर पाते थे तो सर छोटूराम को कभी "छोटू खान" तो कभी "अंग्रेजों का पिठ्ठू" कहते फिरते थे। जबकि इनके शोभा सिंह चोपड़ा शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह की फांसी में गवाही देने के बावजूद भी इनके लिए राष्ट्रभक्त रहे।
आपस में मिलके रहना, सहना और निभाना यह लोग क्या जानें, और इसका मैंने मेरे "सॉरी "जय माता दी" वाले लेख में खुल के विवरण किया है। चलते-चलते धन्यवाद सीएम साहब, आपके ओच्छे और गैरजिम्मेदाराना बयान के बहाने जिस इतिहास को मैंने सेल्फ में रख छोड़ा था वो फिर से ताजा हो गया।
Phool Kumar Malik
1. हरयाणा सीएम खट्टर साहब की तरह कंधे से ऊपर की मजबूती दिखाने बाबत!
2. हर हरयाणवी किसान का बालक अब सर छोटूराम बन जाओ, जिन्होनें इनकी हर घिनौनी चाल की गाँठ बाँध के रख दी थी। और रोया करते थे एकमुश्त उनकी चालों के आगे!
चौधरी छोटूराम जी की पहली शिक्षा थी कि हमें धार्मिक तौर पर कभी भी कट्टर व रूढ़िवादी नहीं होना चहिये। उस समय संयुक्त पंजाब में 55 हजार सूदखोर थे, जिनमें से लगभग 50 हजार सूदखोर पाकिस्तान के पंजाब में थे और इनमें अधिकतर अधिकतर वहाँ के हिन्दू अरोड़ा/खत्री व्यापारी थे। ये सभी लगभग सिंधी, अरोड़ा-खत्री हिन्दू थे, क्योंकि इस्लाम धर्म में सूद (ब्याज) लेना पाप माना गया है। उस समय पंजाब की मालगुजारी केवल 3 करोड़ थी। लेकिन सूदखोर प्रतिवर्ष 30 करोड़ रुपये ब्याज ले रहे थे। अर्थात् पंजाब सरकार से 10 गुना अधिक। उस समय पंजाब में 90 प्रतिशत किसान थे जिसमें 50 प्रतिशत कर्जदार थे।
जब गरीब किसान व मजदूर कर्जा वापिस नहीं कर पाता था तो उनकी ज़मीन व पशुओं तक यह सूदखोर गहन रख लेते थे। चौ॰ छोटूराम की लड़ाई किसी जाति से नहीं थी, इन्हीं सूदखोरों से थी, जिसमें कुछ गिने-चुने दूसरी जाति के लोग भी थे। ये सूदखोर लगभग 100 सालों से गरीब जनता का शोषण कर रहे थे। उसी समय कानी-डांडी वाले 96 प्रतिशत, तो खोटे बाट वाले व्यापारी 49 प्रतिशत थे। किसानों का भयंकर शोषण था। हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों के अखबार चौ. साहब के खिलाफ झूठा और निराधार प्रचार कर रहे थे कि “चौधरी साहब कहते हैं कि वे बनियों की ताखड़ी खूंटी पर टंगवा देंगे।” इस प्रचार का उद्देश्य था कि अग्रवाल बनियों को जाटों के विरोध में खड़ा कर देना। जबकि सच्चाई यह थी कि चौधरी साहब का आंदोलन सूदखोरों के खिलाफ था, जिनमें अधिकतर अरोड़ा/खत्री जाति के थे। उसके बाद यह प्रचार भी किया गया कि चौधरी साहब ने अग्रवाल बनियों को बाहर के प्रदेशों में भगा दिया। जबकि सच्चाई यह है थी कि अग्रवालों का निवास अग्रोहा को मोहम्मद गौरी ने सन् 1196 में जला दिया था जिस कारण अग्रवाल समाज यह स्थान छोड़कर देश में जगह-जगह चले गये थे और यह अभी अग्रोहा की हाल की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि अग्रवालों ने इस स्थान को जलाया जाने के कारण ही छोडा था। (पुस्तक - अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल)।
संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीतसिंह के शासन के बाद से ही इन सूदखोरों ने किसान और गरीब मजदूर का जीना हराम कर दिया था। क्योंकि अंग्रेजी सरकार को ऐसी लूट पर कोई एतराज नहीं था क्योंकि वे स्वयं भी पूरे भारत को लूट रहे थे। एक बार तो लार्ड क्लाइव 8 लाख पाउण्ड चांदी के सिक्के जहाज में डालकर ले गया जिसे इंग्लैण्ड के 12 बैंकों में जमा करवाया गया। इस पर अमर शहीद भगतसिंह ने भी अपनी चिंतन धारा में स्पष्ट किया था कि “उनको ऐसी आजादी चाहिए जिसमें समस्त भारत के मजदूरों व किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य हो तथा इसके लिए किसान और मजदूर संगठित हों।”
इसी बीच जब 1947 में अलग से पाकिस्तान बनने की चर्चायें चलीं तो काफी सूदखोर पाकिस्तान में ही रहने की संभावनायें तलाशने लगे थे, लेकिन अलग पाकिस्तान की घोषणा होते ही मुस्लिमवर्ग में एकदम इन शोषणकारियों के विरुद्ध गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने बदले की भावना से प्रेरित होकर शोषणकारी अरोड़ा/खत्री हिन्दुओं की हत्या करनी शुरू कर दी। उस समय सिक्ख भी हिन्दुओं के रिश्तेदार थे इस कारण वे भी इस गुस्से के शिकार हुये। इस पर हिन्दू और सिखों ने पाकिस्तान से भागना प्रारंभ कर दिया, जिसमें काफी को उनके घरों व रास्ते में मुसलमानों ने कत्ल कर दिया| जिसमें लगभग 1 लाख हिन्दू व सिक्ख मारे गये और लगभग 1 करोड़ बेघर हो गये| जबकि हिन्दुस्तान व पाकिस्तान की सरकारों ने कभी किसी मुस्लिम व हिन्दू को देश छोड़ने का आदेश नहीं दिया। (समाचार पत्रों के अनुसार)
ज्यों ही ये मारकाट के समाचार पाकिस्तान के पंजाब से हमारे पंजाब में पहुंचे तो सिक्ख व् हिन्दू जाटों व अन्य ने इन हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों पर हुए अत्याचार की प्रतिक्रिया स्वरूप मुसलमानों को मारना शुरू कर दिया। इस सच्चाई को पंजाब के तत्कालीन गर्वनर मिस्टर ई. एम. जैनकिम्स का पत्र दिनांक 4-8-1947 पूर्णतया सिद्ध करता है कि सबसे पहले दंगे 4 मार्च से 20 मार्च तक लाहौर में भड़के फिर 11 और 13 अप्रैल को अमृतसर में। उसके बाद फिर 10 मई को गुड़गांव जिले में भड़के और इस प्रकार लगभग सारे संयुक्त पंजाब में फैल गए। हिन्दू पंजाबी अखबारों में हिन्दु मृतकों की संख्या लाखों में बतलाई लेकिन राजपाल के इस पत्र के अनुसार पंजाब में कुल 4632 लोग मारे गए और 2573 घायल हुए। जिसमें देहात में 1044 और शहरों में 3588 मारे गए। इससे सिद्ध होता है कि अखबारों के आंकड़े बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखे गए ताकि अधिक से अधिक मुआवजा व सहानुभूति बटोरी जा सके। गवर्नर ने अपने पत्र में साफ टिप्पणी की है कि “On the morning of March 4th 1947 rioting broke out in Lahore first. Rohtak disturbances were directly connected with those of in western unit provinces” अर्थात् “4 मार्च 1947 को सबसे पहले लाहौर में दंगे भड़के जो रोहतक में सीधे तौर पर दंगे भड़कने का कारण था।” यही इसका प्रमाण है। इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में हिन्दू जाटों व अन्य ने मुसलमानों को मारना शुरू किया। प्रांरभ में यह किसी भी प्रकार का धार्मिक दंगा नहीं था, यह तो शोषण के विरोध में मुसलमानों की बदले की भावना की प्रतिक्रिया थी जो मारकाट के रूप में परिवर्तित हुई। हमने हिन्दू शरणार्थियों के मुँह से सुना है कि जो मुसलमान उनके घर की दहलीज पर बैठकर उन्हें सलाम करते थे वही हिन्दू व सिखों के सबसे कट्टर दुश्मन बने, इसका स्पष्ट कारण मुसलमानों का शोषण था। यह किसी भी प्रकार से प्रांरभ में हिन्दू मुस्लिम दंगा नहीं था, यदि ऐसा होता तो पड़ोस के कश्मीर में उस समय किसी भी एक हिन्दू या मुसलमान की हत्या क्यों नहीं हुई?
