Thursday, 18 February 2016

35 बिरादरी का नारा उठाने वाले आखिर कौन हैं?

निचोड़: जाट इनके उल्टे नारे लगाओ और कहो कि वो स्टाम्प पेपर तो दिखाओ, जिसपे तुम्हें 35 बिरादरी का एकमुश्त समर्थन हासिल है।

व्याख्या: तो कौन हैं यह 35 बिरादरी का नारा लगाने वाले; सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री (यानी 3B) व् इन 3B द्वारा मनुवाद के चलते अकेले ना पड़ जाने के डर से इनके ही द्वारा बहकाये गए कुछ एक ओबीसी जातियों के कुछ धड़े|

अन्यथा ना ही तो दलितों का समर्थन है इन धक्के से 35 बिरादरी का नारा लगाने वाले मनुवादी विचारधारा वालों के साथ और ना ही रोड, बिश्नोई, त्यागी, जट्ट सिख, मुस्लिम जाट व् अन्य मुस्लिम, कुम्हार जैसी ओबीसी जातियों का|

हाँ 100% तो कोई भी जाति किसी एक खेमे में ना कभी रही और शायद ही कभी कोई ऐसी हो (सिवाए जब के कि जब कोई सर छोटूराम जैसा मसीहा अवतारे)| मैंने यह बात मेजोरिटी के आधार पर रखी है।

और जाट बिरादरी, इन 35 कौम का नारा लगाने वालों से विचलित ना होवे, जाटों ने इनको सदियों से टटोला और तोला है।

ना ही तो इनके साथ कोई ओबीसी, एससी/एसटी तब था जब ग़ज़नी ने सोमनाथ लूटा था, ना तब था जब गौरी आया था, ना ही तब जब मुग़ल आये और ना ही तब जब अंग्रेज आये (बल्कि उल्टा जाटों ने ही इनकी इन मौकों पे बार-बार लाज बचाई थी)। ना ही तब जब बाबा साहेब आंबेडकर थे, ना ही तब जब महात्मा ज्योतिबा फुले थे, ना ही तब जब सर छोटूराम थे। इनके साथ 35 बिरादरी थी ही कब, जरा मुझे एक तो ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री बता दे। ओबीसी, एससी/एसटी तो क्या, यह खुद भी ओबीसी, एससी/एसटी के साथ नहीं थे। यानि जितनी यह बात सुल्टे पल्ले सच है, उतनी ही उल्टे पल्ले सच।

मैं यह नहीं कहता कि ओबीसी और एससी/एसटी का जाटों से कभी मनमुटाव ना रहा हो परन्तु जाट, ओबीसी और एससी/एसटी तब भी एक थे जब गौतम बुद्ध का जमाना था, तब भी एक थे जब-जब खापों ने मुगलों और अंग्रेजों से मोर्चे लिए, तब भी एक थे जब महाराजा सूरजमल का खजांची एक दलित था, तब भी एक थे जब सर छोटूराम ने किसान के साथ-साथ ओबीसी और एससी/एसटी के लिए भी कानून पे कानून बनाये थे, तब भी साथ थे जब चौधरी चरण सिंह जी ने किसान-कमेरे के लिए कानून बनाये थे और तब भी एक थे जब ताऊ देवीलाल ने भारत के इतिहास में सर्वप्रथम एससी/एसटी के लिए चौपालें बनवाई थी।

इसलिए किसी भी ओबीसी, एससी/एसटी एवं खासकर जाट को इन 35 बिरादरी के नारे लगाने वालों से घबराने की जरूरत नहीं। बल्कि आप उल्टे नारे लगाओ कि वो स्टाम्प पेपर तो दिखाओ, जिसपे तुम्हें 35 बिरादरी का एकमुश्त समर्थन हासिल है।

