1) मैं सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवीलाल, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत वाले सेक्युलरिज्म का अनुयायी हूँ, जबकि अंधभक्त लाल कृष्ण अडवाणी, सुबर्मण्यम स्वामी, मुरलीमनोहर जोशी, बाल ठाकरे आदि वाले सेक्युलरिज्म के अनुयायी हैं|
2) मेरे सेक्युलरिज्म में आम से ले ख़ास आदमी तक हर कोई सेक्युलर हो सकता है, परन्तु अन्धभक्तमण्डली में सिर्फ इनके नेता सेक्युलर हो सकते हैं, यह खुद नहीं| उदाहरण के तौर पर लाल कृष्ण आडवाणी अपनी भती...जी मुस्लिम को ब्याह सकता है, सुबर्मण्यम स्वामी अपनी बेटी मुस्लिम को ब्याह सकता है; और इसके बावजूद भी यह इनके निर्विरोध नेता बने रह सकते हैं परन्तु इनके चेले-चपाटे नहीं|
3) मेरे सेक्युलरिज्म में सर छोटूराम मुस्लिम-सिख-हिन्दू के साथ मिलके ख़ुशी से सरकार बनाते हैं जबकि अंधभक्तों वाले सेक्युलरिज्म में यह मुस्लिमों संग सरकार बनाएंगे जरूर परन्तु मजबूरी का ढोंग जता के| जैसे श्यामाप्रसाद मुखर्जी बंगाल प्रान्त में मुस्लिम लीग के सहयोग से वहाँ के उप-मुख्यमंत्री रहे| अंग्रेजों को छह-छह माफीनामे लिख के देने वाले इनके तथाकथित वीर सावरकर की हिन्दू महासभा ने जब सिंध में मुस्लिम लीग के साथ मिलके सरकार बनाई तो राजनैतिक मजबूरी बताया| और अब महबूबा मुफ़्ती से जो इनकी मोहब्ब्त है वो तो जग जाहिर है ही|
4) मेरे जैसे सेक्युलर सबके ब्याह-शादी के रिवाजों को सही बताएँगे; परन्तु अंधभक्त दक्षिण भारत में हिन्दुओं के यहां ही बहन-बुआ की बेटी से ब्याह का रिवाज होने के बावजूद भी मुस्लिमों के यहां ऐसे रिवाज होने पर विरोध जताएंगे|
5) सर छोटूराम जैसे सेक्युलर, किसी दूसरे की राजनैतिक-सामाजिक स्वैच्छा पर कभी भी ऊँगली नहीं उठाएंगे, जबकि अंधभक्त खुद मुस्लिम लीग से मिलके सरकारें बनाने पर भी सर छोटूराम को "छोटुखां" कहने से बाज नहीं आएंगे|
6) मेरे जैसे सेक्युलर बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की भांति एक ही स्टेज से "अल्लाह-हु-अकबर" और "हर-हर महादेव" के नारे लगवाएंगे और अंधभक्त पढ़े-लिखे हिन्दुओं को भी मुस्लिमों का डर दिखा के साम्प्रदायिकता बढ़ाएंगे|
7) मेरे जैसे सेक्युलर चौधरी चरण सिंह की भांति हिन्दू-मुस्लिम एकता की राजनीति चलाएंगे, अंधभक्त फिर भी खीज में उनको सिर्फ किसानों का या छोटी जाति का नेता बताएँगे|
बस और कितना गुणगान करूँ अंधभक्तों की माया का, इनको तो बस एक थ्योरी आती है कि जो कोई इनसे आगे बढ़ने लगे या इनसे ज्यादा पब्लिक फिगर बने, तो उल्टे-सीधे इल्जाम लगा के, उल्टे-सीधे बोल बोल के उसकी इमेज को धरासाई करने करने लग जाओ| कॉर्पोरेट और व्यापार जगत में एक वर्ड होता है "हेल्थी कम्पटीशन" यानि बिना दूसरे की इमेज को, ब्रांड को नुकसान किये, उसपे बिना कोई ऊँगली उठाये, अपना सामान बेचो; आपके प्रोडक्ट में क्वालिटी होगी तो मार्किट अपने आप पा लेगा| परन्तु राजनीति के क्षेत्र में अंधभक्तों का "हेल्थी कम्पटीशन" से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
