It is about the justice sensitivity in Ethical Capitalism of USA versus Unethical Capitalism of Indian Varnvad.
अमेरिका में एक गौरे Donald Trump की सरकार होते हुए, एक गौरा पुलिस वाला Derek Chauvin एक ब्लैक George Floyd की लगभग 27 मिनट पैरों तले कुचल के हत्या कर देता है या कहिये उससे हो जाती है परन्तु यह अमेरिकी कोर्ट ने कन्फर्म किया है कि हत्या की है| 25 मई 2020 को हत्या हुई, 27 को गिरफ्तारी कर केस FBI को (आम पुलिस को नहीं), और 29 मई 2020 को Derek को कोर्ट से सजा कन्फर्म सुना दी जाती है| 4 दिन में ताबड़तोड़ तरीके से प्रोसेस कम्पलीट| पूरा मामला खुलने पर पब्लिक जबरदस्त हंगामा करती है इतना कि Donald Trump व् उसका परिवार हाई सिक्योरिटी के तहत बंकरों जैसी सुरक्षा में डालना पड़ता है; यह होता है जागरूक व् आत्मनिर्भर पब्लिक का रूतबा व् रौब|
रंगभेद-नश्लभेद का यह मामला बना है, अमेरिका में एक ऐसा केस बर्दास्त नहीं और अपने इंडिया में चतुर्वर्णीय व्यवस्था का फंडियों (जो धर्म के सच्चे मानवीय पथ के अनुयायी हैं वो फंडियों में नहीं आते) ने जो मकड़जाल बुन रखा है कि बहुतेरे तो इस मानसिक गुलामी में जीने को ही संस्कृति-सभ्यता मान के जिए जाते हैं| और इसको कायम रखने के लिए फंडियों ने सरकारों से ले प्रसाशन तक ऐसा तंत्र बना-बुना हुआ है कि 4 दिन तो क्या 4 दशक तक भी फैसला हो ले किसी केस का तो गनीमत| केस हो ले, अरे चिमयानन्द स्वामी व् उन्नाव वाले एमएलए बाबू तो इन वर्णवादी फंडियों की शय पर ऐसे खुल्ले सांड हैं कि बलात्कार के आरोप लगाने वाली लकड़ियों समेत उनके परिवारों तक को पाताललोक पहुंचवा देते हैं| जम्मू-कश्मीर में एक गुज्जर लड़की के गैंग-रेप व् हत्या के आरोपियों के पक्ष में तथाकथित धर्मरक्षक आन खड़े होते हैं| यूँ ही थोड़े इंडिया के कोर्टों में 3.5 करोड़ केसों का ढेर लगा हुआ है, सब इन वर्णवादियों की मेहरबानी है| क्योंकि इस अनएथिकल पूंजीवाद की मानसिकता में पोषित हैं 90% जज-वकील| एंडी के चेले काम ही करके नहीं देते, फोकट की सैलरी व् वीआईपी सुविधाएँ फोड़ते हैं पब्लिक के टैक्स पे| इनको यह लगता है कि तुम कोर्ट में नहीं किसी धर्मस्थल में बैठे हो कि जनता तुमको चढ़ावा चढाती रहे और तुम बस जीमते रहो| और यह बिना काम किये, बिना हाथ-पैर हिलाये कमाई का सिस्टम यूँ ही चलता रहे इसलिए समयबद्ध-क्रमबद्ध-न्यायबद्ध जस्टिस डिलीवरी पे ध्यान ही मत दो| और 90% प्रतिशत इंडियन इस तथ्य से सहमत है परन्तु चतुर्वर्णीय व्यवस्था के मकड़जाल बुद्धि-चेतना पर ऐसे पड़े हैं कि चुसकते ही नहीं| ठाठी के चेले उल्टा इसी को कल्चर-सभ्यता के नाम पर ओढ़े टूरदे हैं|
यह फंडी 36 बिरादरी के भाईचारे की पीपनी भी बजायेंगे तो अपने सुर की, ऐसे थोथे तो इनके भाईचारे के लहरे हैं| और जो भाईचारे के असली पैरोकार हैं वह इन थोथे लहरों में ऐसे झूमते हैं कि जैसे भाईचारा शब्द सुना ही पहली बार हो| बोर और बड़ाई के भूखे-बावले ना हों तो|
