हरयाणा के सीएम साहब और आरएसएस के शिष्य जी अगर आप हरयाणवी एथनिक
आइडेंटिटी के लोगों को कंधे से ऊपर कमजोर बोलेंगे तो आरएसएस नहीं लगती
म्हारी छोटी साली भी (हरयाणवी में इसका मतलब है हमें आरएसएस से कोई मतलब
नहीं)|
सीएम साहब, हरयाणवियों ने तो अपने हरयाणा रुपी उपवन को सदा इतना शांतिप्रिय बना के रखा कि नागपुरी पेशवा विचारधारा के तहत मुंबई में मराठी बनाम गैर-मराठी के नाम पे पीट के भगाए गए बिहारी-बंगाली-असामी भाइयों को भी हमारा राज्य भाषावाद-क्षेत्रवाद-नश्लवाद से रहित लगा और इस खापलैंड पे आन बसे| तो फिर "हरयाणवी कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं का बयान दे के" आप क्या तस्वीर पेश करना चाहते हैं उनके आगे हरयाणा की?
आज के दिन जितने सौहार्द से हर हरयाणवी अपने पूर्वोत्तरी भाईयों के साथ अपना रोजगार और संसाधन बँटवाता है ऐसे ही हमने आप के समाज के लोगों के लिए इतिहास में कई बार किया है|
याद कीजिये इतिहास में हरयाणवियों ने जो आपका साथ दिया था| 1947 में जो हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे वो हमने सीमा के इस पार हमारी ख़ुशी के लिए नहीं किये थे अपितु जब उन्होंने आप द्वारा उनके लिए जमाने से रखे जाते आ रहे द्वेष वाले व्यवहार (शायद उसी लाइन पे आप अब इधर भी चल रहे हो) की भड़ास निकालने हेतु आप लोगों को जलाना-फूंकना शुरू किया तो उसके जवाब में हमें यह मार-काट सीमा के इस पार मचानी पड़ी थी और तभी आप लोग पाकिस्तान से जिन्दा बचकर भारत आ पाये थे|
फिर जब 1984-86 में पंजाब (वैसे आप खुद को पंजाबी कहते हुए नहीं थकते, जबकि आप वास्तविक पंजाबी होते तो पंजाब वाले भाई आपको वहाँ से भगाते नहीं| और वैसे भी बाई डिफ़ॉल्ट आधा पंजाबी तो मैं भी हूँ, क्योंकि 1966 से पहले हरयाणा-पंजाब एक ही थे) में असली और वास्तविक पंजाबियों ने आपके इसी द्वेषपूर्ण रवैये से तंग आ के आपको हरयाणा की तरफ खदेड़ दिया और हमने दूसरी बार फिर से बड़ा जिगर दिखाते हुए आपको हमारे यहां के अम्बाला-दिल्ली जीटी रोड पे बसासत में मदद की|
तो भाई, अब भाषावाद-क्षेत्रवाद-नश्लवाद के नाम पर हरयाणवियों का तो इतिहास रहा नहीं कि हमने किसी को मारा हो, परन्तु फिर भी नागपुरी पेशवा विचारधारा से आपका चरित्र और गुण हूबहू मेल खाते हैं| तो आप ऐसा क्यों नहीं करते कि वहीँ उनके पास ही शिफ्ट हो जाओ महाराष्ट्र में? ताकि हम हरयाणवियों को तो चैन की सांस मिले कम-से-कम|
हरयाणवी मनमर्जी से तो दे दे भेलि भी परन्तु आई पे देवें ना गन्ना भी| अत:आरएसएस कोई हमारी छोटी साली (हरयाणवी में इसका मतलब है हमें आरएसएस से कोई मतलब नहीं) ना लगती जो अगर आप उसके बहम और शिक्षा के चलते यहां यह द्वेष फैलाने के एजेंट बने हुए हों तो| हरयाणवियों की दरियादिली और हरयाणा की परम्परा को समझो और आरएसएस की शिक्षा छोड़ के अपने हरयाणवी उपवन को हरयाणवी परम्परा के तहत और खुशहाल बनाओ|
आपको समझना चाहिए कि जब आरएसएस इनकी हेडक्वार्टर स्टेट यानी महाराष्ट्र में ही इनके फेवरेट नारे "हिन्दू एकता और बराबरी" को लागू नहीं करवाती या करवा सकती तो हमें क्या खा एकता और बराबरी सिखाएगी| और क्योंकि यह सामाजिक एकता और बराबरी का गुण हर हरयाणवी में बाई-डिफ़ॉल्ट होता है इसलिए हम आरएसएस की विचारधारा से इतने ज्यादा प्रभावित भी नहीं हैं| वही बात आरएसएस की शिक्षा अगर आपको यह भी तमीज नहीं सिखाती कि एक स्टेट की एथनिक आइडेंटिटी का आदर-मान कैसे संजों के रखा जाता है तो आरएसएस नहीं लगती म्हारी छोटी साली भी|
विशेष: हालाँकि मैं खुद भी इस लेख को सीएम साहब तक पहुँचाने की कोशिश में हूँ, फिर भी इसको सीएम साहब तक फॉरवर्ड करने या पहुँचाने वाले का धन्यवाद!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
सीएम साहब, हरयाणवियों ने तो अपने हरयाणा रुपी उपवन को सदा इतना शांतिप्रिय बना के रखा कि नागपुरी पेशवा विचारधारा के तहत मुंबई में मराठी बनाम गैर-मराठी के नाम पे पीट के भगाए गए बिहारी-बंगाली-असामी भाइयों को भी हमारा राज्य भाषावाद-क्षेत्रवाद-नश्लवाद से रहित लगा और इस खापलैंड पे आन बसे| तो फिर "हरयाणवी कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं का बयान दे के" आप क्या तस्वीर पेश करना चाहते हैं उनके आगे हरयाणा की?
