1) सन 1669 में औरंगजेब द्वारा बढ़ाए गए कृषि टैक्सों के विरोध में गॉड गोकुला जी महाराज की अगुवाई में सर्वखाप आंदोलन किया करती थी| 7 महीने तक चले इस आंदोलन को दबाने हेतु औरंगजेब को खुद युद्ध करने आना पड़ा था| इस आंदोलन के ऐवज में 1 जनवरी 1670 को आगरा के फव्वारा चौक पर हजारों किसानों की बलि दी गई थी| फंडी सरफिरे तुम्हें इसमें धर्म का एंगल दिखाएंगे, तुम सिर्फ किसानी का ही देखना, वजह नीचे आ रही है| आज वाले सर्वखाप चौधरी भी तो शायद कुछ तो तैयारी कर ही रहे होंगे, किसान के हक में?
2) सन 1943 में अंग्रेज वायसराय लार्ड वेवल से गेहूं के उचित दाम लेने हेतु सर छोटूराम झलसे किया करते और किसानों को बोल दिया करते कि, "जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी, उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो" अर्थात जिस खेत से किसान को ही रोजी के लाले पड़ें, उस खेत के हर तिनके को जला दो| तब जा के अंग्रेज झुकते थे और 6 रूपये प्रति मण की बजाए, मांगे गए 10 के भाव की जगह 11 का भाव अंग्रेजों के नळ में डंडा दे के लिया करते| और ऐसा नहीं कि जाति से जाट थे तो सिर्फ जाट या हिन्दू के लिए लिया करते; किसान चाहे ब्राह्मण हुआ, राजपूत,अहीर-गुज्जर-सैनी-खाती-छिम्बी-दलित किसी जाति व् सिख-मुस्लिम-बौद्ध किसी भी धर्म का हुआ, सबके लिए लिया करते|
3) सन 2020 में एक हिन्दू शासक आया, नाम है नरेंद्र मोदी| 3 ऐसे काले कृषि कानून लाया कि 3 महीने से ज्यादा सारे देश का किसान त्राहिमाम कर रहा है पर मजाल है ठाठी का पट्ठा जो टस से मस भी हो रहा हो तो? यह भी नहीं देख रहा कि आंदोलन करने वाला 90% किसान हिन्दू है या जो यह तथाकथित राष्ट्रवादी ही यह कह के उछालते हैं कि सिख भी हिन्दू से निकले हैं तो हिन्दू हैं| अब ना इनको सिखों में हिन्दू दिख रहे और ना हिन्दू किसानों में हिन्दू दिख रहे| शायद मनुवादी व् वर्णवादी चश्मा पहन लिए हैं बाबू जी, जिसमें लड़ाई-दंगों के लिए लठैत-लड़ाके चाहियें तो किसान इनके लिए क्षत्रिय हो जाता है, सदाचार की शेखी बघारेंगे तो वैश्य हो जाता है और अब आंदोलनरत किसान तो पक्का शूद्र दिख रहे होंगे?
तो अजी जनाब, भारत के किसान के लिए किस बात की आज़ादी आज 2020 में भी? शायद 1943 वाला अंग्रेज ही बेहतर था, प्रैक्टिकल उदाहरण ऊपर दिया है; लड़ के ही सही मान तो जाया करते अंग्रेज, कोई मना के ही दिखा दे इस हिन्दू राष्ट्र के प्रधानमंत्री को|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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