Tuesday, 15 December 2015

मनुष्य के मरने के बाद उसकी आत्मा के लिए पितृ भोज रखा जाता है|

अब देखिये:

ब्राह्मण का बाप ब्राह्मण ......
बनिया का बाप बनिया ......
राजपूत का बाप राजपूत ......
चमार का बाप चमार ......
धानक का बाप धानक ......
नाई का बाप नाई ......
जाट का बाप जाट ......
तेली का बाप तेली ......

यानी सभी अलग-अलग जाति के! तो फिर मरने के बाद सबका बाप कौवा कैसे?

किसी का बाप हंस होना चाहिए, किसी का बगुला होना चाहिए, किसी का मोर होना चाहिए, किसी का बत्तक होना चाहिए, किसी का चील होना चाहिए, किसी का चिड़िया होना चाहिए; नहीं?

जिन्दा रहते हुए मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव और मरने के बाद समानता, ऐसा क्यों? जीते-जी जिसको अछूत कहके दुत्कारते रहे, मरने के बाद उसका भी बाप कौवा ही बना दिया?

पाखंड की माया की इस काया का है किसी अंधभक्त के पास जवाब?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: