Tuesday, 24 November 2020

धर्म किसी को नहीं जोड़ सकता; ना आंतरिक तौर पर, ना बाह्य तौर पर!

1) अगर ऐसा होता तो एक मुस्लिम धर्म के, साथ-सीमा लगते 59 देशों की बजाए, यह इस हिस्से वाली पूरी धरती एक मुस्लिम राष्ट्र होती|

2) अगर ऐसा होता तो एक ईसाई धर्म के, साथ-सीमा लगते यूरोप के 32-35 देशों की बजाए, पूरा यूरोप एक ईसाई राष्ट्र होता|
3) अगर ऐसा होता तो एक बुद्ध धर्म के, साथ-सीमा लगते पूर्वी एशिया के 15-20 देशों की बजाए, पूरा पूर्वी एशिया एक बुद्ध राष्ट्र होता|
तो क्यों हैं यह देश, एक धर्म के होते हुए, साथ सीमा लगते हुए भी अलग-अलग?
वजह हैं, इनके अपने-अपने आर्थिक, कल्चरल, भाषीय, रिसौर्सेज व् एथिकल रूचियां व् समूह|
हजम करो तो करो, नहीं तो जब तुम अपने यहाँ तथाकथित एक धर्म का राष्ट्र घोषित कर लेते हो तो उसके अगला डिस्ट्रक्शन यही शुरू होगा, आज की 29 स्टेटस कल, न्यूतम 29 राष्ट्र होंगी|
तो ना यह बात सच कि धर्म आंतरिक विषमता मिटाते हैं और ना यह वाली बाह्य विषमता मिटाने की कि "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" या "हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई"|
धर्म सिर्फ और सिर्फ उन चालाक लोगों का प्रोपगैंडा है जो समाज पे इकोनॉमि, रिसोर्सेस व् पावर पॉलिटिक्स पर कण्ट्रोल चाहते हैं| इसलिए अपना-अपना आर्थिक, कल्चरल, भाषीय, रिसौर्सेज व् एथिकल रूचियां समझो और इनको ठीक करने पे काम करो; यूनाइटेड अमेरिका की तरह डिसेंट्रलाइज्ड स्टेट का राष्ट्र बना के; जिसमें स्टेटस के अपने भी इंडिपेंडेंट राइट्स हों व् कुछ राष्ट्रीय स्तर के केंद्र के पास हों|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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