राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य, वीके सिंह और राव इंद्रजीत, अगर आपमें से
कोई सा भी नीचे लिखे का छटांक भर भी कर जाओ तो हरयाणा का अगला सीएम हेतु
आपका प्रचार करूँ|
एक सर छोटूराम ने जब दलित-पिछड़ा-किसान की राजनीति करी थी तो उत्तरी भारत के किसान-जमींदार की इतनी हैसियत बना दी थी कि बनिए तक किसान-जमींदार से ब्याज पे पैसा लेते थे, और हरयाणा में तो आज तक भी लेते हैं| उनके लाये कानूनों के बाद उत्तरी भारत में कोई दलित से बेगार नहीं करवा सकता था|
लेकिन अब कुदरत और राजनीति दोनों ने मौका और ताकत नॉन-जाट किसानी जातियों को सुपुर्द करी है| तो अब देखते हैं राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव जैसे किसान जातियों से आने वाले नेता दलित-पिछड़ा-किसान की हैसियत में कितना इजाफा करवा पाएंगे|
सर छोटूराम जैसा ही किस्सा रहा सरदार प्रताप सिंह कैरों का, चौधरी चरण सिंह का, ताऊ देवीलाल का, नत्थूराम मिर्धा का, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का और इनके जितना न सही परन्तु फिर भी अजित सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी जाते-जाते एक स्ट्रांग लैण्डबिल बनवा के दलित-पिछड़ा-किसान को मंडी-फंडी की क्रूर नीतियों से इतना तो सुरक्षित कर दिया कि कोई किसान की मर्जी के बिना और मनमानी कीमत पर उसकी जमीन नहीं हड़प सकता| और इस लैण्डबिल की अहमियत और हैसियत इसी बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी ने आते ही एक के बाद एक चार आर्डिनेंस पेश किये, इसको बदलने के लिए| शुक्र है भगवान का कि कामयाब नहीं हो सकी| परन्तु हुड्डा और अजित सिंह पर कई आरोप भी लगते हैं, फिर भी इनका यह कार्य किसान-जमींदार के लिए किसी वरदान से काम नहीं कहा जायेगा|
हरयाणा के ब्राह्मण में भी यह कैपेसिटी है कि वो किसान का नेता बन सकता है परन्तु हरयाणा का ब्राह्मण कभी बनारस तो कभी नागपुर वाले ब्राह्मणों की नीतियों/बातों में पड़ के इस बुलंदी को छूने से दूर रह जाता है|
अगर राजकुमार सैनी, रोशनलाल गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव में से कोई सा भी इनकी सरकार से इन ऊपर गिनाये जाटों के ऐवज का एक भी दलित-पिछड़ा-किसान हितैषी काम करवा देवें तो इनको हरयाणा का अगला सीएम बनने हेतु इनका प्रचार करूँ| वैसे बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी हो चुका है| इन्होनें तो लोगों के उस भ्रम को भी तोड़ दिया कि चलो रे बीजेपी में हैं तो क्या हुआ आखिर हैं तो जाट, दलित-पिछड़ा-किसान के लिए कुछ तो कर मरेंगे|
वैसे नॉन-जाट किसान जातियों के नेताओ, या तो कुछ काम करो, वर्ना सैनी और आर्य तो सीधे तौर पर और वीके सिंह और राव इंद्रजीत सिंह परोक्ष तौर पर जो जाट-विरोधी राजनीति करने वाले आप, इतना जरूर समझें कि आप मंडी-फंडी के बहकावे में पड़ जाट का विरोध करने से जाट का तो कोई नुक्सान कर रहे हो या नहीं वो बाद में देखा जायेगा, परन्तु दलित-पिछड़ा-किसान का सीधा-सीधा और बहुत भारी नुकसान जरूर कर रहे हो|
जाट को देवता वैसे ही नहीं कहा गया, मंडी-फंडी के मुंह से किसान-दलित-पिछड़े के हक का निवाला निकालने का रिवाज रखते आये हैं हम, इसलिए देवता कहलाये हैं हम| अब मौका आपके हाथों है, देखें किसान-दलित-पिछड़े के लिए देवता साबित होते हो या राक्षस|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
