Friday, 23 October 2015

जो आज मुग़लों को दुश्मन बता रहे, वो खुद दिल्ली मुग़लों को देने की बात किया करते थे!

इस वीडियो में पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले "जाट-पेशवा ब्राह्मण-सिंधिया-होल्कर" अलायन्स में होती चर्चा सुनिए।

पेशवा सदाशिव राव भाऊ: "दिल्ली को मुगलों को देंगे!"
 

महाराजा सूरजमल: "दिल्ली जाटों की है।"

मतलब आज जो मुस्लिमों से नफरत करते नहीं थकते, उन्हीं नागपुरी पेशवाओं को दिल्ली मुग़लों तक को देनी मुहाल थी, परन्तु जाटों को नहीं।

अचरज है कि जब दिल्ली देनी ही मुग़लों को थी तो अब्दाली से लड़ने ही किसलिए जा रहे थे? आखिर वो भी तो अफगानी मुग़ल ही था? मुग़ल-मुग़ल लड़ लेते आपस में दिल्ली के लिए, नहीं?

और ऐसे दम्भ में भरे पेशवा जाटों को कूच करने का संदेशा मिलने का इंतज़ार करते छोड़ जा चढ़े बिन जाटों के ही पानीपत में अब्दाली के आगे और वहाँ पे मुंह की खाई, तत्पश्चात जाटों ने ही इनकी फर्स्ट-ऐड करी।

फिर 1764 में महाराजा सूरजमल के सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने अकेले जाट दम पे मुग़लों से दिल्ली जीत के भी दिखाई, वरन अहमदशाह अब्दाली की हिम्मत तक ना हुई आ के दिल्ली को महाराजा जवाहर सिंह से छुड़वाने की।

और यही रूख इन नागपुरी पेशवाओं का जाटों के प्रति आज है। कुछ नहीं बदला, इन्होनें इतिहास से कोई सीख नहीं ली। वही ढाक के तीन पात, चौथा होने को ना जाने को।

फूल मलिक

 

No comments: