बिसाहड़ा, दादरी में एक मुस्लिम की मात्र शक की बिनाह पे हत्या बारे!
आज तुम मुसलमानों को मार रहे हो, कल को जब तुम्हारे अपने माता-पिताओं को बूढ़े गाय-बैल को कसाइयों को बेचते या आवारा छोड़ते देखोगे तो क्या उनको भी काट डालोगे?
आरएसएस और बीजेपी ने हरयाणा में बड़ी कोशिश करी खट्टर साहब के हाथों उल्टे-सीधे बयान दिलवा के जाटों को दबाव में ले के उनका इस्तेमाल करने की, परन्तु हरयाणा के जाट इनकी चालों को भांप गए और इनके चक्कर में नहीं फंसे|
खट्टर साहब से बयान दिलवाया गया कि "जाट लठ के जोर पे हक़ लेने वाले हैं", फिर भी जाट नहीं उकसे तो फिर बयान दिलवाया कि "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर होते हैं!"
इनका हरयाणवी वाला बयान आना था और खट्टर साहब ऐसे घिरे कि खुद इनकी एथनिक आइडेंटिटी घेरे में डाल दी जाटों ने|
अब जब हरयाणा में दाल नहीं गली तो बिहार के इलेक्शन के लिए कहीं तो तुष्टिकरण करना था| फिर देखा कि इधर तो पश्चिमी यूपी का जाट भी इनकी चालों को भांप चुका है तो अब किसका इस्तेमाल करें| और वो जा करवाया बिसाहड़ा, दादरी में आप राजपूतों का इस्तेमाल|
आप लोगों को समझना चाहिए कि जाट-राजपूतों में राजे-रजवाड़े परिवार की तो जनसंख्या 1-2% भी नहीं है| 98-99% जाट-राजपूत किसान हैं और हमारी इकॉनमी खेती से चलती है, जुबान के ब्यान और काल्पनिक सगूफों की बनिस्पद नहीं| इसलिए मुस्लिमों से मिलके रहो और सर छोटूराम से ले के बाबा टिकैत तक का किसानी एकता का "मजगर" जमाना याद रखो|
आपके खेतों में आपको सहयोग देने, काम में हाथ बंटाने या करवाने कोई मंदिर का पुजारी, दुकान पे बैठा व्यापारी या तथाकथित राष्ट्रभगत नहीं आने वाला, यही मुस्लिम-दलित भाइयों के साथ इकनोमिक एक्सचेंज में मिलके काम करके ही हम हरयाणा और पश्चिमी यूपी की बेल्ट को देश का अनाज का कटोरा बना पाये हैं| आखिर सर छोटूराम से ले के बाबा टिकैत के जमाने तक भी तो सब शांतिपूर्ण रहे तो अब ऐसी क्या बिजली टूट पड़ी है जो हम शांति से नहीं रह सकते|
जब एक किसान का गाय-बैल-भैंस या भैंसा बूढ़ा हो जाता है तो उसको कसाईयों को ही खुद किसान (जाट और राजपूत या किसी भी जाति के) ही बेचते रहे हैं और आज भी बेचते हैं| अब या तो इन पुजारियों-महंतों-संतों से पूछो कि क्या उन बूढ़े हुए गाय-बैल-भैंस को अब से कसाइयों की जगह यह लोग हमसे खरीद के मंदिरों में बांधा करेंगे अन्यथा क्यों किसान के इकनोमिक साइकिल के ही विरुद्ध चल रहे हो? अपने ही इकनोमिक साइकिल को तोड़ के किसानी अर्थव्यवस्था को लात मार रहे| पहले से ही मंडी की मार में मरे जा रहे अपने ही किसान माता-पिता की और कमर क्यों तोडना चाहते हो अपने ही हाथों?
