Sunday, 4 October 2015

सोने की चिड़िया!


दो-चार मंदिरों में लाख-दो लाख करोड़ की अकूत सम्पत्ति इकठ्ठी कर देने से कोई देश "सोने की चिड़िया" नहीं बन जाया करता|

दलित-शूद्र-किसान उस जमाने में अति-पीड़ित थे इसलिए देश गुलाम हुआ था ना कि किसी और वजह से|

हमने किसी के बिटोड़े (उपलों का संग्रह) से किते ना सोने के गोस्से (उपले) निकलते सुने उस जमाने में, वो तब भी गोबर के ही होते थे और आज भी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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