मोदी बाबू, जिन शौर्यपूर्ण हालातों में पूर्व पीएम राजीव गाँधी की शहादत
हुई थी, आप तो उसका रिहर्शल यानि मॉक-ड्रिल भी करोगे तो पायजामा गीला कर
बैठोगे! इतना तो छोडो आप राजीव गाँधी की तरह बिना सिक्योरिटी के दो ढंग ही
पाड़ के दिखा दो अगर वास्तव में इतने लोकप्रिय हो तो? बताता चलूँ कि राजीव
गाँधी ने बिना सिक्योरिटी के चलने का यह जज्बा ताऊ देवीलाल की शैली से
प्रभावित होकर अख्तियार किया था| परन्तु ताऊ देवीलाल जी की हस्ती के बराबर
जा बैठने की ललक में अपनी सिक्योरिटी हटवा बैठे और मानवबॉम्ब का शिकार हुए!
बाकी मोदी बाबू का इतना गिरा हुआ स्तर देखकर मुझे आज उस सवाल का जवाब मिल गया जो बॉलिवुड के विलेन्स को देखकर बचपन से जेहन में उठता था, कि आखिर यह ऐसे विलेन और ऐसे गुंडे वास्तव में होते कहाँ हैं| मुझे क्या पता था कि 1950 से यह बॉलिवुड वालों की कल्पना वाला गुंडा कच्छाधारी समाज तोड़ प्रयोगशाला में यूँ तैयार हो रहा था|
बाकी, जहाँ तक इसको या इस जैसों को ट्योटणे की बात है तो मेरे बचपन वाला हरयाणा अगर आज भी होगा तो उल्टे पैर लौटा देगा इनको|
बचपन वाला कैसे?: हुआ यूँ कि मेरे गाम का एक बणिया भैंस-व्यापारी बन गया| गाम के जाट-जमींदारों के रसूख की साख पर गाम-गुहांड की 30 के करीब भैंसे बिसाह ली, वह भी उधारी पर| दो भैंस म्हारी भी ले गया| बात 1990 के आसपास की हैं, उस वक्त दो भैंस के 24 हजार ठहरे थे, आज की कीमत में कम-से-कम 2.4 लाख| 30 भैसों का पैसा घुप्प करके गाम की उनकी दोनों हवेलियां छोड़ परिवार समेत पुणे जा बसा|
मेरे पापा पांच-छह बार गए परन्तु हर बार मन कर देता| एक बार तो पापा को पुणे से निडाना बीच रस्ते मरवाने तक की धमकी दे दी यह कहते हुए कि "अगर दोबारा आया तो ऐसा कर दूंगा"| हमारा परिवार नरमी खानिया परन्तु सारे थोड़े ही| एक और जाट जिसकी 4 भैंसे ले गया था, करीब 10 साल पैसे मिलने के इंतज़ार के बाद उन्होंने बणिये की एक हवेली पर कब्ज़ा कर लिया| पुणे में बनिये को पता लगा तो लेकर 4 मुम्बईया गुंडे आ गया हवेली खाली करवाने|
अमूमन हरयाणवी कल्चर ऐसा है कि ऐसी हालत में बणिया निर्दोष होता तो उसका साथ देता परन्तु किसी ने साथ नहीं दिया| वजह ऊपर वाले पहरों से आसानी से समझ सकते हो| जब गाम के युवकों को पता चली कि बणिया आया है वह भी मुंबईकर गुंडे लेकर तो सबने लठ और गंडास धर लिए निकाल के| ये जाटों के छोरे, जिनका खून इतना गाढ़ा कि खून दान देने जावें तो डॉक्टर की खून निकालने की सुई में ही न चढ़े, वजह अजी इसका तो खून गाढ़ा ही बहुत ज्यादा है| मेरे अंकल हैं गाम में, उनका तो आज भी इतना गाढ़ा है किसी डॉक्टर की सुई में चढ़ता ही नहीं|
तो जैसे ही बणिये के गुंडों ने कब्जा करने वाले परिवार पर हमला बोला, बालकों ने धरे चारों आगे ले के| छातों-छात चढ़ा दिए| एक गुंडा तो जान बचाता, छतों कूदता 20 घर दूर म्हारे घर की छात पर आ लिया| म्हारा घर तीन-मंजिला, आगे दो तरफ सदर गली, पीछे डॉक्टर की सुई में भी खून ना चढ़े इतने गाढ़े खून के उबाल में उसकी मौत बनके नाचता आ रहा म्हारा काका| गुंडा तो जान बचाने का मारा तीसरी मंजिल से सीधा गली में छलांग लगा गया| बेचारे की टांग टूट गई| बालकों ने चारों गुंडे और बणिया धर बंदी बनाये|
खैर, पंचायत हुई, बणिये को डांट लगी कि 30 तो भैंस ले कर भाज रह्या तू गाम-गुहांड की, 10 साल हो लिए एक की पाई ना लौटाई और ऊपर से यह गुंडे; दिखै पुणे में बॉलीवुड की घनी फ़िल्में देखण लाग गया? फिर भी पंचायत ने अपनी न्यायप्रियता दिखाते हुए कहा कि या तो 30 भैंस दे दे जिस-जिसकी ली हुई हैं या भैंसों की जो कीमत ठहरी थी उसका मूल ही दे दे, ब्याज नहीं भी देगा तो भी तेरी हवेली की सुरक्षा की गारंटी पंचायत की|