2) मेरे सेक्युलरिज्म में आम से ले ख़ास आदमी तक हर कोई सेक्युलर हो सकता है, परन्तु अन्धभक्तमण्डली में सिर्फ इनके नेता सेक्युलर हो सकते हैं, यह खुद नहीं| उदाहरण के तौर पर लाल कृष्ण आडवाणी अपनी भती...जी मुस्लिम को ब्याह सकता है, सुबर्मण्यम स्वामी अपनी बेटी मुस्लिम को ब्याह सकता है; और इसके बावजूद भी यह इनके निर्विरोध नेता बने रह सकते हैं परन्तु इनके चेले-चपाटे नहीं|
3) मेरे सेक्युलरिज्म में सर छोटूराम मुस्लिम-सिख-हिन्दू के साथ मिलके ख़ुशी से सरकार बनाते हैं जबकि अंधभक्तों वाले सेक्युलरिज्म में यह मुस्लिमों संग सरकार बनाएंगे जरूर परन्तु मजबूरी का ढोंग जता के| जैसे श्यामाप्रसाद मुखर्जी बंगाल प्रान्त में मुस्लिम लीग के सहयोग से वहाँ के उप-मुख्यमंत्री रहे| अंग्रेजों को छह-छह माफीनामे लिख के देने वाले इनके तथाकथित वीर सावरकर की हिन्दू महासभा ने जब सिंध में मुस्लिम लीग के साथ मिलके सरकार बनाई तो राजनैतिक मजबूरी बताया| और अब महबूबा मुफ़्ती से जो इनकी मोहब्ब्त है वो तो जग जाहिर है ही|
4) मेरे जैसे सेक्युलर सबके ब्याह-शादी के रिवाजों को सही बताएँगे; परन्तु अंधभक्त दक्षिण भारत में हिन्दुओं के यहां ही बहन-बुआ की बेटी से ब्याह का रिवाज होने के बावजूद भी मुस्लिमों के यहां ऐसे रिवाज होने पर विरोध जताएंगे|
5) सर छोटूराम जैसे सेक्युलर, किसी दूसरे की राजनैतिक-सामाजिक स्वैच्छा पर कभी भी ऊँगली नहीं उठाएंगे, जबकि अंधभक्त खुद मुस्लिम लीग से मिलके सरकारें बनाने पर भी सर छोटूराम को "छोटुखां" कहने से बाज नहीं आएंगे|
6) मेरे जैसे सेक्युलर बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की भांति एक ही स्टेज से "अल्लाह-हु-अकबर" और "हर-हर महादेव" के नारे लगवाएंगे और अंधभक्त पढ़े-लिखे हिन्दुओं को भी मुस्लिमों का डर दिखा के साम्प्रदायिकता बढ़ाएंगे|
7) मेरे जैसे सेक्युलर चौधरी चरण सिंह की भांति हिन्दू-मुस्लिम एकता की राजनीति चलाएंगे, अंधभक्त फिर भी खीज में उनको सिर्फ किसानों का या छोटी जाति का नेता बताएँगे|
बस और कितना गुणगान करूँ अंधभक्तों की माया का, इनको तो बस एक थ्योरी आती है कि जो कोई इनसे आगे बढ़ने लगे या इनसे ज्यादा पब्लिक फिगर बने, तो उल्टे-सीधे इल्जाम लगा के, उल्टे-सीधे बोल बोल के उसकी इमेज को धरासाई करने करने लग जाओ| कॉर्पोरेट और व्यापार जगत में एक वर्ड होता है "हेल्थी कम्पटीशन" यानि बिना दूसरे की इमेज को, ब्रांड को नुकसान किये, उसपे बिना कोई ऊँगली उठाये, अपना सामान बेचो; आपके प्रोडक्ट में क्वालिटी होगी तो मार्किट अपने आप पा लेगा| परन्तु राजनीति के क्षेत्र में अंधभक्तों का "हेल्थी कम्पटीशन" से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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