Wednesday, 28 October 2015

मैच्योर और इम्मैच्योर राजनीति में फर्क!

अमेरिका में बाप-बेटे जॉर्ज बुश की जोड़ी राष्ट्रपति बनती है, लोग इसमें कोई वंशवाद नहीं ढूंढते और ना ही राजनैतिक प्रतिध्वंधी इसमें वंशवाद उछालते|

जबकि भारत में कांग्रेस हो, भाजपा हो, कम्युनिस्ट हों चाहे जो दल हो, खुद तो ऐसे एंगल्स को एक्सपोज करेंगे ही करेंगे, साथ-साथ जनता भी उनके सुर-में-सुर मिलाने लग जाती है|

ताज्जुब है कि जाति और वर्ण-व्यवस्था में जीने वाले हम लोग, जो जिस कुल-कर्म-वर्ण-जाति-लिंग में पैदा हुआ है उसके लिए उसी कर्म की वकालत करने वाले हम लोगों को इलेक्शन के जरिये चुन के, आने वाले एक राजनैतिक परिवार से दूसरी पीढ़ी का नेता तक मंजूर नहीं होता?

क्या जाति और वर्णव्यवस्था से खत्म करवा दिया इस सिस्टम को जो लेते हो और पॉलिटिक्स में ही इस बीमारी को उठाये रहते हो? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक पुजारी चरित्रवान और योग्य है कि नहीं, उसका बेटा-पोता भी उसके जितना ही चरित्रवान और योग्य है कि नहीं? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक व्यापारी सूदखोर, जमाखोर व् मिलावट का सामान बेचने वाला तो नहीं है, या उसका बेटा-पोता इस मामले में कैसा है? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि अफसर लोग भाईभतीजावाद, जातिवाद, घोटालेबाज है कि नहीं?

जो देश की राजनीति का चरित्र बनाने और बनने के कारक हैं, देश की राजनैतिक पौध कैसी होगी, इन ऊपर बताये इन कारकों पर भी नजर रखो तो अमेरिका की तरह बिना दुविधा के एक ही वंश के दो बाप-बेटे राष्ट्रपति की पोस्ट पर चल जायेंगे|

असल सच्चाई यही है जातिवाद और वर्णवाद से पीड़ित हमारा समाज और उसकी नब्ज जानने वाले नेता, जानबूझकर ध्यान पलटते हैं जनता का| अरे किसी का बेटा-बेटी नेता बनेगा या नहीं यह तो आपको ही वोट के जरिये निर्धारित करना है ना, वो कोई धक्के से तो जा के नहीं बैठता किसी राजनैतिक कुर्सी पर, जनता आदेश देती है, चुनती है तो ही तो वहाँ तक पहुँचता/पहुंचती है?

यह ना ही तो दादा-लाही खेती है, ना ही दादा-लाही पंडताई, ना ही दादा-लाही साहूकारी, ना ही दादा-लाही दुकानदारी, ना ही दादा-लाही भंगारी, ना ही दादा-लाही दलिताई कि मन हो ना हो झेलनी ही पड़ेगी|

अगर चुनावी प्रक्रिया में कोई झोल है तो उसको ठीक करवाया जाने पे जोर दिया जाना चाहिए, वरना यह कोई श्राप थोड़े ही है कि कोई किसी राजनेता की औलाद हो गया तो वो राजनेता नहीं बन सकता|

फूल मलिक

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