Tuesday, 12 June 2018

दुलीना-गोहाना-मिर्चपुर-भगाना से दूबलधन-मोखरा तक!

दुलीना-गोहाना-मिर्चपुर-भगाना से दूबलधन-मोखरा तक:

यानि दलितों को जाटों से भिड़ाने या जाटों को दलितों का दुश्मन दिखाने या जाटों का भाईचारा तोड़ने से ट्राई करके अब ओबीसी के साथ वही एपिसोड दोहराने की इन कोशिशों में जाट ही सॉफ्ट-टारगेट क्यों है, जाट ही कॉमन क्यों है?

दलितों को आज के दिन यह चीज समझ आ चुकी है कि जाट उनका दुश्मन नहीं, बल्कि ऐसा दिखाने के षड्यंत्र किये गए थे| देखें ओबीसी को यह बात कब तक समझ आती है कि जाट दुश्मन उनका भी नहीं, परन्तु उनको कब तक यह बात समझ आती है, देखें|

चार-पांच साल से यह बदलाव देखा आपने?

दुलीना-गोहाना-मिर्चपुर-भगाना की बजाये दूबलधन-मोखरा रचने-रचवाने की साजिशें सामने आ रही हैं? इतना समझ लीजिये कि दोनों के पीछे ताकत एक ही है| वक्त रहते ही पहचान लीजिये|

दलित तो जाट के साथ प्रोफेशनल रिश्ते के तहत खेतों में काम करता रहा है, इसलिए यह बात समझ भी आ सकती थी कि उन प्रोफेशनल रिश्तों की कड़वाहट को जाट के दुश्मन दुलीना-गोहाना-मिर्चपुर-भगाना के जरिये भुना गए| परन्तु ओबीसी के साथ किस बात के मनमुटाव बढ़ाने के षड्यंत्र आजमाए जा रहे हैं, दूबलधन व् मोखरा के जरिये? अभी तक शुक्र है कि यह कांड हुए नहीं, परन्तु ऐसा करवाने की मंशा लिए लोग यहीं पर रुक जायेंगे इसकी कोई मियाद नहीं|

एक नाई ने बाल काटे तो जाट ने बदले में पैसा-तूड़ा-अनाज-हरा चारा दिया जाता रहा|
एक कुम्हारी ने मिटटी के बर्तन दिए तो जाट ने बदले में पैसा-तूड़ा-अनाज-हरा चारा दिया जाता रहा|
एक लुहार ने औजार बनाये तो जाट ने बदले में पैसा-तूड़ा-अनाज-हरा चारा दिया जाता रहा|
एक जुलाहे ने कपड़े-लत्ते-गाब्बे सीए तो जाट ने बदले में पैसा-तूड़ा-अनाज-हरा चारा दिया जाता रहा|
एक माली ने फल-फूल दिए तो जाट ने बदले में पैसा-तूड़ा-अनाज-हरा चारा दिया जाता रहा|

यहाँ तक कि एक बाहमण (वैसे आर्य-समाजी होने के कारण अधिकतर जाट यह कार्य खुद ही कर लिया करते थे, हाँ आजकल चलन में बदलाव जरूर है, परन्तु बदलाव अब वापिस जड़ों की तरफ मुड़ने भी लगा है) ने फेरे करवाए तो जाट ने बदले में पैसा-खाना दिया जाता रहा|

ना जाट ने कभी इनको चतुरवणीर्य व्यवस्था के तहत छूत-अछूत की तरह ट्रीट किया| ना जाट ने कभी देवदासियों की भाँति कभी किसी दलित-ओबीसी की बेटी का सार्वजनिक स्थल में सामूहिक बलात्कार किया (अब यहाँ पर्दे के पीछे होने या पाए जाने वाले अवैध संबंधों को जुल्म मत कह दीजियेगा, क्योंकि जो अवैध होता है वह जुल्म नहीं सहमति से होता है या किसी लोभ-प्रलोभन-लालच में होता है)| ना कभी किसी ओबीसी-दलित को बिहार-बंगाल के ओबीसी-दलित की भांति वहां के सवर्णों की भांति जाट ने इतना सताया कि उनसे तंग आकर मात्र बेसिक दिहाड़ी के लिए वह लोग हरयाणा-पंजाब में जैसे मारे-मारे फिरते हैं, ऐसे यहाँ का ओबीसी-दलित को कभी हरयाणा-पंजाब से बाहर जाना पड़ा हो (हाँ स्वेच्छा से बड़े व्यापार-नौकरी के चलते बेशक कोई गया हो, वह तो जाट भी जाते रहते हैं)|

जाट ने तो बल्कि चतुर्वर्णीय व्यवस्था को धत्ता बताते हुए, "गाम-गुहांड-गौत" के कांसेप्ट दिए| "छतीस बिरादरी, सर्वधर्म की बेटी सबकी बेटी" के सिद्धांत दिए और सिद्द्त से निभाए| आज भी बारातें जहाँ जाती हैं, वहां अपने गाम की छतीस बिरादरी की बेटी की मान बराबरी से करके आती हैं|

तो फिर क्यों ओबीसी को जाट का पीड़ित दिखाने की साजिशें अंजाम दिलवाने की दूबलधन व् मोखरा के जरिये कोशिशें हो रही हैं?

यह वक्त है जाट बुद्धिजियों, यौद्धेयों, खाप चौधरियों के जाग जाने का, और सोशल मीडिया व् ग्राउंड पर इन हकीकतों से हर ओबीसी को वाकिफ करवाने का, करवाए रखने का|

वरना रोहतक-झज्जर में जो यह करवाने को एंटी-जाट विचारधारा मंडरा रही है इसका अंत परिणाम यह होगा कि बैठे-बिठाये बिना किसी दोष के ओबीसी भी आपसे कट लेगा (हाँ समझेगा जरूर, जैसे दलित ने समझा; परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी) और खाजकुमार खैनी जैसों के जरिये तो ओबीसी का वोट ले जायेंगे और ठगपाल कालिख के जरिये जाटों का| हुड्डा-चौटाला आदि को भी अगर अपने क्षेत्र के इन हालातों की खबर है तो चुप ना बैठें| इस लेख की बातें अपने कैडर के जरिये ग्राउंड तक आप भी ले जा सकते हैं, ले जा सकते हैं कि इससे पहले देर हो जाए| और खैनी के जरिये ओबीसी का और कालिख के जरिये जाटों का वोट एंटी-जाट सोच के लोग ले उड़ें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक