Thursday, 11 June 2020

नारनौंद के मल्हाण पान्ने की विहंगम परस!


ऐसी मिनिफोर्ट्रेस-नुमा परस (चौपाल/चुपाड़) 1857 से पहले के प्राचीन विशाल हरयाणा (वर्तमान हरयाणा, वेस्ट यूपी, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, दक्षिणी उत्तराखंड) व् पंजाब के हर गाम-पिंड की कहानी हैं| और खास बात यह, कि यह कम्युनिटी गैदरिंग का अजब सिस्टम, इंडिया में इस क्षेत्र से बाहर नहीं मिलता; फिर मिलता है तो सीधा अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया के डेवेलप्ड देशों में मिलता है|

और यह सिस्टम देन है वर्णवाद रहित नेग-नात की सीरी-साझी वर्किंग कल्चर वाली उदारवादी जमींदारी (उज़्मा) सिस्टम की; जिसको सींचती है
  1. विश्व की सबसे पुरानी वैधानिक मान्यता प्राप्त सोशल जूरी व् सोशल इंजीनियरिंग की सर्वखाप व्यवस्था
  2. मूर्ती-रहित, मर्द-पुजारी रहित व् 100% औरत की धोक-ज्योत की लीडरशिप वाली दादा नगर खेड़ों/दादा नगर बईयों/भूमिया खेड़ा/गाम खेड़ा/बाबा भूमिया/दादा बड़े बीरों के आध्यात्म वाली वह आध्यात्मिकता कि जो आर्य-समाज की मूर्ती-पूजा रहित आइडियोलॉजी का बेस सोर्स है
  3. गाम-गौत-गुहांड व् 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी वाली नैतिकता
  4. खेड़े के गौत की लिंग समानता
  5. गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा ना सोवे की मानवता व्
  6. पहलवानी अखाड़ों वाले मिल्ट्री कल्चर|
यह परस 1871 की बनी बताई जाती है| कमाल है अगर उस जमाने में लोगों के यह ब्योंत व् जीने के स्टाइल थे तो यह बातें झूठी हैं कि अंग्रेजों ने या अन्य प्रकार के प्रवासियों ने यहाँ लोगों को जीना सिखाया, या नहीं?  

अपने पुरखों की इस लिगेसी की किनशिप डेवेलोप करते चलिए, इन चीजों को सहेजते व् आगे की पीढ़ियों को पास करते चलिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक



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