बताते हैं कि दादा फौजी मेहर सिंह की लोकप्रियता उनके समकालीन कवि पंडित
लख्मीचंद को रास नहीं आती थी और वो उनसे जल-भुन उठते थे| ऐसे ही एक दिन
आवेश में आकर एक सांग में फौजी मेहर सिंह की उनसे अधिक लोकप्रियता देख, कवि
लख्मीचंद ने फौजी मेहर सिंह को स्टेज से बेइज्जत करके उतार दिया|
तो फौजी मेहर सिंह भी ठहरे धुन के पक्के और लख्मीचंद के स्टेज के सामने ही अपना स्टेज लगा दिया| दोनों में मुकाबला हुआ और देखते-ही-देखते सारी भीड़ दादा फौजी जाट मेहर सिंह के पंडाल में चली गई और पंडित लख्मीचंद का पंडाल खाली हो गया|
उसी वाकये का जिक्र करते हुए उस महान पुण्यात्मा की याद में माननीय डॉक्टर रणबीर सिंह जी की यह रचना पढ़िए:
आह्मी-सयाह्मी:
मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले म्ह भिड़े बताये|
लखमी दादा नैं मेहरू धमकाया घणे कड़े शब्द सुणाए||
सुण दिल होग्या बेचैन गात म रही समाई कोन्या रै,
बोल का दर्द सह्या ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै|
सबकी साहमी डाट मारदी गलती लग बताई कोन्या रै,
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरू नैं भाई कोन्या रै||
सुणकें दादा की आच्छी-भुंडी उठ्कैं दूर-सी खरड़ बिछाये||
इस ढाळ का माहौल देख लोग एक-बै दंग होगे थे,
सोच-समझ लोग उठ लिए, दादा के माड़े ढंग होगे थे|
लख्मी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे,
लोगां नें सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे||
दादा लख्मी अपणी बात पै भोत घणा फेर पछताए||
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया,
दुखी करकें दादा नैं उसका दिल भी था उदास हुया|
दोनूं जणयां नैं उस दिन न्यारे ढाळ का आभास हुया,
आह्मा-सयाह्मी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया||
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वें कदे नजर नहीं आये||
गाया मेहर सिंह नैं दूर के ढोल सुहान्ने हुया करैं सें,
बिना विचार काम करें तैं, घणे दुःख ठाणे हुया करैं सें|
सारा जगत हथेळी पिटे यें लाख उल्हाणे हुया करैं सें,
तुकबन्दी लय-सुर चाहवै लोग रिझाणे हुया करैं सें||
रणबीर सिंह बरोणे आळए नैं सूझ-बूझ कें छंद बणाए||
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
तो फौजी मेहर सिंह भी ठहरे धुन के पक्के और लख्मीचंद के स्टेज के सामने ही अपना स्टेज लगा दिया| दोनों में मुकाबला हुआ और देखते-ही-देखते सारी भीड़ दादा फौजी जाट मेहर सिंह के पंडाल में चली गई और पंडित लख्मीचंद का पंडाल खाली हो गया|
उसी वाकये का जिक्र करते हुए उस महान पुण्यात्मा की याद में माननीय डॉक्टर रणबीर सिंह जी की यह रचना पढ़िए:
आह्मी-सयाह्मी:
मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले म्ह भिड़े बताये|
लखमी दादा नैं मेहरू धमकाया घणे कड़े शब्द सुणाए||
सुण दिल होग्या बेचैन गात म रही समाई कोन्या रै,
बोल का दर्द सह्या ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै|
सबकी साहमी डाट मारदी गलती लग बताई कोन्या रै,
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरू नैं भाई कोन्या रै||
सुणकें दादा की आच्छी-भुंडी उठ्कैं दूर-सी खरड़ बिछाये||
इस ढाळ का माहौल देख लोग एक-बै दंग होगे थे,
सोच-समझ लोग उठ लिए, दादा के माड़े ढंग होगे थे|
लख्मी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे,
लोगां नें सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे||
दादा लख्मी अपणी बात पै भोत घणा फेर पछताए||
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया,
दुखी करकें दादा नैं उसका दिल भी था उदास हुया|
दोनूं जणयां नैं उस दिन न्यारे ढाळ का आभास हुया,
आह्मा-सयाह्मी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया||
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वें कदे नजर नहीं आये||
गाया मेहर सिंह नैं दूर के ढोल सुहान्ने हुया करैं सें,
बिना विचार काम करें तैं, घणे दुःख ठाणे हुया करैं सें|
सारा जगत हथेळी पिटे यें लाख उल्हाणे हुया करैं सें,
तुकबन्दी लय-सुर चाहवै लोग रिझाणे हुया करैं सें||
रणबीर सिंह बरोणे आळए नैं सूझ-बूझ कें छंद बणाए||
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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