Monday, 5 October 2015

इसे कहते हैं, "ठाली न्याण, काट्ड़े मुन्दै!"

धर्म हो या समाज हर किसी की एक परिधि होती है, जिस तरीके से आज धर्म अपनी हर उल-जुलूल बकवास मनवाने पे आमादा है वो ऐसा करते वक़्त बड़ा गैर-जिम्मेदाराना दीखता है| क्योंकि अगर इनके बताये धर्म के अनुसार चला जाए तो एक किसान की तो किसानी ही ठप्प हो जाए| इसलिए धर्म अपनी मर्यादा में रहे, और कहीं का किसान उठे ना उठे परन्तु हरयाणा का किसान एक हद से आगे तुम्हारी हर बकवास को सुनने वाला नहीं और किसी दिन लठ उठा लिया तो सारे बगमे बाणे वाले मोड्डे-बाब्बे भाज्जे नहीं ठ्यहोगे|

तुम्हारा क्या है पड़े-पड़े सुल्फा-गांजा-भांग-धतूरा के सुट्टे चढाने और काल्पनिकता की दुनिया से जो दिमाग में उतरा, वह समाज में फिट है या नहीं इसपे विचारे बिना छोंक दिया समाज में|

यह ठाली न्याण, काट्ड़े मुन्दै, वाली हरकतें बंद कर दो, तुम्हें कोई काम नहीं है और जिम्मेदारी नहीं है तो हम किसानों को तो है| हमें इस देश के लिए अन्न भी पैदा करना है और इसकी सुरक्षा की भी सोचनी है|

इतना सुनने पे भी तुम्हें यानी भगमा मण्डली को बाज नहीं आना तो अभी गेहूं-बुवाई और गन्ना छुलवाई का सीजन शुरू होने वाला है खेतों में, सारे बाब्बे आओ और एक-एक महीने का जोटा मरवा दो| फिर इसके बाद भी तुममें यह उल-जुलूल हाँकनेँ का होश और जज्बा बचे तो फिर सुन लेंगे तुम्हारी भी, फसल के खलिहान पे बैशाखी मनाने के वक्त पे|

विशेष: इस सम्बोधन से वो साधु-संत बाहर हैं जो धर्म के नाम पे पाखंड-हिंसा-दंगे पालने की बजाये वाकई में मानवता को पालते हैं। परन्तु बदकिस्मती ऐसे मुश्किल से 1-2 प्रतिशत ही हैं, जो ढूंढें से भी नहीं मिलते। 

#‎JaiYoddhey‬ - Phool Malik

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