ठीक है धर्म वालों से जिम्मेदारी तय करवा दो कि बूढ़े हुए गाय-बैल को आज से मंदिर खरीदा करेंगे तो हम सुनिश्चित करते हैं कि कहीं किसी भी गाय-बैल की कसाइयों के हाथों हत्या नहीं होने देंगे अन्यथा धर्म बंद करे यह पशुप्रेम की कोप-कल्पित लीला| जब किसान एक बूढी, पुरानी या जर्जर हो चुकी मशीन तक को बेच देता है, एक कार वाला कार को पुरानी होने पे बेच देता है जो कि उनको जब तक चलती है तब तक जीवन का हर सुख और कमाई देती है तो किसान का भी ऐसा ही मामला है वो एक पशु को आजीवन अपने यहां बाँध के नहीं रख सकता|
वही बात एक किसान इतना तो कर सकता है कि अगर इन धर्म वालों को गाय-बैल इतने ही प्यारे लगते हैं तो बूढ़े होने पे इनके द्वारों पे बाँध दिया करेंगे| अगर यह धर्म वाले इसकी जिम्मेदारी लेते हैं तो ठीक है अन्यथा अपने किसानी पेशे की तरफ भी देख लो| इनको भिक्षा में देने के लिए अन्न किसान को पैदा करना, फिर जब किसान अन्न बेच के पैसा लावे तो यह लोग उसमें भी दान के नाम का हिस्सा अपेक्षित करते हैं| आखिर यह लोग खुद से बनाते क्या हैं अन्न और दान रूपी इन संसाधनों के नाम पे? एक तो अन्न के पहले से ही दाम नहीं मिल रहे और अब बूढ़े पशु भी नहीं बेचेंगे तो इनके पेट के लिए अन्न और दान के लिए धन कहाँ से देंगे किसान, वैसे ही मंडी और सरकार ने आपके किसान माता-पिता की पहले से ही कमर तोड़ रखी है|
इतना बड़ा इतिहास साक्षी पड़ा इन द्वारा आपका इस्तेमाल किये जाने का, उससे ही कुछ सीख ले लो और अपनी जाति के किसान वर्ग पे कुछ रहम करो, वरना यह लोग आपकी जमीनों तक की कुर्की करवा के छोड़ेंगे, कहाँ यह धार्मिक पौरुषता की पीपनी बजाते घूम रहे| अति हर चीज की सिर्फ बुरी ही नहीं अपितु आत्मघाती होती है और किसान की औलाद होते हुए किसानी इकनोमिक चक्कर को तोड़ के आप उसको खुद ही साबित किये जा रहे हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
आज तुम मुसलमानों को मार रहे हो, कल को जब तुम्हारे अपने माता-पिताओं को बूढ़े गाय-बैल को कसाइयों को बेचते या आवारा छोड़ते देखोगे तो क्या उनको भी काट डालोगे?
आरएसएस और बीजेपी ने हरयाणा में बड़ी कोशिश करी खट्टर साहब के हाथों उल्टे-सीधे बयान दिलवा के जाटों को दबाव में ले के उनका इस्तेमाल करने की, परन्तु हरयाणा के जाट इनकी चालों को भांप गए और इनके चक्कर में नहीं फंसे|
खट्टर साहब से बयान दिलवाया गया कि "जाट लठ के जोर पे हक़ लेने वाले हैं", फिर भी जाट नहीं उकसे तो फिर बयान दिलवाया कि "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर होते हैं!"
