दिमाग, पुरुषार्थ, प्रबंधन, सेवा; रोहतक की सद्भावना रैली में इन चारों पहलुओं पर इन्होनें अपना बखान दिया। जो अत्यन्त भौंडा और अमानवता से भरा हुआ था। समाज की विघटनकारी सोच की जड़ था।
आपको पता है बाबा रामदेव, जिस सोच से आपने इन चार तथ्यों की व्याख्या की, उसकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या रही है? और आज से नहीं इतिहास के सुदूर अनंतकाल से रही है? वो है सिर्फ अपने को सर्वोच्च समझना और बाकी सबको तुच्छ। सिर्फ अपने को राजा समझना और बाकी सबको गुलाम? दुनिया की सबसे दमनकारी सोच है यह। इनकी दूसरी कमजोरी बताऊँ क्या है जिसकी वजह से इन्होने इतिहास में बार-बार मार खाई है? वो है कि यह तर्क-वितर्क से भागने वाले लोग हैं। और जहां तर्क-वितर्क ही नहीं वहाँ दिमाग का क्या काम? और जिसको आप इनकी परिभाषा वाला दिमाग कहते हैं ना, उसको छल-कपट-छलावा-ढोंग-फंड-पाखण्ड जैसी कैटेगरीज से घड़ा जाता है। और इस तरह के दिमाग को असमाजिक तत्व बोला जाता है।
बाबा जी क्या आपके अनुसार सबसे उत्तम दिमाग वही होता है जो ढोंग-पाखण्ड-आडंबर फैला के समाज में हिंसा-द्वेष और भाई से भाई को लड़ाना जानता हो और खाने-पीने-सुरक्षा-सेवा के लिए दूसरों पर आश्रित हो? मेरे ख्याल से बिलकुल नहीं, वरन ऐसे दिमाग को तो परजीवी बोला जाता है। और अपना यह परजीविपना छुपाने हेतु ऐसे दिमाग वाले सिर्फ और सिर्फ समाज को तोड़ने-फोड़ने के षड्यंत्र मात्र रचते हैं, जिसको किसी भी प्रकार से मानवता नहीं कहते।
और आपने क्या कहा कि शुद्र को कांटा लगे तो फलां रोये, फलां सुरक्षा करे और धिमकाना दवा करे? महाराज क्यों बेचारी रुदालियों और डूमनियों के रोने के धंधे पे लात मरवाते हो? और रोना ही अगर दिमाग कहलाता है तो फिर तो मेरे गाँव की वो डूमनी तो सबसे दिमागदार कही जाएगी जो हर मरगत पर, गाँव-कुनबे की औरतों को ले स्मशान की ओर जाते हुए "हाये-हाये केला तोड़ लिया" की दुहाई देती हुई, सांतलों और छातियों पर दुहाथड मारती हुई उनकी अगुवाई में चलती है? Bullshit-crap, इन स्वघोषित दिमागदारों को कोई बैन करो यार।
था तो और भी बहुत कुछ आपसे तर्क-वितर्क करने को, पर फ़िलहाल इतना ही।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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