ऐ किसान मजदूर अब तक तुझे सब्र और संतोष का पाठ पढाया गया है, मै तुझे अंसतोष का पाठ पठाना चाहता हूं, गलत मार्गदर्शकों ने तुझे खामोशी सिखायी, मै तुझे शोर व संघर्ष की शिक्षा देना चाहता हूं, सब्र व संतोष तो पुरूषार्थ का शत्रु है, शांति तो मृत्यू का दुसरा नाम है, शांति का जादू तोड दे सिर से पैर तक आवाज बन जा, अपनी आवाज उठा अपने अन्दर नदियों का शोर पैदा कर, समुद्र का जोश दिखा, शेर की दहाड़ सीख, ऊंची नजर रख, आसमान से बुंलद हौसले रख|
ऐ मजदूर और किसान मै तुझे पुरा राजा देखना चाहता हूं, इसलिए गुलामी की मानसिकता निकाल फेक, तेरे को अनुचित विनम्रता, अनुचित सहनशिलता, बेवजह संतोष की शिक्षा ने कमजोर बना दिया, उत्साहीन(बिना जोश का) बना दिया, इसलिए ऐ शोषित वर्ग मैं कहता हूं गुलाम ना बन मालिक बन, बंदा ना बन स्वामी बन, खादिम ना बन मखदूम बन, मालिक बन, ऊंचे आदर्श सामने रख, यदि तेरी नजर तेरी सोच छोटी है तू दूर तक देख नही सकता सोच नही सकता तो तू क्या खाक तरक्की करेगा, अपने लुटने पिटने पर चुप रहेगा अपनी कमजोरी को कायरता को सब्र संतोष का नाम देगा तो क्या खाक ऊपर उठेगा, कीडे-मकोडो की तरह खाकनशीं ना बन,
आजाद पंछी की तरह हवा में उडान भरना सीख, शांति, सब्र, संतोष को प्रणाम करके विदा कर दे, अपनी ऊंची उड़ान को पहचान, तुने कभी ऊंचाई के आंनद से अपने दिल का परिचय कराया ही नही, लेकिन मै ये तेरा परिचय कराकर ही दम लूंगा, तुझे मैं तो कम से कम मिट्टी में पडा हुआ देख नही सकता,
यहीं आईने कुदरत है, यहीं असलूबे फितरत है,
जो हैं राहे अमल पर, गाम जन महबूबे फितरत है,
अर्थात:- प्रकृति का यही विधान है, और यही प्रकृति का तरीका हैं,जो पुरषार्थ करता है वही प्रकृति का प्यारा होता है,
ऐ किसान चौकस होकर रह, चौकन्ना बन, होशियारी से काम ले, ये दुनिया ठंगो की बस्ती है, और तू हर दिन हर रोज ही ठंगा जाता है, कोई तूझे पीर बनकर लूटता है, कोई पुरोहित बनकर लुटता है, कोई शाह बनकर तुझे लुटता है, तो कोई ब्याज से, तो कोई आढत की आड़ में तुझे ठगता है, इनसे बच,अपनी आवाज उठा,चुप ना रह,
आवाज बुलंद कर, लट्ठ उठा, और करम युद्ध में कूद पड़, और तुझे लूटने वाले तेरे दुश्मन के छक्के छुड़ा दे,
अब तू अपनी कमजोरी को शांति,सब्र,संतोष, में छुपाना छोड दे, खुद को मजबूत बना, और मैं तुझे मजबूत बनाकर ही दम लूंगा,
अपका विनित अपका प्यारा-छोटूराम,
ऐ मजदूर और किसान मै तुझे पुरा राजा देखना चाहता हूं, इसलिए गुलामी की मानसिकता निकाल फेक, तेरे को अनुचित विनम्रता, अनुचित सहनशिलता, बेवजह संतोष की शिक्षा ने कमजोर बना दिया, उत्साहीन(बिना जोश का) बना दिया, इसलिए ऐ शोषित वर्ग मैं कहता हूं गुलाम ना बन मालिक बन, बंदा ना बन स्वामी बन, खादिम ना बन मखदूम बन, मालिक बन, ऊंचे आदर्श सामने रख, यदि तेरी नजर तेरी सोच छोटी है तू दूर तक देख नही सकता सोच नही सकता तो तू क्या खाक तरक्की करेगा, अपने लुटने पिटने पर चुप रहेगा अपनी कमजोरी को कायरता को सब्र संतोष का नाम देगा तो क्या खाक ऊपर उठेगा, कीडे-मकोडो की तरह खाकनशीं ना बन,
आजाद पंछी की तरह हवा में उडान भरना सीख, शांति, सब्र, संतोष को प्रणाम करके विदा कर दे, अपनी ऊंची उड़ान को पहचान, तुने कभी ऊंचाई के आंनद से अपने दिल का परिचय कराया ही नही, लेकिन मै ये तेरा परिचय कराकर ही दम लूंगा, तुझे मैं तो कम से कम मिट्टी में पडा हुआ देख नही सकता,
यहीं आईने कुदरत है, यहीं असलूबे फितरत है,
जो हैं राहे अमल पर, गाम जन महबूबे फितरत है,
अर्थात:- प्रकृति का यही विधान है, और यही प्रकृति का तरीका हैं,जो पुरषार्थ करता है वही प्रकृति का प्यारा होता है,
ऐ किसान चौकस होकर रह, चौकन्ना बन, होशियारी से काम ले, ये दुनिया ठंगो की बस्ती है, और तू हर दिन हर रोज ही ठंगा जाता है, कोई तूझे पीर बनकर लूटता है, कोई पुरोहित बनकर लुटता है, कोई शाह बनकर तुझे लुटता है, तो कोई ब्याज से, तो कोई आढत की आड़ में तुझे ठगता है, इनसे बच,अपनी आवाज उठा,चुप ना रह,
आवाज बुलंद कर, लट्ठ उठा, और करम युद्ध में कूद पड़, और तुझे लूटने वाले तेरे दुश्मन के छक्के छुड़ा दे,
अब तू अपनी कमजोरी को शांति,सब्र,संतोष, में छुपाना छोड दे, खुद को मजबूत बना, और मैं तुझे मजबूत बनाकर ही दम लूंगा,
अपका विनित अपका प्यारा-छोटूराम,
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