Tuesday, 7 January 2020

सत्रहवाँ जाटरात्रा: 8 जनवरी - 'कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है, तुरंत (ऑन-दी-स्पॉट) ना करे, नजदीक या दूरस्थ भविष्य में जरूर करती है|

शीर्षक: 'कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है, तुरंत (ऑन-दी-स्पॉट) ना करे, नजदीक या दूरस्थ भविष्य में जरूर करती है|

आज के जाटरात्रे का संदर्भ: जब चितपावनी पेशवाओं व् मराठों ने ब्याही थी जाटों से अपनी 10000 के करीब बेटियाँ|

सत्रहवें जाटरात्रे मनाने को मनाने का थीम: "जाटों का ग्लोबल व् राष्ट्रीय डायस्पोरा (अनुवांशिक फैलाव)" व् ग्लोबल व् राष्ट्रीय हस्तियां|

क्या मंथन करें:
कूटनीतिक व् शांतिपूर्ण नेगोसिएशन हमेशा पे करती है: जाट इतिहास में जाट पुरखों की नेगोसिएशन कला, चतुर बुद्धि व् निर्भीकता की वजह से एक बार ऐसा हुआ है जब लगभग 10000 जाटों को एक साथ चितपावनी पेशवाओं व् मराठों ने अपनी लड़कियाँ ब्याह कर (यह हर जाट के लिए सम्मान की बात है, और इसको उसी उद्देश्य से लिया जा रहा है; जातिवाद के नाम पर हर चीज में उपहास व् तंज ढूंढने वाले कीड़े इस पोस्ट व् तथ्य दोनों को इग्नोर करें), उनको बड़े आदर व् सम्मान सहित अपना घर जमाई बनाया था| नासिक के आसपास "खाप बाईसी" बोल के जाटों के 40 गाम बसते हैं| जो जानता होगा उसको तो पढ़ते ही आईडिया आ गया होगा कि यह वाकया कैसे हुआ था?

वाक्या महाराजा सूरजमल जी वाला ही है| पानीपत की तीसरी लड़ाई से पहले पेशवाओं से अपनी बात मनवाने में बेशक महाराजा जी फ़ैल हुए परन्तु उसके रिटर्न्स मल्टीप्ल रहे| सबसे बड़ा रिटर्न यह कि पेशवाओं की चतुराई-छल-कपट से खुद व् खुद के साम्राज्य को बचा सके| दूसरा रिटर्न यह कि जब वीरता व् निर्भीकता साबित करने का सही वक्त आया तो अब्दाली से एक अंश भी खौफ ना खाते हुए, घायल पेशवाओं की ऐसे वक्त में मरहमपट्टियाँ करने आगे आये जिस वक्त में खुद पुणे के पेशवे फाख्ता हो गए थे, तितर-बितर थे; पुणे से कोई मदद ही नहीं पहुंची थी ऐसे दुबक के बैठा गया था वहाँ का मुख्य पेशवा; बाकी राजे-रजवाड़ों का मदद में आना तो छोड़ ही दो|

परन्तु अपनी नीति-नियत-नियम पर रहने का इन दोनों से भी जो सबसे बड़ा तीसरा जो फायदा जाटों को हुआ वह यह कि जब महाराजा सूरजमल जी ने लगभग पेशवाओं-मराठों को अब्दाली से 10000 जाट सेना की सुरक्षा में महाराष्ट्र छुड़वाया तो तब जा के बताते हैं कि चितपावनी पेशवे पसीजे थे और उनको अक्ल आई थी कि जाट गलत नहीं थे| उनकी मानी गई होती तो पानीपत में जीत होती| फिर भी उन्होंने अपनी यह गलती कुछ यूँ ठीक करी कि जाट सेना को वापिस नहीं जाने का अनुरोध किया, जाट सेना को कहा गया कि आप यहीं मराठवाड़ा में नासिक के पास बसों; हम आपको हमारी बेटियाँ ब्याहेंगे| इस अनुरोध को महाराजा सूरजमल जी ने भी स्वीकृति दी| और इस तरह जाटों से मराठवाड़ा की लगभग 10000 छोरियों के एक ही समय में बयाह हुए|

मुग़लों को छोरियाँ दी, इसको दी उसको दी; औरों के ही जिक्र करने पर मत लगे रहा करो| यह भी याद किया करो कि आपके पुरखों की विलक्षण बुद्धि व् नेक-नियत ने इस मामले में क्या कीर्तिमान स्थापित किया था|
तो यह है पुरखों की विलक्षण बुद्धि व् धैर्य का लोहा|

ऐसे ही किस्से और भी बहुत हैं, साल-दर-साल ऐसे किस्से और जोड़े जायेंगे| जिनको सिर्फ जाट ही नहीं अपितु अन्य सर्वसमाज भी जानेगा तो जाट के लिए आदर पैदा होगा|

गुस्ताखी माफ़: वैसे यह जो फरवरी 2016 का दंगा हुआ था वह भी चितपावनी पेशवाओं की अगुवाई वाले संगठन आरएसएस की पोलिटिकल विंग बीजेपी की स्टेट-सेण्टर में सरकार होते हुए, यह कहीं इसीलिए तो नहीं हुआ कि इनको यह भूल पड़ गई हो कि जाट तो तुम्हारे समधाने हैं, जमाई हैं; इन पर क्यों तुम जाट बनाम नॉन-जाट होने दे रहे हो? यह ऐसी-ऐसी बातें जमाना भूले नहीं इसीलिए जाटरात्रे मनाईये| इससे ना सिर्फ आपके पुरखे आपको आशीष देंगे अपितु सोहरे/सगारिये/थारे-म्हारे पुरखों के सुसराड़ियों की "फरवरी 2016" टाइप की बुरी नजर से भी जाट बचे रहेंगे| ऐसे-ऐसे उदाहरणों को जिन्दा रख कर ही "पुरखों की, कौम की किनशिप" को जिन्दा रखा जा सकता है|

न्यूं मान लो कि पानीपत मूवी में भी म्हारे पुरखों के सोहरे/सगारिये/सुसराड़ियों ने उनके जमाईयों की टाँग खिंचाई की; सुनी है इस फिल्म का डायरेक्टर आशुतोष गोवारीकर कर चितपावनि पेशवा मराठा खूम से ही है तो क्या हुआ अब रिश्तेदारों में तो इतना चलता है ना| परन्तु इस हल्की सी चुटकी में इतनी गंभीर बातें अपनी आगामी पीढ़ियों को बताना-बतलाना मत भूलियेगा| वरना वही बात यह सोहरे दूसरी फरवरी 2016 जैसी नजर फिर लगा देंगे|

नासिक, महाराष्ट्र में जाटों के राष्ट्रीय फैलाव बारे आज बताया, बाकी बताना ग्लोबल फैलाव बारे भी था परन्तु वक्त की कमी की वजह से फ़िलहाल इतना ही|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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