एक सर छोटूराम ने जब दलित-पिछड़ा-किसान की राजनीति करी थी तो उत्तरी भारत के किसान-जमींदार की इतनी हैसियत बना दी थी कि बनिए तक किसान-जमींदार से ब्याज पे पैसा लेते थे, और हरयाणा में तो आज तक भी लेते हैं| उनके लाये कानूनों के बाद उत्तरी भारत में कोई दलित से बेगार नहीं करवा सकता था|
लेकिन अब कुदरत और राजनीति दोनों ने मौका और ताकत नॉन-जाट किसानी जातियों को सुपुर्द करी है| तो अब देखते हैं राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव जैसे किसान जातियों से आने वाले नेता दलित-पिछड़ा-किसान की हैसियत में कितना इजाफा करवा पाएंगे|
सर छोटूराम जैसा ही किस्सा रहा सरदार प्रताप सिंह कैरों का, चौधरी चरण सिंह का, ताऊ देवीलाल का, नत्थूराम मिर्धा का, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का और इनके जितना न सही परन्तु फिर भी अजित सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी जाते-जाते एक स्ट्रांग लैण्डबिल बनवा के दलित-पिछड़ा-किसान को मंडी-फंडी की क्रूर नीतियों से इतना तो सुरक्षित कर दिया कि कोई किसान की मर्जी के बिना और मनमानी कीमत पर उसकी जमीन नहीं हड़प सकता| और इस लैण्डबिल की अहमियत और हैसियत इसी बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी ने आते ही एक के बाद एक चार आर्डिनेंस पेश किये, इसको बदलने के लिए| शुक्र है भगवान का कि कामयाब नहीं हो सकी| परन्तु हुड्डा और अजित सिंह पर कई आरोप भी लगते हैं, फिर भी इनका यह कार्य किसान-जमींदार के लिए किसी वरदान से काम नहीं कहा जायेगा|
हरयाणा के ब्राह्मण में भी यह कैपेसिटी है कि वो किसान का नेता बन सकता है परन्तु हरयाणा का ब्राह्मण कभी बनारस तो कभी नागपुर वाले ब्राह्मणों की नीतियों/बातों में पड़ के इस बुलंदी को छूने से दूर रह जाता है|
अगर राजकुमार सैनी, रोशनलाल गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव में से कोई सा भी इनकी सरकार से इन ऊपर गिनाये जाटों के ऐवज का एक भी दलित-पिछड़ा-किसान हितैषी काम करवा देवें तो इनको हरयाणा का अगला सीएम बनने हेतु इनका प्रचार करूँ| वैसे बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी हो चुका है| इन्होनें तो लोगों के उस भ्रम को भी तोड़ दिया कि चलो रे बीजेपी में हैं तो क्या हुआ आखिर हैं तो जाट, दलित-पिछड़ा-किसान के लिए कुछ तो कर मरेंगे|
वैसे नॉन-जाट किसान जातियों के नेताओ, या तो कुछ काम करो, वर्ना सैनी और आर्य तो सीधे तौर पर और वीके सिंह और राव इंद्रजीत सिंह परोक्ष तौर पर जो जाट-विरोधी राजनीति करने वाले आप, इतना जरूर समझें कि आप मंडी-फंडी के बहकावे में पड़ जाट का विरोध करने से जाट का तो कोई नुक्सान कर रहे हो या नहीं वो बाद में देखा जायेगा, परन्तु दलित-पिछड़ा-किसान का सीधा-सीधा और बहुत भारी नुकसान जरूर कर रहे हो|
जाट को देवता वैसे ही नहीं कहा गया, मंडी-फंडी के मुंह से किसान-दलित-पिछड़े के हक का निवाला निकालने का रिवाज रखते आये हैं हम, इसलिए देवता कहलाये हैं हम| अब मौका आपके हाथों है, देखें किसान-दलित-पिछड़े के लिए देवता साबित होते हो या राक्षस|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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