Thursday, 20 May 2021

फंडी, ना साइंस से चलता है और ना लॉजिक से; वह चलता है साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग से!

फंडी को समझने के लिए साइंस या लॉजिक्स ना पढ़ें अपितु साइकोलॉजी यानि मनौविज्ञान के ज्ञाता बनें| जिस दिन इनका मनौविज्ञान से चलना समझ गए, उस दिन इन बातों पर आश्चर्य करना छोड़ दोगे कि, "हाय-हाय फलाना-धकड़ा या फलानी-धकडी इतना पढ़ा-लिखा हो के भी फंड-आडंबर में डूबा हुआ या हुई है"| या कहो कि "इतना बड़ा असफर-साइंटिस्ट हो के भी आकंठ आडंबर में डूबा निकला", आदि-आदि|

अब यही देख लो: मैं तो बड़ा हैरान होता था बचपन में कुछ ज्यादा ही आधुनिक अथवा पढ़ा-लिखा होने का दावा ठोंकनें वालों की सुन के, जो कहते थे कि, "अजी, मुझे तो गोबर-मूत से एलर्जी है"| कई गिरकाणी लुगाई तो चाहे उनको गोबर-मूत का काम भी नहीं करना होता था परन्तु अपने गाम वाली देवरानी-जेठानी के आगे ऊँचा थोबड़ा रखने को ही गोबर के आगे से नांक-मुंह सिकोड़ के निकलती थी| एक वक्त वह भी आया जब रिश्ते वालों ने भी ऐसी शर्तें रखी कि म्हारी छोरी गोबर-खेत का नहीं करेगी| ना और थारी छोरी साँप पकड़ेगी, ल्या देवें सपेरे वाली एक बीन और पिटारा?
और आज देख रहा हूँ कि सबसे ज्यादा यही गिरकाने गोबर-मूत में नहाते-लेटते फिर रहे हैं; और इनमें क्या साइंस पढ़े हुए, क्या आर्ट व् कॉमर्स पढ़े हुए; पट्ठे सब पटे पे चढ़ा रखे हैं फंडियों ने| फंडियों ने ऐसे ब्रैनवॉश कर दिए इनके कि इनको सारी साइंस गोबर-मूत में ही नजर आती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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