लड़ाई नहीं आहमि-स्याहमी की, होगी इशारों के फेरों से,
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
सूरजमल से टकराया था मनुवाद, पानीपत की चढ़त में,
दिल्ली जीती तो देंगे मुग़लों को, जाट नहीं म्हारी लिखत में।
ऐसी आह लगी जाट की, दिल्ली मिली ना पानीपत सुख में,
मनुवादी पेशवाओं के दम्भ हुए चूर, काले आम्ब की जड़ में।।
उन दिल्ली ना देने वालों को, फर्स्ट-एड दिखी मिलती सूरजमली चौबारों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
एक छोटूराम ने कलम ऐसी फटकती चलाई थी,
सूदखोरों की लूट की, बाँध गठड़ी सी बगाई थी।
जिद्द पे धर जब जाट ने, कानूनी जंग मचाई थी,
नारंग-चोपड़े-शादीलालों की, हुई हवाएं-हवाई थी।
'बावन बुद्धि बणिया, पर छप्पन बुद्धि जाट चली' के चर्चे चले घर-घेरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
जगदेव सिंह सिद्धान्ती ने शास्त्री ज्ञान उधेड़ दिए सारे,
एक तरफ अकेला जट्टा, दूसरी तरफ ग्रन्थि-शास्त्री न्यारे|
एक-2 के ज्ञान की चणक सी जब तोड़ी, तो सारे लगे झल्लाने,
पंडताई झाड़ी जब महाज्ञानी ने तो, चले ब्राह्मण जहर पिलाने||
पर हाकिम नामिसद्दीन की दवा के आगे, पार हुए ना इरादे चोरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
चौधरी कबूल सिंह, हुए सेक्सपियर जाटों के,
रख गए साहित्य-इतिहास की, एक-एक पाती सम्भाल के।
सोरम की गलियों में पाते, जवाब हर उलझे सवाल के,
खाप-इतिहास और सभ्यता, पढ़ लो दिलों को बाळ के।।
लगा दो मजमा, चला दो कलमाँ; ज्यूँ जगमग हो ज्यां ढारे से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
"फुल्ले-भगत" दिनरात बळै सै, अमर-ज्योत ज्यूँ गात जळै सै,
अलख-उल्हाणे नगर-निडाणे, जगत-जगाणे की चीस पळै सै।
कलम के बिना ठिकाणा नहीं सै, घाघ-घुनों से पार पाणा यही सै,
शक्ति-वाहिनी हो या छद्म-छाँटणी, इनपे भारी जाट-गजटी चासणी।।
न्यू चढ़ा दो कढाहे इस चासणी के, ज्यूँ फुस्स हो ज्या अरमां भंडेरों के।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
लड़ाई नहीं आहमि-स्याहमी की, होगी इशारों के फेरों से,
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक (फुल्ले भगत)
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
सूरजमल से टकराया था मनुवाद, पानीपत की चढ़त में,
दिल्ली जीती तो देंगे मुग़लों को, जाट नहीं म्हारी लिखत में।
ऐसी आह लगी जाट की, दिल्ली मिली ना पानीपत सुख में,
मनुवादी पेशवाओं के दम्भ हुए चूर, काले आम्ब की जड़ में।।
उन दिल्ली ना देने वालों को, फर्स्ट-एड दिखी मिलती सूरजमली चौबारों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
एक छोटूराम ने कलम ऐसी फटकती चलाई थी,
सूदखोरों की लूट की, बाँध गठड़ी सी बगाई थी।
जिद्द पे धर जब जाट ने, कानूनी जंग मचाई थी,
नारंग-चोपड़े-शादीलालों की, हुई हवाएं-हवाई थी।
'बावन बुद्धि बणिया, पर छप्पन बुद्धि जाट चली' के चर्चे चले घर-घेरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
जगदेव सिंह सिद्धान्ती ने शास्त्री ज्ञान उधेड़ दिए सारे,
एक तरफ अकेला जट्टा, दूसरी तरफ ग्रन्थि-शास्त्री न्यारे|
एक-2 के ज्ञान की चणक सी जब तोड़ी, तो सारे लगे झल्लाने,
पंडताई झाड़ी जब महाज्ञानी ने तो, चले ब्राह्मण जहर पिलाने||
पर हाकिम नामिसद्दीन की दवा के आगे, पार हुए ना इरादे चोरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
चौधरी कबूल सिंह, हुए सेक्सपियर जाटों के,
रख गए साहित्य-इतिहास की, एक-एक पाती सम्भाल के।
सोरम की गलियों में पाते, जवाब हर उलझे सवाल के,
खाप-इतिहास और सभ्यता, पढ़ लो दिलों को बाळ के।।
लगा दो मजमा, चला दो कलमाँ; ज्यूँ जगमग हो ज्यां ढारे से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
"फुल्ले-भगत" दिनरात बळै सै, अमर-ज्योत ज्यूँ गात जळै सै,
अलख-उल्हाणे नगर-निडाणे, जगत-जगाणे की चीस पळै सै।
कलम के बिना ठिकाणा नहीं सै, घाघ-घुनों से पार पाणा यही सै,
शक्ति-वाहिनी हो या छद्म-छाँटणी, इनपे भारी जाट-गजटी चासणी।।
न्यू चढ़ा दो कढाहे इस चासणी के, ज्यूँ फुस्स हो ज्या अरमां भंडेरों के।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
लड़ाई नहीं आहमि-स्याहमी की, होगी इशारों के फेरों से,
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक (फुल्ले भगत)
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