1. आरक्षण का विरोध मुसलमान नहीं कर रहे हैं।
2. आरक्षण का विरोध सिख नहीं कर रहे हैं।
3. आरक्षण का विरोध ईसाई नहीं कर रहे हैं।
आरक्षण का विरोध तो छुआछूत फैलाने वाले कर रहे हैं। भेदभाव फैलाने वाले कर रहे हैं। जात-पात का अंतर करने वाले कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं क्योंकि उनके अंदर लालच है और ऊँच--नीच की भावना है।वो मनुवादी हैं । मनुवाद खत्म होगा तो मानवतावाद का जन्म होगा और हम हैं मानवतावादी।
अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया? जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी, चन्गेज खान ने हमला किये और फिर कुतुबद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जी वंश, लोदी वंश फिर मुगल आदि वन्शजों ने भारत पर राज किया और खूब अत्याचार किये लेकिन ब्राम्हणों ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं चलाया! फिर अन्ग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दी
जानिये क्रांति और आंदोलन की वजह
1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी। 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।
3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)|
4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।
5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।
6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया (1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)
7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी
पड़ती थी।)
8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था।)
9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
10-1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।
11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे।
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणों के कहने से शुद्र अपनी लडकियों को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है।
16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।
17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।
18- 1854 में अंग्रेजों ने 3 विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।
19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लॉ ला़गू कर दिया।
20- 1863 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था इस पूजा में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।
21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। अजीब दोगलापन है, लोगो को आरक्षण से चिड़ है लेकिन अपनी जाति के उच्च होने पर गर्व है!
सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। फसल कटाई पर जाति नहीं देखते मगर उसकी बनी रोटियां खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने के लिए जाति देखते हैं।। मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर उसमें जाने के लिए जाति देखते हैं।। स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखी जाती हैं।। कपङे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्हीं कपड़ों को पहनकर उनसे दूर भागते हैं।। साथियों ये भारत देश हैं,, जहाँ कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों का सामाजिक दायित्व...
"इंसान जीता है,पैसे कमाता है,खाना खाता है और अंततः मर जाता हैं। जीता इसलिए है ताकि कमा सके... कमाता इसलिए है ताकि खा सके... खाता इसलिए है ताकि जिन्दा रह सके... लेकिन फिर भी एक दिन मर ही जाता है... अगर सिर्फ मरने के डर से कमाकर खाते हो तो अभी मर जाओ,मामला खत्म,मेहनत बच जायेगी। मरना तो सबको एक दिन हैं ही, नहीं तो समाज के लिए जियो, ज़िन्दगी का एक उद्देश्य बनाओं, गुलामी की जंजीरो में जकड़े समाज को आज़ाद कराओं। अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर लेता हैं। मेरी नज़र में इंसान वही है जो समाज की भी चिंता करे और समाज के लिये कार्य भी करे। नहीं तो डूब मरे ,अगर जिंदगी सिर्फ खुद के लिये ही जी रहे हैं तो"..................
इस मैसेज को इतना फैलाओ कि दुनिया के सभी समाज जाति के लोगों के पास पहुंच जाये और उन्हें पता चल जाये आरक्षण क्यों जरुरी हे।
2. आरक्षण का विरोध सिख नहीं कर रहे हैं।
3. आरक्षण का विरोध ईसाई नहीं कर रहे हैं।
आरक्षण का विरोध तो छुआछूत फैलाने वाले कर रहे हैं। भेदभाव फैलाने वाले कर रहे हैं। जात-पात का अंतर करने वाले कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं क्योंकि उनके अंदर लालच है और ऊँच--नीच की भावना है।वो मनुवादी हैं । मनुवाद खत्म होगा तो मानवतावाद का जन्म होगा और हम हैं मानवतावादी।
अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया? जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी, चन्गेज खान ने हमला किये और फिर कुतुबद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जी वंश, लोदी वंश फिर मुगल आदि वन्शजों ने भारत पर राज किया और खूब अत्याचार किये लेकिन ब्राम्हणों ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं चलाया! फिर अन्ग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दी
जानिये क्रांति और आंदोलन की वजह
1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी। 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।
3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)|
4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।
5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।
6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया (1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)
7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी
पड़ती थी।)
8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था।)
9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
10-1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।
11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे।
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणों के कहने से शुद्र अपनी लडकियों को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है।
16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।
17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।
18- 1854 में अंग्रेजों ने 3 विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।
19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लॉ ला़गू कर दिया।
20- 1863 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था इस पूजा में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।
21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। अजीब दोगलापन है, लोगो को आरक्षण से चिड़ है लेकिन अपनी जाति के उच्च होने पर गर्व है!
सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। फसल कटाई पर जाति नहीं देखते मगर उसकी बनी रोटियां खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने के लिए जाति देखते हैं।। मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर उसमें जाने के लिए जाति देखते हैं।। स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखी जाती हैं।। कपङे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्हीं कपड़ों को पहनकर उनसे दूर भागते हैं।। साथियों ये भारत देश हैं,, जहाँ कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों का सामाजिक दायित्व...
"इंसान जीता है,पैसे कमाता है,खाना खाता है और अंततः मर जाता हैं। जीता इसलिए है ताकि कमा सके... कमाता इसलिए है ताकि खा सके... खाता इसलिए है ताकि जिन्दा रह सके... लेकिन फिर भी एक दिन मर ही जाता है... अगर सिर्फ मरने के डर से कमाकर खाते हो तो अभी मर जाओ,मामला खत्म,मेहनत बच जायेगी। मरना तो सबको एक दिन हैं ही, नहीं तो समाज के लिए जियो, ज़िन्दगी का एक उद्देश्य बनाओं, गुलामी की जंजीरो में जकड़े समाज को आज़ाद कराओं। अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर लेता हैं। मेरी नज़र में इंसान वही है जो समाज की भी चिंता करे और समाज के लिये कार्य भी करे। नहीं तो डूब मरे ,अगर जिंदगी सिर्फ खुद के लिये ही जी रहे हैं तो"..................
इस मैसेज को इतना फैलाओ कि दुनिया के सभी समाज जाति के लोगों के पास पहुंच जाये और उन्हें पता चल जाये आरक्षण क्यों जरुरी हे।
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