तुम्हारे पुरखे वो थे जिनके खूँटों पर सारे धर्म चरते आये|
और तुम जातियों में घुसे पड़े हो, धर्मों को कण्ट्रोल करने वालों के वंशजो?
यह लाइन का लहजा मुझे एक खाप पंचायती ने दिया था| सोच के देख लेना कि उनका विज़न कितना बड़ा था और तुम्हारा कितना रह गया है|
जो धर्मों को कण्ट्रोल किया करते थे, वो आज धर्म के अंदर जातियों के फेर में उलझ के रह गए? क्या हुआ तुम्हारे डीएनए को, या फंडियों की नौसिखियों में बह गए?
सारे धर्म खूंटे चरते थे और फंडियों ने एक धर्म में ही इतना बोझ मार दिया कि कंधे टूटे जाते हैं तुम्हारे? इतिहास याद दिलाऊं या यूँ ही समझ जाओगे?
1947 के हिन्दू-मुस्लिम दंगे याद दिलाऊं, जिनको वेस्ट यूपी में रोकने वाली कोई और नहीं अपितु खाप पंचायतें थी? यह पैठ रही तुम्हारी कि कहाँ तो डंका तुम्हारा धर्मों के दोनों पासे बजता था और कहाँ आज अपने ही धर्म में सिकुड़े जाते हो? जब जाट चौधरी हुए थे खड़े लठ लेकर कांधला में , कोई हिंदुल्ला या मुल्ला पैर नहीं धमक सका था, 1947 में| सारे घरों में घुसेड़ दिए थे खापों ने|
और वो ऐसा कर पाते थे इसीलिए पूरे उत्तरी भारत की इकॉनमी की धुर्री होते थे| और इस औकात के लिए चाहिए होता है आत्मचिंतन, इतिहास-कस्टम-फिलॉसफी पर मनन| और तुम पता नहीं ऐसे कौनसे छदम छप्पन खां बने जाते हो कि तुम्हें हर किसी ऐरे-गैरे के कस्टम-कल्चर बिना-सोचे समझे छाती पे जमाने होते हैं और खुद का कल्चर और गौरव ऐसे बिलख रहा है जैसे माँ ने दूध ही पिलाने से मना कर दिया हो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
और तुम जातियों में घुसे पड़े हो, धर्मों को कण्ट्रोल करने वालों के वंशजो?
यह लाइन का लहजा मुझे एक खाप पंचायती ने दिया था| सोच के देख लेना कि उनका विज़न कितना बड़ा था और तुम्हारा कितना रह गया है|
जो धर्मों को कण्ट्रोल किया करते थे, वो आज धर्म के अंदर जातियों के फेर में उलझ के रह गए? क्या हुआ तुम्हारे डीएनए को, या फंडियों की नौसिखियों में बह गए?
सारे धर्म खूंटे चरते थे और फंडियों ने एक धर्म में ही इतना बोझ मार दिया कि कंधे टूटे जाते हैं तुम्हारे? इतिहास याद दिलाऊं या यूँ ही समझ जाओगे?
1947 के हिन्दू-मुस्लिम दंगे याद दिलाऊं, जिनको वेस्ट यूपी में रोकने वाली कोई और नहीं अपितु खाप पंचायतें थी? यह पैठ रही तुम्हारी कि कहाँ तो डंका तुम्हारा धर्मों के दोनों पासे बजता था और कहाँ आज अपने ही धर्म में सिकुड़े जाते हो? जब जाट चौधरी हुए थे खड़े लठ लेकर कांधला में , कोई हिंदुल्ला या मुल्ला पैर नहीं धमक सका था, 1947 में| सारे घरों में घुसेड़ दिए थे खापों ने|
और वो ऐसा कर पाते थे इसीलिए पूरे उत्तरी भारत की इकॉनमी की धुर्री होते थे| और इस औकात के लिए चाहिए होता है आत्मचिंतन, इतिहास-कस्टम-फिलॉसफी पर मनन| और तुम पता नहीं ऐसे कौनसे छदम छप्पन खां बने जाते हो कि तुम्हें हर किसी ऐरे-गैरे के कस्टम-कल्चर बिना-सोचे समझे छाती पे जमाने होते हैं और खुद का कल्चर और गौरव ऐसे बिलख रहा है जैसे माँ ने दूध ही पिलाने से मना कर दिया हो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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