इनका हरयाणवी वाला बयान आना था और खट्टर साहब ऐसे घिरे कि खुद इनकी एथनिक आइडेंटिटी घेरे में डाल दी जाटों ने|
अब जब हरयाणा में दाल नहीं गली तो बिहार के इलेक्शन के लिए कहीं तो तुष्टिकरण करना था| फिर देखा कि इधर तो पश्चिमी यूपी का जाट भी इनकी चालों को भांप चुका है तो अब किसका इस्तेमाल करें| और वो जा करवाया बिसाहड़ा, दादरी में आप राजपूतों का इस्तेमाल|
आप लोगों को समझना चाहिए कि जाट-राजपूतों में राजे-रजवाड़े परिवार की तो जनसंख्या 1-2% भी नहीं है| 98-99% जाट-राजपूत किसान हैं और हमारी इकॉनमी खेती से चलती है, जुबान के ब्यान और काल्पनिक सगूफों की बनिस्पद नहीं| इसलिए मुस्लिमों से मिलके रहो और सर छोटूराम से ले के बाबा टिकैत तक का किसानी एकता का "मजगर" जमाना याद रखो|
आपके खेतों में आपको सहयोग देने, काम में हाथ बंटाने या करवाने कोई मंदिर का पुजारी, दुकान पे बैठा व्यापारी या तथाकथित राष्ट्रभगत नहीं आने वाला, यही मुस्लिम-दलित भाइयों के साथ इकनोमिक एक्सचेंज में मिलके काम करके ही हम हरयाणा और पश्चिमी यूपी की बेल्ट को देश का अनाज का कटोरा बना पाये हैं| आखिर सर छोटूराम से ले के बाबा टिकैत के जमाने तक भी तो सब शांतिपूर्ण रहे तो अब ऐसी क्या बिजली टूट पड़ी है जो हम शांति से नहीं रह सकते|
जब एक किसान का गाय-बैल-भैंस या भैंसा बूढ़ा हो जाता है तो उसको कसाईयों को ही खुद किसान (जाट और राजपूत या किसी भी जाति के) ही बेचते रहे हैं और आज भी बेचते हैं| अब या तो इन पुजारियों-महंतों-संतों से पूछो कि क्या उन बूढ़े हुए गाय-बैल-भैंस को अब से कसाइयों की जगह यह लोग हमसे खरीद के मंदिरों में बांधा करेंगे अन्यथा क्यों किसान के इकनोमिक साइकिल के ही विरुद्ध चल रहे हो? अपने ही इकनोमिक साइकिल को तोड़ के किसानी अर्थव्यवस्था को लात मार रहे| पहले से ही मंडी की मार में मरे जा रहे अपने ही किसान माता-पिता की और कमर क्यों तोडना चाहते हो अपने ही हाथों?
ठीक है धर्म वालों से जिम्मेदारी तय करवा दो कि बूढ़े हुए गाय-बैल को आज से मंदिर खरीदा करेंगे तो हम सुनिश्चित करते हैं कि कहीं किसी भी गाय-बैल की कसाइयों के हाथों हत्या नहीं होने देंगे अन्यथा धर्म बंद करे यह पशुप्रेम की कोप-कल्पित लीला| जब किसान एक बूढी, पुरानी या जर्जर हो चुकी मशीन तक को बेच देता है, एक कार वाला कार को पुरानी होने पे बेच देता है जो कि उनको जब तक चलती है तब तक जीवन का हर सुख और कमाई देती है तो किसान का भी ऐसा ही मामला है वो एक पशु को आजीवन अपने यहां बाँध के नहीं रख सकता|
वही बात एक किसान इतना तो कर सकता है कि अगर इन धर्म वालों को गाय-बैल इतने ही प्यारे लगते हैं तो बूढ़े होने पे इनके द्वारों पे बाँध दिया करेंगे| अगर यह धर्म वाले इसकी जिम्मेदारी लेते हैं तो ठीक है अन्यथा अपने किसानी पेशे की तरफ भी देख लो| इनको भिक्षा में देने के लिए अन्न किसान को पैदा करना, फिर जब किसान अन्न बेच के पैसा लावे तो यह लोग उसमें भी दान के नाम का हिस्सा अपेक्षित करते हैं| आखिर यह लोग खुद से बनाते क्या हैं अन्न और दान रूपी इन संसाधनों के नाम पे? एक तो अन्न के पहले से ही दाम नहीं मिल रहे और अब बूढ़े पशु भी नहीं बेचेंगे तो इनके पेट के लिए अन्न और दान के लिए धन कहाँ से देंगे किसान, वैसे ही मंडी और सरकार ने आपके किसान माता-पिता की पहले से ही कमर तोड़ रखी है|
इतना बड़ा इतिहास साक्षी पड़ा इन द्वारा आपका इस्तेमाल किये जाने का, उससे ही कुछ सीख ले लो और अपनी जाति के किसान वर्ग पे कुछ रहम करो, वरना यह लोग आपकी जमीनों तक की कुर्की करवा के छोड़ेंगे, कहाँ यह धार्मिक पौरुषता की पीपनी बजाते घूम रहे| अति हर चीज की सिर्फ बुरी ही नहीं अपितु आत्मघाती होती है और किसान की औलाद होते हुए किसानी इकनोमिक चक्कर को तोड़ के आप उसको खुद ही साबित किये जा रहे हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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