Google जैसी वर्ल्ड क्लास कंपनी अपने यहाँ का वर्किंग कल्चर "सीरी-साझी" के सिद्धांत पर चलाती है जहाँ कोई employer-employee नहीं अपितु सब वर्किंग पार्टनर हैं|
मुझे नहीं पता इन लोगों ने यह कांसेप्ट कहाँ से कॉपी किया परन्तु खापलैंड (विशाल हरयाणा) व् मिसललैंड (पंजाब) का युगों पुराना कल्चर है यह| फंडियों की अलगाववाद व् नश्लवाद से भरपूर वर्णवाद की आइडियोलॉजी से बिल्कुल विपरीत|
सरदार भगत सिंह कहते हैं कि, "ना कोई इतना अमीर हो कि दूसरे को खरीद सके व् ना ही कोई इतना गरीब हो कि उसको बिकना पड़े"|
Kinship carry forward करने वाले लोगों के बीच शहरों-कस्बों में रह के भी Kinship के मायनों-महत्वों से अनभिज्ञ चलने वाले, ओ अधर में लटके 'सीरी-साझी' पिछोके के लोगो, जरा याद करो कि तुम्हारे पुरखों का "ethical capitalism" क्या था या कम-ज्यादा अनुपात में आज भी है गामों में?
बिल्कुल सरदार भगत सिंह की लाइन वाला ही था; जो यह कहावत पोषित करता था कि, "गाम, नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए"| सरदार भगत सिंह की पंक्ति की छाप "गुरुद्वारा की लंगर" पद्द्ति में भी है|
परन्तु तुम्हें यह बातें तब समझ आएँगी जब "kinship" क्या बला होती है इसके बारे पढोगे, ढूंढोगे| जिस दिन इसको अपना लिया, तुम्हारे 35 बनाम 1 से ले, सॉफ्ट-टार्गेटिंग पर जो तुम्हारा समाज रहता है; सब छंद कट जाएंगे|
यह तुम्हारी kinship नहीं है जो तुम्हें फंडी बताते-सुनाते, तुम्हारे इर्दगिर्द बिखराते हैं| यह तो दुनिया का सबसे बड़ा unethical capitalism है जो तुम इसलिए नहीं समझ पा रहे हो, क्योंकि 1-2-4 पीढ़ी पहले जब गामों से यहाँ आए तो kinship वहीँ छोड़ आए| इसीलिए तमाम धन-दौलत-सुख-लक्ज़री कमा के भी सामाजिक तौर पर 35 बनाम 1 झेल रहे हो|
इन फंडियों के चक्कर में अपनी जून खराब मत करो, जहाँ इनकी चलती है वहां सामंती जमींदारी है और जहाँ तुम्हारी kinship फली-फैली यानि खापलैंड व् मिसललैंड वहां-वहां उदारवादी जमींदारी रही है| वही सीरी-साझी कल्चर वाली उदारवादी जमींदारी जिसका कांसेप्ट Google तक कॉपी करती है बस एक तुम ही निरीह-आलसी निकले जाते हो जो 10-20 कोस दूर बैठ के पुरखों के खेड़ों की थ्योरी से नाक-भों सिकोड़े फिरते हो, और वर्णवाद नामी विश्व के सबसे जहरीले अलगाववाद व् नश्लवाद के कुँए में धंसते ही धंसते जाते हो| खैर!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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