इसको बाद में हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक दंगे का रूप दिया गया और इसके बाद इस बारे में आज तक अनेक फिल्में, पुस्तकें व लेखों आदि के माध्यम से इसे दंगा ही प्रचारित किया जाता रहा है क्योंकि पत्रकार व फिल्मकार इसी वर्ग से अधिक रहे हैं। जिससे शरणार्थियों के लिए यहाँ के हिन्दू व सिखों से पूरी-पूरी सहानुभूति बटोरी जाती रही है और वे यहां बसने में तथा लूट मचाने में सफल रहे।
इसी प्रकार हरयाणा क्षेत्र में बेगुनाह मुसलमानों का कत्ल किया गया तथा उन्हें यहाँ से भगाया गया। जबकि उनका कोई भी कसूर नहीं था, वे सभी तो हम हिन्दुओं के ही बीच से कभी मुसलमान बने थे, हमारी भाषा बोलते थे, हरयाणवी संस्कृति के पालक थे तथा सभी हिन्दू त्यौंहारों को हमारी तरह मनाते थे। ये सभी चौ० छोटूराम के कट्टर समर्थक थे और इस सच्चाई को कोई झुठला नहीं सकता। लेकिन हम लोगों ने उनको सदा-सदा के लिए पाकिस्तान में मुहाजिर (शरणार्थी) बना दिया और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया। क्योंकि वे भी हमारी ही तरह सीधे-साधे लोग थे जिनको पाकिस्तानी मुसलमानों ने कभी भी अपने गले नहीं लगाया। क्योंकि वहां भी पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ सहगल (हिन्दू खत्री) जैसे लोग थे। जबकि हम लोगों ने आने वाले शरणार्थियों का कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि हम भी दिल के साफ़ थे, आज तक भी हैं।
पाकिस्तान से आनेवाला लगभग पूरे का पूरा हिन्दू अरोड़ा/खत्री समाज सामान्य वर्ग से सम्बन्ध रखता है, जैसे कि हरयाणा में जाट समाज। जाने वाले मुसलमान लगभग सभी के सभी अनपढ़ व पिछड़ा वर्ग था, लेकिन पाकिस्तान से आनेवाले हिन्दू व सिक्ख अधिकतर पढ़े लिखे थे, क्योंकि अंग्रेजों ने भारत में कलकता, मद्रास, बम्बई तथा इलाहबाद के बाद पांचवां विश्वविद्यालय लाहौर में ही स्थापित किया था। दिल्ली कॉलेज जो सन् 1864 में स्थापित किया गया, को भी सन् 1877 में लाहौर हस्तांतरण कर दिया गया था। इसी प्रकार दिल्ली से पहले लाहौर में सन् 1865 में उच्च न्यायालय स्थापित किया जिसके पीछे अंग्रेजों के अपने स्वार्थ जुड़े थे।
इस प्रकार आने वाले शिक्षित शरणार्थियों ने अपनी जो भी योग्यता बतलाई, उसी को उस समय भारत सरकार व पंजाब सरकार को मानना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान से इसकी तसदीक (verification) करना संभव नहीं था। इन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता को झूठा लिखवाकर नौकरियां पाई| क्योंकि दंगों और पलायन का बहाना बनाकर डिग्रियां खोने या गुम हो जाने के बहाने जो चौथी कक्षा तक पास था उसने 8वीं लिखवाई और 8वीं वाले ने 10वीं और 10वीं वाले ने अपने आप को एफ.ए. लिखवाकर आते ही स्थनीय लोगों की नौकरियोंं पर कब्जा कर लिया| यह है इनकी बड़े-बड़े अफसर बनने के पीछे की मेहनत का राज और स्थानीय हरयाणवियों के रोजगार पे झूठ बोल के डाका|
इस प्रकार मुट्ठीभर हिन्दू अरोड़ा/खत्री शरणार्थी आज हरयाणा में लगभग 36.94 प्रतिशत राजपत्रित नौकरियों पर कब्जा किया हुआ है जो लगभग सारे का सारा जाट समाज का हिस्सा है, जबकि प्रचार यह किया जाता रहा कि दलित समाज जाटों की नौकरी हड़प गया। हरयाणा में सामान्य वर्ग में लगभग 32 प्रतिशत जाट (सिख जाट+मूला जाट को मिलाकर) हैं, इस प्रकार मुसलमानों को काटकर जाटों ने अपनी कुल्हाड़ी से अपने ही पैर काट लिये।
सन् 1901 के जमीन एलीगेशन एक्ट के तहत पुराने पंजाब में हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों से जमीन लेकर वास्तविक कास्तकारों यानि किसानों को वापिस कर दी गई थी| उसी जमीन को 1947 में हरियाणा में आने पर अपने नाम की बताकर उसके बदले जमीनें ली और फिर उनको बेचकर दिल्ली व् अन्य बड़े शहरों में पलायन कर गए| इस प्रकार वास्तव में जमीन के मालिक ना होते हुए भी झूठ के बल पर जमीनें ली और फिर हरयाणा के किसानों को ही बेच के अमीर बन गए| यह है इनकी मेहनत का नंबर एक रहस्य| जिनकी कोई जमीन नहीं थी उन्होंने भी झूठ बोलकर यहां मुसलमानों की जमीन हथियाई। 4-4 बार मुआवजा लिया और दिल्ली में कई बार मुफ्त में प्लाट लिए। वहां यह लोग लगभग सारे के सारे traders (व्यापारी) थे, यहां आने पर आर्थिक traitors हो गए। यह पूरा घपला उस समय इनके पुनर्वास मन्त्री मेहर चन्द खन्ना के इशारे पर हुआ। वहां यह नारे लगाते थे - सर सिकन्दर - छोटू कन्जर। लेकिन यहां आने पर खुद कन्जर से भी बदतर हो गए।
चौ. छोटूराम ने एक बार पेशावर में कहा था कि पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़। लेकिन हमने चौ. छोटूराम को भुलाकर अपनी गलती से इनको अपनी ही चौखट पर बुला लिया। चौधरी छोटूराम ने इनको काबू में रखने के लिए "पहलवानी ब्रिगेड" बना रखी थी, क्योंकि यह हिन्दू अरोड़ा/खत्री उनकी हर रैली में विघ्न डालते थे। इसलिए वो रैली के चारों ओर पहलवान खड़े करके तब रैली करते थे, ताकि इनमें से कोई भी रैली में व्यघ्न ना डाल सके। और इसीलिए यह लोग जब कुछ नहीं कर पाते थे तो सर छोटूराम को कभी "छोटू खान" तो कभी "अंग्रेजों का पिठ्ठू" कहते फिरते थे। जबकि इनके शोभा सिंह चोपड़ा शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह की फांसी में गवाही देने के बावजूद भी इनके लिए राष्ट्रभक्त रहे।
आपस में मिलके रहना, सहना और निभाना यह लोग क्या जानें, और इसका मैंने मेरे "सॉरी "जय माता दी" वाले लेख में खुल के विवरण किया है। चलते-चलते धन्यवाद सीएम साहब, आपके ओच्छे और गैरजिम्मेदाराना बयान के बहाने जिस इतिहास को मैंने सेल्फ में रख छोड़ा था वो फिर से ताजा हो गया।
Phool Kumar Malik
No comments:
Post a Comment