Friday, 5 February 2016

जाट, अपने इतिहास से जितनी दूरी बना के रखेंगे, उतने ज्यादा फुसलाये जाने की बिसात पर बैठे रहेंगे!

'जाट इतिहास लिखते नहीं हैं, बनाते हैं" और 'पुरानी बातों का क्या करना, इतिहास इतिहास होता है आज की सुध लो' इन दोनों पंक्तियों का जाटों को ही सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है| यह दोनों पंक्तियाँ मैं मेरे पिता की पीढ़ी के जमाने से सुनता आ रहा हूँ और इनका उद्देश्य और अर्थ अब आ के फलफूल रहा है| जब देखता हूँ कि जाट इतिहास का 'अ - ब - स' भी नहीं जानने वाले बालक, युवा यहां तक कि अधेड़ भी सहज ही अंधभक्ति में बहक रहे हैं और कह रहे हैं कि हजारों सालों से हमारा एक ही रंग का झंडा रहा है, यह तिरंगा तो अभी गांधी-नेहरू ने हमपे थोंपा|

खुद के पिछोके और इतिहास का ज्ञान ना होने का यही नुकसान होता है कि गधे जैसी अक्ल वाले भी आपको ज्ञान बाँट जाते हैं| मैं आपसे बस इतना ही कहूँगा कि जो आपको यह हजारों सालों से एक ही झंडा होने की गपेड हाँक के जाते हैं, उनसे पुछवाना जरा कि 1947 में भारत की 562 रियासतों को एक करके भारत बनाया गया था| इन रियासतों के हर एक के अपने झंडे और स्लोगन होते थे| 50 के करीब तो अकेली जाट रियासतें थी, भरतपुर, जींद, पटियाला, बल्ल्भगढ़, गोहद इत्यादि, क्या इन सबका झंडा एक था? राजपूत, मराठे, होल्कर इत्यादि क्या इन सबकी रियासतों के झंडे एक थे? हजार साल से ऊपर के काल में तो यह थे| उससे पहले भी चाहे जमाना अशोक का हो, या चन्द्रगुप्त का, हर्षवर्धन का हो या पोरस का, यहां तक कि महाभारत और रामायण जैसी काल्पनिक कहानियों में भी पूरे भारत में ना ही तो सिर्फ एक रियासत बताई गई है और ना ही एक झंडा|
अंधभक्तों की माया का कोई अंत नहीं| अरे मान लिया जाट इतिहास नहीं पढ़ा होगा, रामायण और महाभारत तो वह भी पढ़ा रहे हैं जो आपको अंधभक्त बनाते हैं? तो उससे भी कॉमन सेंस का प्रश्न नहीं उठता क्या, कि हजारों सालों से सारे भारत का एक झंडा कैसे?

समाजों को पथभ्रष्ट करने की बिसातें एक रात में नहीं हुआ करती, पहले इतिहास ना पढ़ने की आदत डाली, लोगों को इतिहास से रिक्त किया| और अब उनको यह घाघ लोग जो चिपका के जा रहे हैं, इतिहास की जानकारी ना होने के अँधेरे के चलते, उसी को सच मान रहे हैं| जाट का दूसरा नाम तर्क होता है, इतिहास की जानकारी ना भी हो तो तर्क तो इस्तेमाल कीजिये|

और आलम यह है कि 'पुरानी बातों का क्या करना' के हवाले दे के इतिहास पढ़ना या जानना छोड़ चुके लोग ही सबसे ज्यादा अंधभक्त बन रहे हैं और वो भी कौनसी बातों के हवाले पे, 'हजारों साल' के हवाले पे| अरे जब आपको सौ साल की पुरानी बात गंवारा नहीं, तो हजारों साल वाली की स्वीकृति किस आधार पे फिर?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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