हम जाट अच्छे से जानते हैं कि यह कितने किसके हुए हैं। हाँ कुछ भटके हुए ओबीसी अपने राजनैतिक एवं निजी स्वार्थों के कारण इनसे मिलके आपको कुछ समय-वर्ष के लिए गुमराह बेशक कर लेवें, परन्तु इन 35 बिरादरी एक साथ चिल्लाने वालों की हकीकत 'नदी आवे तो पुल के ही नीचे से गी!' की भांति एक दिन उघड़ेगी ही; जैसे भारत के दूसरे राज्यों में रोहित वेमुला मामले में तार-तार हुई फिर रही; यानी इनके मनुवाद से ओबीसी कितने दिन बच सकेगा।

और उस मनुवाद से आज तक कोई बिरादरी इनसे बेकाबू रही तो वो है जाट और जब-जब आपको (ओबीसी, एससी/एसटी) मनुवाद से छुटकारा चाहिए होगा, आपको जाट जरूर चाहिए होगा। तब तक टूल लें जिसको जिसके साथ टूलना है।

जाट भाईयों से इतनी ही अपील करूँगा कि इन 35 बिरादरी के नारों से और इन नारे वालों से डरें नहीं, बल्कि ओबीसी, एससी/एसटी भाईयों के बीच जावें, संवाद स्थापित करें, यह ऊपर लिखित हकीकत भी बतावें और किसी भी ओबीसी, एससी/एसटी से कोई मनमुटाव हो तो उसको भी सुलझा लेवें। मेरा यकीन करें आपके मतभेद इतने भी गहरे नहीं हैं ओबीसी, एससी/एसटी के साथ, जितने इन मंदिर में दलितों को ना चढ़ने देने वालों के या मंदिरों में दलितों-पिछड़ों की बेटियों को देवदासी बना के बैठाने वालों के या सूदखोरों के। बस आप इस ह्ववे में ना आवें कि आप तो अकेले रह गए या अकेले छोड़ दिए गए। आपको अकेला सिर्फ एक सूरत डाल सकती है और वो है ओबीसी, एससी/एसटी भाईयों से संवाद की कमी। बस किसी भी सूरत में इनसे अपने संवाद में कमी मत आने दो।

जाट जब-जब अपने रंग में आ शुद्ध जाटू दिमाग से चला, तब-तब चली कौनसे ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री की है जाट के आगे? महाराजा सूरजमल से ले के राजा महेंद्र प्रताप, सर छोटूराम, सर सिकंदर हयात खान तिवाना और सरदार भगत सिंह जैसे उदाहरण आपके सामने हैं। इन लोगों ने इन जाटों को झुकाने, तोड़ने और बिखेरने की जी तोड़ कोशिशें करी परन्तु सिवाय खड़ा हो के देखने के एक अंश मात्र तक कुछ ना कर सके।

हाँ आज दौर मुश्किल का गुजर रहा है जाटों पर इसमें कोई दो राय नहीं, परन्तु इस भीड़ पड़ी से आपको कोई निकाल पायेगा तो वो है आपके पुरखों का जज्बा, उनकी नीतियां और उनका दृढ़विश्वास। इसलिए महाराजा सूरजमल, राजा महेंद्र प्रताप, सर छोटूराम, सरदार भगत सिंह को पढ़ते जाइए, और हर ओबीसी, एससी/एसटी से अपने मन-मुटाव मिटा के जुड़ते जाईये।

विशेष: अमूमन मुझे जब भी इस तरह की बात करनी होती है तो मैं मंडी-फंडी शब्द प्रयोग किया करता हूँ, परन्तु जब बात जाट समाज को अलग-थलग करने की आ जाए तो मुझे सीधा हो के बोलना ही पड़ेगा कि यह 35 बिरादरी एक साथ होने का नारा कौन देता है और किस डर से देता है। इसलिए इस लेख में जिक्र की गई तमाम जातियों के नाम सिर्फ और सिर्फ हमारी सामाजिक सरंचना को आज और इतिहास के आईने से समझने हेतु किये गए हैं। क्योंकि मैं वो जाट नहीं कि मेरी सबसे लोकतान्त्रिक जाति को यह सामंतवादी जातियां यूँ समाज से छिटकने को उतारू हुई फिरें और मैं "के बिगड़ै सै देखी जागी" की टरड़ में आँख मूंदें बैठा रहूँ।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक - यूनियनिस्ट मिशन

 

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