ऐ उदारवादी जमींदारों (हर जाति-धर्म वाला), पूरे हिंदुस्तान में एक
तुम्हारी धरती (अमृतसर से लेकर धौलपुर व् सिरसा से लेकर अमरोहा तक) ऐसी है
जहाँ पर अंग्रेजों-फ्रेंचों की तर्ज पर मिनी-फोट्र्रेस टाइप
परस-चौपाल-बंगले मिलते हैं, गाम गेल| लेकिन अब वक्त आ गया है कि इन
परस-चौपाल-बंगलों की तर्ज पर साझे गेहूं के गोदाम बनाओ| ताकि जहाँ जब-जब
ऐसी भिखमंगी-मंगतों की सरकारें आवें जैसी आज के दिन हरयाणा में चल
रही हैं तो तुम्हें मंडियों में इनके आगे रिडाना ना पड़े| व् जब इनकी मरोड़
निकल जाए, तब फसल बेचो| इसके लिए अपनी-अपनी खेती को कॉर्पोरेट में तब्दील
करके, गोदाम बनाने के राइट्स में आओ और शुरू कर दो इसी साल से गाम गेल
सामूहिक गोदाम बनाने| और हाँ बंद करो ये गाम-पान्ने जेल 80-80 फुट के घंटे
व् पताकाएं चढ़ानी, क्या यह तुम्हारी फसल रख लेंगे अब, एक ऐसे समय में जब
सरकारें तक तुम्हें खिजा रही हैं? पूछो इनसे, जवाब ना में मिले तो शुरू कर
दो, इसी साल से पहली फुर्सत से सामूहिक अनाज-के-गोदाम बनाने|
हरयाणा सरकार वालो सुनी है गेहूं से 5 किलो प्रति किवंटल व् सरसों पर 1
किलो प्रति किवंटल किसान की मर्जी-बेमर्जी तथाकथित दान के नाम पर धक्के से
काट रहे हो? अरे भिखमंगों, कुँए-जोहड़ क्यों ना टोह लेते तुम?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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