बणिये ने वक्त माँगा, परन्तु मुड़ के फिर ना निडाना आया कभी|
अब उसी टाइप के गुंडे यह हैं, देखें हरयाणा वाले कितना झेलेंगे इनको|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
बाकी मोदी बाबू का इतना गिरा हुआ स्तर देखकर मुझे आज उस सवाल का जवाब मिल गया जो बॉलिवुड के विलेन्स को देखकर बचपन से जेहन में उठता था, कि आखिर यह ऐसे विलेन और ऐसे गुंडे वास्तव में होते कहाँ हैं| मुझे क्या पता था कि 1950 से यह बॉलिवुड वालों की कल्पना वाला गुंडा कच्छाधारी समाज तोड़ प्रयोगशाला में यूँ तैयार हो रहा था|
बाकी, जहाँ तक इसको या इस जैसों को ट्योटणे की बात है तो मेरे बचपन वाला हरयाणा अगर आज भी होगा तो उल्टे पैर लौटा देगा इनको|
बचपन वाला कैसे?: हुआ यूँ कि मेरे गाम का एक बणिया भैंस-व्यापारी बन गया| गाम के जाट-जमींदारों के रसूख की साख पर गाम-गुहांड की 30 के करीब भैंसे बिसाह ली, वह भी उधारी पर| दो भैंस म्हारी भी ले गया| बात 1990 के आसपास की हैं, उस वक्त दो भैंस के 24 हजार ठहरे थे, आज की कीमत में कम-से-कम 2.4 लाख| 30 भैसों का पैसा घुप्प करके गाम की उनकी दोनों हवेलियां छोड़ परिवार समेत पुणे जा बसा|
मेरे पापा पांच-छह बार गए परन्तु हर बार मन कर देता| एक बार तो पापा को पुणे से निडाना बीच रस्ते मरवाने तक की धमकी दे दी यह कहते हुए कि "अगर दोबारा आया तो ऐसा कर दूंगा"| हमारा परिवार नरमी खानिया परन्तु सारे थोड़े ही| एक और जाट जिसकी 4 भैंसे ले गया था, करीब 10 साल पैसे मिलने के इंतज़ार के बाद उन्होंने बणिये की एक हवेली पर कब्ज़ा कर लिया| पुणे में बनिये को पता लगा तो लेकर 4 मुम्बईया गुंडे आ गया हवेली खाली करवाने|
अमूमन हरयाणवी कल्चर ऐसा है कि ऐसी हालत में बणिया निर्दोष होता तो उसका साथ देता परन्तु किसी ने साथ नहीं दिया| वजह ऊपर वाले पहरों से आसानी से समझ सकते हो| जब गाम के युवकों को पता चली कि बणिया आया है वह भी मुंबईकर गुंडे लेकर तो सबने लठ और गंडास धर लिए निकाल के| ये जाटों के छोरे, जिनका खून इतना गाढ़ा कि खून दान देने जावें तो डॉक्टर की खून निकालने की सुई में ही न चढ़े, वजह अजी इसका तो खून गाढ़ा ही बहुत ज्यादा है| मेरे अंकल हैं गाम में, उनका तो आज भी इतना गाढ़ा है किसी डॉक्टर की सुई में चढ़ता ही नहीं|
तो जैसे ही बणिये के गुंडों ने कब्जा करने वाले परिवार पर हमला बोला, बालकों ने धरे चारों आगे ले के| छातों-छात चढ़ा दिए| एक गुंडा तो जान बचाता, छतों कूदता 20 घर दूर म्हारे घर की छात पर आ लिया| म्हारा घर तीन-मंजिला, आगे दो तरफ सदर गली, पीछे डॉक्टर की सुई में भी खून ना चढ़े इतने गाढ़े खून के उबाल में उसकी मौत बनके नाचता आ रहा म्हारा काका| गुंडा तो जान बचाने का मारा तीसरी मंजिल से सीधा गली में छलांग लगा गया| बेचारे की टांग टूट गई| बालकों ने चारों गुंडे और बणिया धर बंदी बनाये|
खैर, पंचायत हुई, बणिये को डांट लगी कि 30 तो भैंस ले कर भाज रह्या तू गाम-गुहांड की, 10 साल हो लिए एक की पाई ना लौटाई और ऊपर से यह गुंडे; दिखै पुणे में बॉलीवुड की घनी फ़िल्में देखण लाग गया? फिर भी पंचायत ने अपनी न्यायप्रियता दिखाते हुए कहा कि या तो 30 भैंस दे दे जिस-जिसकी ली हुई हैं या भैंसों की जो कीमत ठहरी थी उसका मूल ही दे दे, ब्याज नहीं भी देगा तो भी तेरी हवेली की सुरक्षा की गारंटी पंचायत की|
बणिये ने वक्त माँगा, परन्तु मुड़ के फिर ना निडाना आया कभी|
अब उसी टाइप के गुंडे यह हैं, देखें हरयाणा वाले कितना झेलेंगे इनको|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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