पहली शर्म इस बात के लिए कि यू.पी. में एक मुस्लिम अख़लाक़ को मारा जाता है तो सपा उसके परिवार को 45 लाख देती है और आपके यहां एक दलित वो भी हिन्दू दलित, खट्टर साहेब जरा फिर से कानों के पट खोल के सुनो, हिन्दू दलित कहा मैंने, "हिन्दू एकता और बराबरी" वाला हिन्दू दलित जनाब; हाँ एक हिन्दू दलित मरता है तो उसकी जान की कीमत सिर्फ मात्र 10 लाख रूपये? मैं मांग करता हूँ कि आज सुबह तीन बजे बल्लभगढ़ में राजपूतों द्वारा घरों समेत जलाये गए मृतकों के परिवारों को कम से कम 1-1 करोड़ का मुवावजा मिलना चाहिए, जायज भी है 45 लाख तो आपके अनुसार सेक्युलर और देशद्रोही लोग भी दे रहे हैं तो फिर आपकी कटटरता उनसे सस्ती कैसे, आपके ही अपने हिन्दू लोगों की जान उनसे सस्ती कैसे?
दूसरी शर्म इस बात के लिए कि "हिन्दू एकता और बराबरी" के ये मण-मण पक्के नारे-भर तो लगाते हो, उसी का चोला पहन और जाटों से निजात दिलाने के नाम पे वोट भी मांगते हो और जब दलितों ने वोट दे के सरकार बनवा दी तो उन्हीं दलितों को स्वर्ण हिन्दुओं से घरों समेत जलवाते हो?
इससे बड़ा तमांचा और नहीं हो सकता खट्टर साहब के मुंह पर कि एक तरफ जनाब प्रेस-कांफ्रेंस करके एक साल की कागजी उपलब्धियां गिना रहे हैं और दूसरी तरफ स्वर्ण हिन्दु इनके "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढकोसले की उपलब्धियों की बख्खियां उद्देडने के स्टाइल में पोल खोल रहे हैं|
बनियानी के राजपूतों के बाद मात्र डेड महीने में अब फरीदाबाद के राजपूतों से तो सीधा घर ही जला दिए खट्टर साहेब!
अब देखेंगे कि जाट-दलित के छोटे से झगड़े को भी ये अंतराष्ट्रीय स्तर का बना-बना के परोसने वाले, उन पर नौ-नौ मण आंसू बहाने वाले मीडिया से ले केंद्रीय नेता, जनवादी संगठनों से ले मार्क्सवादी-कम्युनिष्ट इस जुल्म पे क्या रूख अख्तियार करेंगे|
साथ वो जाट भी बताएं अपना रूख इसपे जो कभी हिंदूवादी राष्ट्रवादी अंधभक्त बने टूलते रहते हैं तो कहीं जाति-पाति, उंच-नीचता, स्वर्ण-दलित के नाम पर दलितों से दुर्व्यवहार करते हैं| जबकि ऐसा करना ना तो शुद्ध जाट थ्योरी "खाप" में कहीं लिखा हुआ और ना ही जाट की कर्मधारा में लिखा हुआ| तो फिर क्यों ना ऐसी किताबों को आग लगा दी जाए जो समाज में इस जातीय, नस्लीय भेद की वकालत करती हैं? और जिनको पढ़ के आप व्यवहारिक, सामाजिक तौर पर दलित के नजदीक होते हुए भी वैचारिक स्तर पर उनसे दूर चले जाते हो और इस वैचारिक आतंकवाद का शिकार बनते हो?
इन सब समस्याओं का निवारण सिर्फ एक ही है, बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम की नीतियों का समन्वय भरा समाज|
फूल मलिक
दूसरी शर्म इस बात के लिए कि "हिन्दू एकता और बराबरी" के ये मण-मण पक्के नारे-भर तो लगाते हो, उसी का चोला पहन और जाटों से निजात दिलाने के नाम पे वोट भी मांगते हो और जब दलितों ने वोट दे के सरकार बनवा दी तो उन्हीं दलितों को स्वर्ण हिन्दुओं से घरों समेत जलवाते हो?
इससे बड़ा तमांचा और नहीं हो सकता खट्टर साहब के मुंह पर कि एक तरफ जनाब प्रेस-कांफ्रेंस करके एक साल की कागजी उपलब्धियां गिना रहे हैं और दूसरी तरफ स्वर्ण हिन्दु इनके "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढकोसले की उपलब्धियों की बख्खियां उद्देडने के स्टाइल में पोल खोल रहे हैं|
बनियानी के राजपूतों के बाद मात्र डेड महीने में अब फरीदाबाद के राजपूतों से तो सीधा घर ही जला दिए खट्टर साहेब!
अब देखेंगे कि जाट-दलित के छोटे से झगड़े को भी ये अंतराष्ट्रीय स्तर का बना-बना के परोसने वाले, उन पर नौ-नौ मण आंसू बहाने वाले मीडिया से ले केंद्रीय नेता, जनवादी संगठनों से ले मार्क्सवादी-कम्युनिष्ट इस जुल्म पे क्या रूख अख्तियार करेंगे|
साथ वो जाट भी बताएं अपना रूख इसपे जो कभी हिंदूवादी राष्ट्रवादी अंधभक्त बने टूलते रहते हैं तो कहीं जाति-पाति, उंच-नीचता, स्वर्ण-दलित के नाम पर दलितों से दुर्व्यवहार करते हैं| जबकि ऐसा करना ना तो शुद्ध जाट थ्योरी "खाप" में कहीं लिखा हुआ और ना ही जाट की कर्मधारा में लिखा हुआ| तो फिर क्यों ना ऐसी किताबों को आग लगा दी जाए जो समाज में इस जातीय, नस्लीय भेद की वकालत करती हैं? और जिनको पढ़ के आप व्यवहारिक, सामाजिक तौर पर दलित के नजदीक होते हुए भी वैचारिक स्तर पर उनसे दूर चले जाते हो और इस वैचारिक आतंकवाद का शिकार बनते हो?
इन सब समस्याओं का निवारण सिर्फ एक ही है, बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम की नीतियों का समन्वय भरा समाज|
फूल मलिक
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