Tuesday, 31 December 2019

दसवाँ जाटरात्रा - 1 जनवरी!


समर्पित है: सर्वखाप यौद्धेय उदारवादी जमींदारी रक्षक गॉड गोकुला जी महाराज को! - (Photo Attached)

दसवें जाटरात्रे पर क्या मंथन करें: यह जो जमींदारी व् जमीनों की मलकियत है, यह कोई दान में मिला मंदिर नहीं है अपितु गॉड गोकुला जैसे अनगिनत पुरखों के चेतना सिहरा देने जितने सदियों-सदियों के भयंकर बलिदानों की धाती है| इसलिए इसको संभाल कर रखिये व् पुरखों की इस किनशिप को नई पीढ़ियों को पास करने का अपना जीवन-तर जाने जैसा पवित्र फर्ज निभाईये व् आजीवन का पुण्य कमाईये|

अब गॉड गोकुला जी का इतिहास, ऐतिहासिक कविताई व् तथ्यों के गौरे-नजर:

तब के वो हालत जिनके चलते God Gokula ने विद्रोह का बिगुल फूंका:

सम्पूर्ण भारत में मुगलिया घुड़सवार, गिद्ध, चील उड़ते दिखाई देते थे|
हर तरफ धुंए के बादल और धधकती लपलपाती ज्वालायें चढ़ती थी|
राजे-रजवाड़े भी जब झुक चुके थे; फरसों के दम तक भी दुबक चुके थे|
ब्रह्माण्ड के ब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान और कूटनीतियाँ कुंध हो चली थी|
चारों ओर त्राहिमाम-2 का क्रंदन था, तथाकथित स्वधर्मी खुद जजिया कर से छूट पा; अपने जमींदार-मजदूर वर्ग को उत्पीड़न के लिए अकेला छोड़ चुके थे|
उस उमस के तपते शोलों से तब प्रकट हुआ था वो महाकाल का यौद्धेय|
समरवीर उदारवादी जमींदारी रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज|

1857 अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला विद्रोह था तो 1669 मुग़लों के खिलाफ दूसरा (पहला 1193):

जो हुआ था औरंगजेब की भारी कृषि टैक्स-नीतियों के विरुद्ध ‘गॉड गोकुला’ की सरपरस्ती में,
जाट, मेव, मीणा, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवारों से सजी विशाल-हरयाणा सर्वखाप की हस्ती में|

हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था,
पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे,
परन्तु तिलपत, फरीदाबाद का युद्ध तीन दिन-रात चला था|

राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं आया था, परन्त "गॉड-गोकुला“ से लड़ने औरंगजेब को स्वयं आना पड़ा था।

उन्हीं समरवीर उदारवादी जमींदारी के रक्षक अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज के 01/01/1670 बलिदान दिवस पर गौरवपूर्ण नमन!

खाप वीरांगनाओं के पराक्रम की साक्षी तिलपत की रणभूमि:

घनघोर तुमुल संग्राम छिडा, गोलियाँ झमक झन्ना निकली,
तलवार चमक चम-चम लहरा, लप-लप लेती फटका निकली।
चौधराणियों के पराक्रम देख, हर सांस सपाटा ले निकलै,
क्या अहिरणी, क्या गुज्जरी, मेवणियों संग पँवारणी निकलै|
चेतनाशून्य में रक्तसंचारित करती, खाप की एक-2 वीरा चलै,
वो बन्दूक चलावें, यें गोली भरें, वो भाले फेंकें तो ये धार धरैं|

God Gokula के शौर्य, संघर्ष, चुनौती, वीरता और विजय की टार और टंकार राणा प्रताप से ले शिवाजी महाराज और गुरु गोबिंद सिंह से ले पानीपत के युद्धों से भी कई गुणा भयंकर हुई| जब God Gokula के पास औरंगजेब का संधि प्रस्ताव आया तो उन्होंने कहलवा दिया था कि, "बेटी दे जा और संधि (समधाणा) ले जा|" उनके इस शौर्य भरे उत्तर को पढ़कर घबराये औरंगजेब का सजीव चित्रण कवि बलवीर सिंह ने कुछ यूँ किया है:
पढ कर उत्तर भीतर-भीतर औरंगजेब दहका धधका,
हर गिरा-गिरा में टीस उठी धमनी धमीन में दर्द बढा।

जब कोई भी मुग़ल सेनापति God Gokula को परास्त नहीं कर सका तो औरंगजेब को विशाल सेना लेकर God Gokula द्वारा चेतनाशून्य जनमानस में उठाये गए जन-विद्रोह को दमन करने हेतु खुद मैदान में उतरना पड़ा| गॉड-गोकुला के नेतृत्व में चले इस विद्रोह का सिलसिला May 1669 से लेकर December 1669 तक 7 महीने चला और अंतिम निर्णायक युद्ध तिलपत में तीन दिन चला| आज हरयाणत व् उदारवादी जमींदारी की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल 'गॉड-गोकुला' को है। 'गॉड-गोकुला‘ का न राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

गॉड गोकुला जी का बलिदान अवश्य ही उतना ही उच्च, उतना ही महान रहा होगा; जितना कि पांच साल बाद 1675 में उसी औरंगजेब के दरबार में गुरु तेग बहादुर जी का हुआ था| परन्तु गुरु तेगबहादुर जी को सिख-किनशिप आज भी ज्यों-का-त्यों जिन्दा रखे हुए है जबकि जाट व् खाप-लिगेसी क्यों इन चीजों में पीछे है? यही वजह है जिसको ठीक करना है, जिस दिन यह ठीक हो गई जाट बनाम नॉन-जाट व् 35 बनाम 1 ऐसे गायब होंगे जैसे भेड़ों के सर से सींग या जैसे गधों के जुकाम तुरताफुर्ति में ठीक होते हैं|

Sources (सोर्स):
1 - यूरोपियन यात्री मनूची के वृतांत|
2 - नरेन्द्र सिंह वर्मा (वीरवर अमर ज्योति गोकुल सिंह)
3 - कवि बलवीर सिंह की रचनाएँ

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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