Tuesday, 3 December 2019

इंटेल्लेक्टुअल्स की डिक्शनरी में किसी का मजाक उड़ाना या व्यंग्य करना "अपमान करना कहलाता है", "अपनी जलन-द्वेष का प्रदर्शन करना कहलाता है"!

मजाक उड़ाना या व्यंग्य करना सिखाना, बंदे में सीरियसनेस को खत्म करने का सबसे अचूक अस्त्र होता है| और इसका सहारा लेने वाला अव्वल दर्जे का शातिर, आपका छुपा दुश्मन व् दूरगामी नुकसान करने वाला होता है| अगर किसी को पथभृष्ट करना हो या सीरियसनेस की पटरी से उतारना हो तो उनको मजाक उड़ाना, व्यंग्य करना आदि सीखा दो; बाकी सीखने वाला खुद ही खत्म हो जायेगा|

इसीलिए भूल कर भी फंडी-पाखंडी के ढोंग-पाखंड-आडंबर का मजाक या उपहास मत उड़ाइये, अपितु उस पर फंडी को चेताने, उस रास्ते से हटने व् ढोंग-पाखंड को खत्म करने हेतु हमला कीजिये|

अन्यथा आर्य-समाज का हाल देख रहे हैं ना? तमाम खूबियाँ होने के बाद भी आर्य-समाज ने अपने प्रचारों में फंडी-पाखंडी का उपहास उड़ाना ही सबसे ज्यादा सिखाया इसके अनुयायिओं को| और इसी के चलते "मूर्ती-पूजा नहीं करने वालों" के यहाँ कब "मूर्ती-पूजा करने वाले" घुस गए, खुद आर्य-समाजियों को समझ नहीं आ रही| आर्य-समाज को आगे सरवाईव करना है तो अपनी यह भूल ठीक करनी होगी| व् दूसरों के उपहास उड़ाने की अपेक्षा खुद के "मूर्ती-पूजा रहित धर्म" व् "ढोंग-पाखंड-आडंबर से रहित" जैसे विधानों को तल्लीनता से लागू करना होगा| ईसाई हो, सिख हो, जैन हो, मुस्लिम हो; कभी देखे हैं इनके प्रचारक दूसरों के कर्म-कांडों-पाखंडों का मजाक या उपहास उड़ाते हुए? नहीं देखे, क्योंकि यह जानते हैं कि उनके उपहास उड़ाने में घुसे तो अपनी सीरियसनेस खो बैठेंगे|

यह सुधरते हैं तो ठीक हैं, वरना लाजिमी है कि आर्य-समाजी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले लोग, अपने मूर्ती-पूजा नहीं करने व् ढोंग-पाखंड-आडंबर को नहीं पालने के सिद्धांत लेकर "आर्य समाज पार्ट 2" या कुछ और बना लें| क्योंकि यह आदत आपकी सारी सामाजिक सीरियसनेस व् उसकी क्रेडिबिलिटी खा रही है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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