लोकतंत्रवाद को छोड़ के जातपात के द्वेष में डूबे अधिनायकवाद के पीछे दौड़ने से ऐसे घाघ आपके ऊपर थोंप दिए जाते हैं जैसे मोदी ने हरयाणा वालों पे थोंपा है| जाटों की तो छोड़ो, हरयाणा के नॉन-जाट किसान-पिछड़ा-दलित तक ने जिस आस में इनके 'एक ही जाति के राज से मुक्ति" वाले जुमले में फंस के (यह जुमला इसी पार्टी के 'हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे पर भी हावी पड़ा था) इनको वोट किये थे, उनसे जानना चाहिए कि जाटों से छींटक के वोट करने से विगत डेड-पौने दो साल में आपकी जाति में कितना ज्यादा नौकरियां आई हैं या प्रमोशन मिल चुके हैं? इनको वोट देने की ऐवज में फसलों के दाम कितने बढ़ा के मिल चुके हैं आपको? हिसाब-किताब रखियेगा, पांच साल बाद काम आएगा| बाकी जाट नॉन-जाट के चक्कर में अपनी हरयाणवी सभ्यता-संस्कृति-भाईचारे की वाट जो लगवा बैठे हैं वो अलग से| दुआ है कि जिस उम्मीद में जाट से नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा छींटके थे वो जरूर पूरी हो जावे|
अभी तक तो "दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर सारी रोटी खा रहे हैं!" वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है| और इनको आगे बढ़के वोट देने वाले, इनको रोक भी नहीं पा रहे| यह ना हमारे हरयाणवी मूल के हैं और ना ही हरयाणा से प्रेम और इसकी इज्जत करने वाले, बल्कि हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" बोल के हमारी-आपकी खिल्ली उड़ा रहे हैं| आपके-हमारे संसाधनों और रोजगारों का एकमुश्त दोहन कर रहे हैं| मेरे ख्याल से जाट से मात्र चिड़ के नाम पे इनको वोट करने वालों को कुदरत ने करारा जवाब दिया है| और दिखाया है कि कैसे जाती-द्वेष में पड़ के चलने से दूसरे को सबक सीखा पाओ या नहीं, परन्तु अपने घर जरूर बेगैरत की घुटन को निमंत्रित कर बैठते हैं| अभी बोल भले ही कोई ना रहा हो, परन्तु यह घुटन हर नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा हरयाणवी के घर में साफ़ महसूस की जा सकती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
अभी तक तो "दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर सारी रोटी खा रहे हैं!" वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है| और इनको आगे बढ़के वोट देने वाले, इनको रोक भी नहीं पा रहे| यह ना हमारे हरयाणवी मूल के हैं और ना ही हरयाणा से प्रेम और इसकी इज्जत करने वाले, बल्कि हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" बोल के हमारी-आपकी खिल्ली उड़ा रहे हैं| आपके-हमारे संसाधनों और रोजगारों का एकमुश्त दोहन कर रहे हैं| मेरे ख्याल से जाट से मात्र चिड़ के नाम पे इनको वोट करने वालों को कुदरत ने करारा जवाब दिया है| और दिखाया है कि कैसे जाती-द्वेष में पड़ के चलने से दूसरे को सबक सीखा पाओ या नहीं, परन्तु अपने घर जरूर बेगैरत की घुटन को निमंत्रित कर बैठते हैं| अभी बोल भले ही कोई ना रहा हो, परन्तु यह घुटन हर नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा हरयाणवी के घर में साफ़ महसूस की जा सकती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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