आज के दिन जितने सौहार्द से हर हरयाणवी अपने पूर्वोत्तरी भाईयों के साथ अपना रोजगार और संसाधन बँटवाता है ऐसे ही हमने आप के समाज के लोगों के लिए इतिहास में कई बार किया है|
याद कीजिये इतिहास में हरयाणवियों ने जो आपका साथ दिया था| 1947 में जो हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे वो हमने सीमा के इस पार हमारी ख़ुशी के लिए नहीं किये थे अपितु जब उन्होंने आप द्वारा उनके लिए जमाने से रखे जाते आ रहे द्वेष वाले व्यवहार (शायद उसी लाइन पे आप अब इधर भी चल रहे हो) की भड़ास निकालने हेतु आप लोगों को जलाना-फूंकना शुरू किया तो उसके जवाब में हमें यह मार-काट सीमा के इस पार मचानी पड़ी थी और तभी आप लोग पाकिस्तान से जिन्दा बचकर भारत आ पाये थे|
फिर जब 1984-86 में पंजाब (वैसे आप खुद को पंजाबी कहते हुए नहीं थकते, जबकि आप वास्तविक पंजाबी होते तो पंजाब वाले भाई आपको वहाँ से भगाते नहीं| और वैसे भी बाई डिफ़ॉल्ट आधा पंजाबी तो मैं भी हूँ, क्योंकि 1966 से पहले हरयाणा-पंजाब एक ही थे) में असली और वास्तविक पंजाबियों ने आपके इसी द्वेषपूर्ण रवैये से तंग आ के आपको हरयाणा की तरफ खदेड़ दिया और हमने दूसरी बार फिर से बड़ा जिगर दिखाते हुए आपको हमारे यहां के अम्बाला-दिल्ली जीटी रोड पे बसासत में मदद की|
तो भाई, अब भाषावाद-क्षेत्रवाद-नश्लवाद के नाम पर हरयाणवियों का तो इतिहास रहा नहीं कि हमने किसी को मारा हो, परन्तु फिर भी नागपुरी पेशवा विचारधारा से आपका चरित्र और गुण हूबहू मेल खाते हैं| तो आप ऐसा क्यों नहीं करते कि वहीँ उनके पास ही शिफ्ट हो जाओ महाराष्ट्र में? ताकि हम हरयाणवियों को तो चैन की सांस मिले कम-से-कम|
हरयाणवी मनमर्जी से तो दे दे भेलि भी परन्तु आई पे देवें ना गन्ना भी| अत:आरएसएस कोई हमारी छोटी साली (हरयाणवी में इसका मतलब है हमें आरएसएस से कोई मतलब नहीं) ना लगती जो अगर आप उसके बहम और शिक्षा के चलते यहां यह द्वेष फैलाने के एजेंट बने हुए हों तो| हरयाणवियों की दरियादिली और हरयाणा की परम्परा को समझो और आरएसएस की शिक्षा छोड़ के अपने हरयाणवी उपवन को हरयाणवी परम्परा के तहत और खुशहाल बनाओ|
आपको समझना चाहिए कि जब आरएसएस इनकी हेडक्वार्टर स्टेट यानी महाराष्ट्र में ही इनके फेवरेट नारे "हिन्दू एकता और बराबरी" को लागू नहीं करवाती या करवा सकती तो हमें क्या खा एकता और बराबरी सिखाएगी| और क्योंकि यह सामाजिक एकता और बराबरी का गुण हर हरयाणवी में बाई-डिफ़ॉल्ट होता है इसलिए हम आरएसएस की विचारधारा से इतने ज्यादा प्रभावित भी नहीं हैं| वही बात आरएसएस की शिक्षा अगर आपको यह भी तमीज नहीं सिखाती कि एक स्टेट की एथनिक आइडेंटिटी का आदर-मान कैसे संजों के रखा जाता है तो आरएसएस नहीं लगती म्हारी छोटी साली भी|
विशेष: हालाँकि मैं खुद भी इस लेख को सीएम साहब तक पहुँचाने की कोशिश में हूँ, फिर भी इसको सीएम साहब तक फॉरवर्ड करने या पहुँचाने वाले का धन्यवाद!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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