Tuesday, 16 March 2021

"सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर के पिछोके के लोग "बंधुआ" कल्चर की ओर बढ़े चले जाते हैं क्योंकि यह अपनी "Kinship" carry forward नहीं कर पाते हैं!

Google जैसी वर्ल्ड क्लास कंपनी अपने यहाँ का वर्किंग कल्चर "सीरी-साझी" के सिद्धांत पर चलाती है जहाँ कोई employer-employee नहीं अपितु सब वर्किंग पार्टनर हैं|
मुझे नहीं पता इन लोगों ने यह कांसेप्ट कहाँ से कॉपी किया परन्तु खापलैंड (विशाल हरयाणा) व् मिसललैंड (पंजाब) का युगों पुराना कल्चर है यह| फंडियों की अलगाववाद व् नश्लवाद से भरपूर वर्णवाद की आइडियोलॉजी से बिल्कुल विपरीत|
सरदार भगत सिंह कहते हैं कि, "ना कोई इतना अमीर हो कि दूसरे को खरीद सके व् ना ही कोई इतना गरीब हो कि उसको बिकना पड़े"|
Kinship carry forward करने वाले लोगों के बीच शहरों-कस्बों में रह के भी Kinship के मायनों-महत्वों से अनभिज्ञ चलने वाले, ओ अधर में लटके 'सीरी-साझी' पिछोके के लोगो, जरा याद करो कि तुम्हारे पुरखों का "ethical capitalism" क्या था या कम-ज्यादा अनुपात में आज भी है गामों में?
बिल्कुल सरदार भगत सिंह की लाइन वाला ही था; जो यह कहावत पोषित करता था कि, "गाम, नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए"| सरदार भगत सिंह की पंक्ति की छाप "गुरुद्वारा की लंगर" पद्द्ति में भी है|
परन्तु तुम्हें यह बातें तब समझ आएँगी जब "kinship" क्या बला होती है इसके बारे पढोगे, ढूंढोगे| जिस दिन इसको अपना लिया, तुम्हारे 35 बनाम 1 से ले, सॉफ्ट-टार्गेटिंग पर जो तुम्हारा समाज रहता है; सब छंद कट जाएंगे|
यह तुम्हारी kinship नहीं है जो तुम्हें फंडी बताते-सुनाते, तुम्हारे इर्दगिर्द बिखराते हैं| यह तो दुनिया का सबसे बड़ा unethical capitalism है जो तुम इसलिए नहीं समझ पा रहे हो, क्योंकि 1-2-4 पीढ़ी पहले जब गामों से यहाँ आए तो kinship वहीँ छोड़ आए| इसीलिए तमाम धन-दौलत-सुख-लक्ज़री कमा के भी सामाजिक तौर पर 35 बनाम 1 झेल रहे हो|
इन फंडियों के चक्कर में अपनी जून खराब मत करो, जहाँ इनकी चलती है वहां सामंती जमींदारी है और जहाँ तुम्हारी kinship फली-फैली यानि खापलैंड व् मिसललैंड वहां-वहां उदारवादी जमींदारी रही है| वही सीरी-साझी कल्चर वाली उदारवादी जमींदारी जिसका कांसेप्ट Google तक कॉपी करती है बस एक तुम ही निरीह-आलसी निकले जाते हो जो 10-20 कोस दूर बैठ के पुरखों के खेड़ों की थ्योरी से नाक-भों सिकोड़े फिरते हो, और वर्णवाद नामी विश्व के सबसे जहरीले अलगाववाद व् नश्लवाद के कुँए में धंसते ही धंसते जाते हो| खैर!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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