अमेरिका-यूरोप जैसे देशों की ऊपरवर्णित पहले पहरे वाली सोच से मिलती एथिकल पूंजीवाद वाली न्यायप्रियता इंडिया में सिर्फ उदारवादी-जमींदारी व्यवस्था में रही है, जिसने दोषियों को सजा देते वक्त ना वर्ण देखे, ना रंग (1-2% अपवादों को छोड़कर| परन्तु इन फंडियों ने उन्हीं को इतना बदनाम कर दिया तालिबानी-रूढ़िवादी आदि-आदि शब्दों के साथ कि आज के दिन वह भी विचलित से चल रहे हैं| इनको जरूरत है तो इस वर्णवादी सामंती व्यवस्था से हट के अपने पुरखों की वर्णवाद से रहित ईजाद की हुई उदारवादी जमींदारी की फिलॉसफी को अंगीकार कर, उसका प्रचार करने की| कम-से-कम एनआरआई तो कर ही सकते हैं, अगर इंडिया में वर्णवादियों के हद से ज्यादा बढ़ चुके मकड़जाल के चलते चीजें अभी इतनी आसान नहीं लग रही फिर से बहाल करनी तो? तो इसके लिए आप सर-जोड़िये व् इंडियन धरातल के अपने घर-कुणबे-ठोले-समाज को ऐसा करने की कहिये|
फंडियों की पीठ तोड़ने का मंत्र: यह फुकरे प्रशंसा के बहुत भूखे होते हैं| तुम्हारा लाचारी भरा चेहरा इनके चेहरे की सबसे बड़ी मुस्कान व् शरीर की खुराक होती है| इसलिए लाचारी-बेबसी सा चेहरा बना के इनको ताड़ पे चढ़ाये रखा करो और देने-दुने को यानि दान के नाम पे लाचारी दिखाते रहा करो| और नीचे-नीचे अपनी कार्यवाही बिठाते जाओ और एक सटीक वक्त आने पर मारो उलाळ के इनके सिंहासनों समेत ऐसे कि बस यही कहने तक का वक्त मिले इनको कि "यह क्या बनी"|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
अमेरिका में एक गौरे Donald Trump की सरकार होते हुए, एक गौरा पुलिस वाला Derek Chauvin एक ब्लैक George Floyd की लगभग 27 मिनट पैरों तले कुचल के हत्या कर देता है या कहिये उससे हो जाती है परन्तु यह अमेरिकी कोर्ट ने कन्फर्म किया है कि हत्या की है| 25 मई 2020 को हत्या हुई, 27 को गिरफ्तारी कर केस FBI को (आम पुलिस को नहीं), और 29 मई 2020 को Derek को कोर्ट से सजा कन्फर्म सुना दी जाती है| 4 दिन में ताबड़तोड़ तरीके से प्रोसेस कम्पलीट| पूरा मामला खुलने पर पब्लिक जबरदस्त हंगामा करती है इतना कि Donald Trump व् उसका परिवार हाई सिक्योरिटी के तहत बंकरों जैसी सुरक्षा में डालना पड़ता है; यह होता है जागरूक व् आत्मनिर्भर पब्लिक का रूतबा व् रौब|
रंगभेद-नश्लभेद का यह मामला बना है, अमेरिका में एक ऐसा केस बर्दास्त नहीं और अपने इंडिया में चतुर्वर्णीय व्यवस्था का फंडियों (जो धर्म के सच्चे मानवीय पथ के अनुयायी हैं वो फंडियों में नहीं आते) ने जो मकड़जाल बुन रखा है कि बहुतेरे तो इस मानसिक गुलामी में जीने को ही संस्कृति-सभ्यता मान के जिए जाते हैं| और इसको कायम रखने के लिए फंडियों ने सरकारों से ले प्रसाशन तक ऐसा तंत्र बना-बुना हुआ है कि 4 दिन तो क्या 4 दशक तक भी फैसला हो ले किसी केस का तो गनीमत| केस हो ले, अरे चिमयानन्द स्वामी व् उन्नाव वाले एमएलए बाबू तो इन वर्णवादी फंडियों की शय पर