Saturday, 13 August 2016

रियो ओलिंपिक मैडल संख्या और धर्म की भीतरी स्थिरता का कनेक्शन!

सबसे ज्यादा मैडल ईसाईयों (अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस आदि) के या बुद्दिस्म (चीन, जापान, कोरिया) को मानने वालों के आ रहे हैं| इनके बाद भीतरी अशांति से झूझते मुस्लिम देशो के मैडल आ रहे हैं| और सबसे बुरा हाल है हिन्दू धर्म (वैसे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अभी एक हफ्ते पहले ही लन्दन में कह चुके हैं कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं है| मीडिया में आया था कोई मित्र अगर इस न्यूज़ को मिस कर गया हो तो)।

हिन्दू धर्म में जरा सा भी आपसी सद्भाव नहीं, तभी तो सबसे ज्यादा कोरी राजनीति में वक्त गंवाते हैं| हमारे पास खेल तक भी ऐसा "नो-पॉलिटिक्स" जोन का कोई क्षेत्र ही नहीं है कि यहां तो सिर्फ देश को आगे रखना है, या ईसाई-बुद्ध वालों की तरह धर्म को आगे रखना है, देश-धर्म के लिए मैडल लाने हैं| इस तथ्य को अपने आपको नीचा देखने के लिए ना मानें, अपितु अपने अंदर झांकें और समझें कि धर्म के अंदर शांति, भाईचारा और सद्भाव कितना अहम् होता है और धर्म के अंदर वर्णवाद व् जातिवाद कितना घातक|

ईसाई-बुद्ध लोगों के यहां धर्म की मान्यताएं स्थिर हैं, कुछ हद तक सिया-सुन्नी के लफड़े को छोड़ दो तो मुस्लिम भी स्थिर हैं; सबसे बुरा हाल तो चार तो वर्ण, उसमें भी हर वर्ण में सैंकड़ों-हजारो जातियों वाले हिंदुत्व का है; जो वास्तव में है भी कि नहीं इसका खुद हिंदुत्व के रक्षक होने का दम भरने वाले सबसे बड़े संगठन आरएसएस प्रमुख तक को नहीं पता|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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