अपनी जाति पर गर्व करना, उसकी
सकारात्मकता का प्रचार करना जातिवाद नहीं होता, अपितु दूसरे की जाति से
अपनी जाति की प्रतिस्पर्धात्मक तुलना करना, दूसरे की जाति के बारे बिना वजह
भला-बुरा कहना, उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचना, उसके बारे नकारात्मक प्रचार
करना जातिवाद होता है|
जातिवाद यह नहीं है जो मैं जाट के बारे उपर्लिखित परिभाषा की परिधि में रहते हुए लिखता हूँ, अपितु जातिवाद वह है जो मीडिया जाट (साथ ही खाप को भी लपेटता है) के बारे बरतता है, जातिवाद वह है जो खट्टर साहब जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो राजकुमार सैनी जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो मोदी हरयाणा में चुनाव-प्रचार करते हुए जाट के बारे बोलते हैं|
इतनी बड़ी-बड़ी हस्तियों और ज्ञानियों द्वारा जाट जाति की छवि, समाज में उसके ऐतिहासिक-सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक-आध्यात्मिक योगदानों और अस्तित्व पर प्रहारों को बिना उनकी जातियों को उनकी तरह कटघरे में खींचे, उनको जवाब देना और अपनी जाति का सकारात्मक पक्ष समाज के आगे रखना जातिवाद कैसे हो सकता है?
एक मुख्यमंत्री, एक प्रधानमंत्री, एक एम.पी. और एक खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला लगभग समस्त समूह अगर जातिवाद करे तो बोलना बनता है, श्रीमान| आम लोग बोलें तो मायने नहीं रखता परन्तु ऐसे ओहदों और किरदारों पर बैठे लोग बोलें तो डैमेज कंट्रोल जितना बोलना तो बनता ही है|
ऐसा इंसान अथवा समूह सिर्फ मेरा तो क्या समाज में किसी का भी शुभचिंतक नहीं हो सकता| क्योंकि जब वो किसी समाज पे ऊँगली उठाता है तो सैंकड़ों-हजारों उँगलियाँ अपने समाज पे भी खड़ी करवा लेता है, कम से कम प्रश्नात्मक बोहें तो जरूर तनवा लेता है| और मैंने तो फिर भी किसी के समाज पे उँगलियाँ नहीं उठाई, सिर्फ वही कहा जो ऐसी परिस्थिति में कहना बनता है|
इसलिए मेरे मुंह से जाट शब्द निकलते ही चील-कव्वों की भांति झपटने से पहले यह जरूर देखो कि इसने सिर्फ कहने वाले को जवाब देते हुए अपना बचाव किया है, तुम्हारा दुष्प्रचार नहीं|
फूल मलिक
जातिवाद यह नहीं है जो मैं जाट के बारे उपर्लिखित परिभाषा की परिधि में रहते हुए लिखता हूँ, अपितु जातिवाद वह है जो मीडिया जाट (साथ ही खाप को भी लपेटता है) के बारे बरतता है, जातिवाद वह है जो खट्टर साहब जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो राजकुमार सैनी जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो मोदी हरयाणा में चुनाव-प्रचार करते हुए जाट के बारे बोलते हैं|
इतनी बड़ी-बड़ी हस्तियों और ज्ञानियों द्वारा जाट जाति की छवि, समाज में उसके ऐतिहासिक-सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक-आध्यात्मिक योगदानों और अस्तित्व पर प्रहारों को बिना उनकी जातियों को उनकी तरह कटघरे में खींचे, उनको जवाब देना और अपनी जाति का सकारात्मक पक्ष समाज के आगे रखना जातिवाद कैसे हो सकता है?
एक मुख्यमंत्री, एक प्रधानमंत्री, एक एम.पी. और एक खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला लगभग समस्त समूह अगर जातिवाद करे तो बोलना बनता है, श्रीमान| आम लोग बोलें तो मायने नहीं रखता परन्तु ऐसे ओहदों और किरदारों पर बैठे लोग बोलें तो डैमेज कंट्रोल जितना बोलना तो बनता ही है|
ऐसा इंसान अथवा समूह सिर्फ मेरा तो क्या समाज में किसी का भी शुभचिंतक नहीं हो सकता| क्योंकि जब वो किसी समाज पे ऊँगली उठाता है तो सैंकड़ों-हजारों उँगलियाँ अपने समाज पे भी खड़ी करवा लेता है, कम से कम प्रश्नात्मक बोहें तो जरूर तनवा लेता है| और मैंने तो फिर भी किसी के समाज पे उँगलियाँ नहीं उठाई, सिर्फ वही कहा जो ऐसी परिस्थिति में कहना बनता है|
इसलिए मेरे मुंह से जाट शब्द निकलते ही चील-कव्वों की भांति झपटने से पहले यह जरूर देखो कि इसने सिर्फ कहने वाले को जवाब देते हुए अपना बचाव किया है, तुम्हारा दुष्प्रचार नहीं|
फूल मलिक
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