ऐसे खुल्ले सांड हैं कि बलात्कार के आरोप लगाने वाली लकड़ियों समेत उनके परिवारों तक को पाताललोक पहुंचवा देते हैं| जम्मू-कश्मीर में एक गुज्जर लड़की के गैंग-रेप व् हत्या के आरोपियों के पक्ष में तथाकथित धर्मरक्षक आन खड़े होते हैं| यूँ ही थोड़े इंडिया के कोर्टों में 3.5 करोड़ केसों का ढेर लगा हुआ है, सब इन वर्णवादियों की मेहरबानी है| क्योंकि इस अनएथिकल पूंजीवाद की मानसिकता में पोषित हैं 90% जज-वकील| एंडी के चेले काम ही करके नहीं देते, फोकट की सैलरी व् वीआईपी सुविधाएँ फोड़ते हैं पब्लिक के टैक्स पे| इनको यह लगता है कि तुम कोर्ट में नहीं किसी धर्मस्थल में बैठे हो कि जनता तुमको चढ़ावा चढाती रहे और तुम बस जीमते रहो| और यह बिना काम किये, बिना हाथ-पैर हिलाये कमाई का सिस्टम यूँ ही चलता रहे इसलिए समयबद्ध-क्रमबद्ध-न्यायबद्ध जस्टिस डिलीवरी पे ध्यान ही मत दो| और 90% प्रतिशत इंडियन इस तथ्य से सहमत है परन्तु चतुर्वर्णीय व्यवस्था के मकड़जाल बुद्धि-चेतना पर ऐसे पड़े हैं कि चुसकते ही नहीं| ठाठी के चेले उल्टा इसी को कल्चर-सभ्यता के नाम पर ओढ़े टूरदे हैं|
यह फंडी 36 बिरादरी के भाईचारे की पीपनी भी बजायेंगे तो अपने सुर की, ऐसे थोथे तो इनके भाईचारे के लहरे हैं| और जो भाईचारे के असली पैरोकार हैं वह इन थोथे लहरों में ऐसे झूमते हैं कि जैसे भाईचारा शब्द सुना ही पहली बार हो| बोर और बड़ाई के भूखे-बावले ना हों तो|
अमेरिका-यूरोप जैसे देशों की ऊपरवर्णित पहले पहरे वाली सोच से मिलती एथिकल पूंजीवाद वाली न्यायप्रियता इंडिया में सिर्फ उदारवादी-जमींदारी व्यवस्था में रही है, जिसने दोषियों को सजा देते वक्त ना वर्ण देखे, ना रंग (1-2% अपवादों को छोड़कर| परन्तु इन फंडियों ने उन्हीं को इतना बदनाम कर दिया तालिबानी-रूढ़िवादी आदि-आदि शब्दों के साथ कि आज के दिन वह भी विचलित से चल रहे हैं| इनको जरूरत है तो इस वर्णवादी सामंती व्यवस्था से हट के अपने पुरखों की वर्णवाद से रहित ईजाद की हुई उदारवादी जमींदारी की फिलॉसफी को अंगीकार कर, उसका प्रचार करने की| कम-से-कम एनआरआई तो कर ही सकते हैं, अगर इंडिया में वर्णवादियों के हद से ज्यादा बढ़ चुके मकड़जाल के चलते चीजें अभी इतनी आसान नहीं लग रही फिर से बहाल करनी तो? तो इसके लिए आप सर-जोड़िये व् इंडियन धरातल के अपने घर-कुणबे-ठोले-समाज को ऐसा करने की कहिये|
फंडियों की पीठ तोड़ने का मंत्र: यह फुकरे प्रशंसा के बहुत भूखे होते हैं| तुम्हारा लाचारी भरा चेहरा इनके चेहरे की सबसे बड़ी मुस्कान व् शरीर की खुराक होती है| इसलिए लाचारी-बेबसी सा चेहरा बना के इनको ताड़ पे चढ़ाये रखा करो और देने-दुने को यानि दान के नाम पे लाचारी दिखाते रहा करो| और नीचे-नीचे अपनी कार्यवाही बिठाते जाओ और एक सटीक वक्त आने पर मारो उलाळ के इनके सिंहासनों समेत ऐसे कि बस यही कहने तक का वक्त मिले इनको कि "यह क्या बनी"|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक