Monday, 15 June 2020

कुंडलिनी की ऊर्जा का वैमनस्य!

जब यह ऊर्जा वैमनस्य यानि शारीरिक हिंसा, व्यभिचार में बदल जाती है तो वासना कहलाती है| और यह लड़का-लड़की दोनों की समस्या रहती है| समाज गलती यह करता है कि वयस्कों को इसको ऊर्जा के रूप में बताता ही नहीं, सीधा इसको वासना का नाम दे देता है जिससे दिग्भर्मिता फैलती है और वयस्कों में इसको ले कर उलझन| जबकि जिंदगी में अगर सबसे सहज (सीरियस तो बिलकुल भी नहीं) लेने की कोई चीज होती है तो वह यह कुंडलिनी की ऊर्जा ही होती है|
क्योंकि वासना को पाप बताया/फैलाया गया है और कुंडलिनी की ऊर्जा को पहले ऊर्जा की तरह समझाने की बजाये सीधा वासना के नाम से बता दिया जाता है तो वयस्कों में आत्मग्लानि भाव भरता है, असुरक्षा का भाव भरता है, चरित्रहीन हो जाने का भय भरता है और इसको कण्ट्रोल (मैनेज) करने की इच्छाशक्ति ही मारी जाती है|
ऊपर से समाज में फैली/फैलाई गई ऐसी भ्रांतियां कि, "इस उम्र में नहीं करोगे तो तब करोगे", "यह चीजें होती ही एन्जॉय करने के लिए हैं" टाइप की पंक्तियाँ बच्चों को इस ऊर्जा के व्यर्थ व्यय की ओर तल्लीनता से धकेलती हैं| और ऐसे अपनी ही अच्छी खासी शारीरिक ऊर्जा के वयस्क दुश्मन बन, खुद को मानसिक-शारीरिक परिपक्क्वता तक पहुंचने ही नहीं देते|
इसलिए वयस्कों को इसको पहले झटके वासना मत बताएं, इसको शारीरिक ऊर्जा बताये व् इसको मैनेज करना सिखाएं| क्योंकि यह सत्य है कि अगर बच्चों ने यह नहीं सीखी तो वह अपने जैविक अस्तित्व की बुलंदी को कभी नहीं छू पाएंगे|
इसलिए निम्नलिखित कारकों को अपने वयस्कों के इर्दगिर्द से हटाइए, या ईमानदारी से सही-सही बताईये:
1) कुंडलिनी की ऊर्जा को वासना का नाम देना बंद करें| इसको ऊर्जा बता के उनको इसको मैनेज करने को प्रेरित करें|
2) चरित्रप्रमाण पत्र जारी करने की जल्दबाजी ना करें, पहले उनको चरित्र होता क्या है यह सही से समझा दिया, इसको पुख्ता करें|
3) किसी भी प्रकार की ब्रह्मचर्यता (खुद की हो सकने वाली बीवी या बीवी के अलावा विश्व की सब औरतों को अपनी बहन मानना व् गलतख्याली से दूर रहना) या जट्टचर्यता (सिर्फ गाम-गौत-गुहांड वालियों को बहन मानना व् गलतख्याली से दूर रहना) वयस्कों पे थोंपने की जल्दबाजी ना करें|
4) सबसे पहले अपने बच्चों को फॅमिली पॉलिटिक्स से प्रोटेक्ट कीजिये| क्योंकि फॅमिली पॉलिटिक्स चाहे पॉजिटिव हो या नेगेटिव अगर आपका बच्चा उसका शिकार हुआ तो वह इस ऊर्जा को कभी सीरियस नहीं लेता और फिर इसको कभी शौक-स्टैण्डर्ड-शोऑफ के चक्कर में बरबाद करता/करती है तो कभी शरीर में कोई कुछ अजीब उभार ना देख ले इस चक्कर में बर्बाद करता/करती है|
5) शारीरिक मैनेजमेंट मामले में बच्चों को कभी भी दिल से काम लेना ना सिखाएं, हमेशा आत्मा की इच्छाशक्ति से दिमाग को काबू रखते हुए, एक मानवीय विज़न दे के उसके मद्देनजर इसको मैनेज करना सिखाएं|
6) शारीरिक रिलेशन एक जरूरत है, स्वाभविक क्रिया है; उसको प्यार-व्यार समझने की भूल से बच्चों को बचाएं| प्यार एक जिम्मेदारी का नाम होता है, मस्ती/हंगाई/गधे के अढ़ाई दिन के अखाड़े का नहीं|
7) मोरल पोलिसिंग से पहले पर्सनल पोलिसिंग सिखाएं|
8) बताएं कि इच्छा-शक्ति हर किसी के शरीर की बॉस होती है, जिसको दोनों आँखों के मध्य माथे के बीच की संवेदना यानि तीसरी आँख संचालित करती है| इच्छाशक्ति-आत्मिक सवेंदना के नीचे दिमाग को रखें और दिमाग के भी नीचे दिल को| और उन लोगों-माहौलों को अपने बच्चों का दुश्मन मानें जो उनको इस हायररकी के उल्टा चलने को प्रेरित या बाधित करते हैं|
फिर बेशक वो किसी भी धर्म के नाम पे ज्ञान-प्रवचन वालों की शिक्षा ही क्यों ना हों| ऐसी शिक्षा धर्म नहीं होती, अपितु दिग्भर्मिता होती है, फंडियों का फंड होती है|
9) बच्चों को सोशल इंजीनियरिंग व् इकनोमिक इंजीनियरिंग में सहयोगी व् दुश्मन सामाजिक समूहों की सही-सही ईमानदारी से जानकारी दें| खामखा के थोथे भाईचारे पे चलने के सबब पढ़ाने से कन्नी काटें| यहाँ बिना रोये माँ दूध नहीं पिलाती, तुम भाईचारा-भाईचारा चिल्ला के काका से ककड़ी लेने चल देते हो| दी है आज तक किसी ने काका कहने मात्र से ककड़ी, जो तुमको मिलेंगी? यह भी वजह रहती है शारीरिक ऊर्जा को वासना समझने की|
10) अपने परिवार-कुल के सर्वश्रेष्ठ आध्यात्म व् सम्मान, एथिकल वैल्यू सिस्टम, कल्चर-इतिहास से बच्चों को जरूर अवगत व् प्रेरित करवाएं (सीधा वह जो पुरखों से आता है, फंडियों का फैलाया तो वह बाहर से वैसे ही जान लेंगे, क्योंकि वह तो प्रचारित ही इतना हद से आगे तक मिलता है समाज में), अन्यथा उनको इनका ही नहीं पता होगा तो उनको कुंडलिनी की ऊर्जा वासना ही फबेगी और वह इसको यूँ ही बेवक्त-बेवजह बर्बाद करेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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