Saturday, 3 December 2016

मुझे इन उपदेशो पर मेरे सवालों के जवाब चाहियें, कोई ज्ञानी-ध्यानी अगर दे सके तो आगे आये!

उपदेश 1: अतीत में जो कुछ भी हुआ, वह अच्छे के लिए हुआ, जो कुछ हो रहा है, अच्छा हो रहा है, जो भविष्य में होगा, अच्छा ही होगा. अतीत के लिए मत रोओ, अपने वर्तमान जीवन पर ध्यान केंद्रित करो , भविष्य के लिए चिंता मत करो

मेरा सवाल: इंसान कोई रोबोट नहीं जो अगत-पिछत देखे बिना, सिर्फ वर्तमान में लगा रहे| पिछत यानी अतीत यानी इतिहास जब तक नहीं जानोगे तब तक वर्तमान के कर्म कैसे तय करोगे? पीछे की असफलताओं को ध्यान नहीं रखोगे तो फिर से वही असफलताएं करने से कैसे बचोगे? बिना भविष्य के प्लान के वर्तमान में कोई कैसे कार्य कर सकता है? इंसान कोई जानवर थोड़े ही कि गाड़ी या हल में जोता और उसके आगे पीछे के वक्त में सिर्फ खाता और सोता रहे? इंसान को कर्म करने के लिए प्रेरणा चाहिए, लाभ-हानि का कैलकुलेशन चाहिए|

उपदेश 2: जन्म के समय में आप क्या लाए थे जो अब खो दिया है? आप ने क्या पैदा किया था जो नष्ट हो गया है? जब आप पैदा हुए थे, तब आप कुछ भी साथ नहीं लाए थे| आपके पास जो कुछ भी है, आप को इस धरती पर भगवान से ही प्राप्त हुआ है| आप इस धरती पर जो भी दोगे, तुम भगवान को ही दोगे| हर कोई खाली हाथ इस दुनिया में आया था और खाली हाथ ही उसी रास्ते पर चलना होगा| सबकुछ केवल भगवान के अंतर्गत आता है?

मेरा सवाल: कोई भी इंसान ना ही तो खाली आता और ना ही खाली जाता| यह सबसे बड़ी गपैड है कि वो खाली आता है और खाली जाता है| यह सिर्फ जनमानस को धन से खाली रखने का षड्यन्त्र है, ताकि इस उपदेश का हवाला देकर गुप्त-दान-चन्दे-चढ़ावे के नाम पर उसकी जेबें झड़वाई जा सकें| गर्भ पड़ते ही उसका वर्ण निर्धारित हो जाता है, जाति निर्धारित हो जाती है, धर्म-देश-राज्य-जिला निर्धारित हो जाता है; डीएनए निर्धारित हो जाता है; यहां तक कि वो छूत कहलायेगा या अछूत यह तक निर्धारित हो जाता है| देखो जब वो गर्भ से निकलता है तो कितना कुछ साथ लिए आता है या आती है| और जाते वक्त हर कोई अपने कर्मों की पूँजी अपने साथ ले के जाता है, अपना नाम साथ ले के जाता है| सरदार भगत सिंह मरने के एक सदी बाद भी याद किया जाते हैं जो साबित करता है कि जब वो धरती से गए तो अपने साथ भारत के सबसे बड़े देशभक्त होने की पूँजी ले गए|

उपदेश तीन: आज जो कुछ आपका है, पहले किसी और का था और भविष्य में किसी और का हो जाएगा| परिवर्तन संसार का नियम है|

मेरा सवाल: बिलकुल झूठ, मेरी कमाई रेपुटेशन-इज्जत-नाम-ओहदा आज भी मेरा है और कल मेरे जाने के बाद भी मैं इसी से जाना जाऊंगा| यह मुझसे कोई नहीं छीन सकता| वर्ना ऐसा होता तो न्यूटन के तीन लॉ आज भी न्यूटन के ना बोले जाते, आइंस्टाईन के अविष्कार आइंस्टाईन के ना बोले जाते| महाराजा सूरजमल के जौहर महाराजा सूरजमल के ना बोले जाते| सच्चाई तो यह है कि यह वाक्य इसलिए घड़ा गया है ताकि यह रॉयल्टी और इतिहास के चोर महाराजा सूरजमल आदि जैसे महापुरुषों का क्रेडिट या तो भुलवा के उसको अपने अनुसार घड़ देवें या किसी और के खाते-बट्टे चढ़ा देवें| पश्चिम में ऐसा होने का कोई खतरा नहीं, क्योंकि वहाँ ऐसे उपदेश नहीं चलते|

उपदेश चार: आत्मा अजन्म है और कभी नहीं मरता है| आत्मा मरने के बाद भी हमेशा के लिए रहता है| तो क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? आप किस बात से डर रहे हैं? कौन तुम्हें मार सकता है?

मेरा सवाल: आत्मा अजन्म है तो यह 70 साल पहले भारत की जो जनसँख्या 35 करोड़ कुछ थी वो आज 125 करोड़ कुछ कैसे हो गई? यह 90 करोड़ नई आत्माएं कौनसी फैक्ट्री से बनके आई?

उपदेश पांच: केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए अपने आप को समर्पित करो| जो भगवान का सहारा लेगा, उसे हमेशा भय, चिंता और निराशा से मुक्ति मिलेगी|

मेरा सवाल: लॉजिकल बुद्धि से बड़ा कोई भगवान नहीं| जो लॉजिक्स से चलता है वो अपना भगवान खुद है| बुद्ध से बड़ा कोई भगवान नहीं| बुद्ध यानी आपकी अपनी बुद्धि|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: