Monday, 26 October 2015

बाजैंगी एड, उठैंगी धणक, गूँजेंगी बीन, नाचैंगे छैल!

ब्रज से ले कुरु और मरू से ले दोआब, हरयाणे के अट्टहासों का गजब उमड़ैगा सैलाब।
27 तैं 30 अक्टूबर कुवि कुरुक्षेत्र माह, जाटू अल्हड़ता निसरैगी ला ख़्वाबां कैं पाँख।।

हरयाणवी संस्कृति, सभ्यता और लोक-कला के सबसे बड़े समागम के साक्षी बनना व् इसको आत्मसात करना ना भूलें!

विशेष:
1) आशा है कि हरयाणवियों को कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहने वाले बेगैरत अपना आत्मसम्मान कायम रखते हुए, इस समागम से दूर रहेंगे।
2) काफी साहित्यकारों व् इतिहासकारों ने हरयाणवी सभ्यता को जाटू सभ्यता का नाम दिया है, इन दोनों शब्दों को एक दूसरे का धोतक कहा है। इसलिए यहाँ इस शब्द का प्रयोग किसी जाति का नहीं अपितु सभ्यता और संस्कृति का सूचक है। संकुचित दिमाग के लोग इसमें जात-पात ना ढूंढें।

जय यौद्धेय! - जय हरयाणा! - जय हरयाणवी! - जय हरयाणत!

फूल मलिक








 

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