थोड़ा किसान आंदोलन के साइड-बाई एक और जो जरूरी पहलु है उस पर बात करूँगा, जो बात को किसान आंदोलन के जीवन से भी आगे जाती है|
कच्छाधारी फंडियों की 7 साल की सरकार में आज हिसार में पहली सबसे बड़ी वह कामयाबी मिली जिसने लोकंतत्र जिंदा होने की आस को फिर से खड़ा किया है| परन्तु क्या आगे की राह इतनी आसान है? नहीं है, जब तक ओबीसी व् दलित में जिस भी स्तर तक कच्छाधारी अपना प्रभाव जमा चुके हैं; उसको एक-एक किसान-मजदूर का बालक प्रचारक बन के नहीं निकालेगा या कम-से-कम इनके दोगले चेहरे व् सोच को नंगा नहीं करेगा; तब तक सफर भी अधूरा व् मंजिल भी दूर|
मुझे तो ताज्जुब होता है हर उस ओबीसी व् दलित पर जो गोलवलकर के उन बारे यह विचार कि "मैं सारी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन जो दलित, पिछड़ों व् मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी आज़ादी मुझे नहीं चाहिए|" जानकर भी इनके साथ जुड़े हुए हैं| जिनकी सोच के मूल में दलित व् ओबीसी के लिए इतनी नफरत हो, वह संघ की शाखाओं में कितना ही बराबरी का राग अलापते रहें, जातिवादी नहीं होने की पीपनी बजाते रहें परन्तु इनके मूल में तो नफरत व् जातिवाद ही है ना? अन्यथा दलित व् ओबीसी बारे ऐसी बातें करने वाला व् ऐसी सोच रखने वाला कैसे आरएसएस का 33 साल तक प्रमुख रहा? ताज्जुब है कि आज तक कोई दलित ओबीसी ऐसा नहीं दीखता, जिसने उनके बारे गोलवलकर की यह बात जानी हो और इसपे इनसे कभी सवाल किया हो? या गोलवलकर की कही इस स्टेटमेंट में सिर्फ मुसलमान शब्द देख कर इनके साथ डट जाते हो व् इसको इग्नोर कर देते हो कि मुसलमान के साथ-साथ उसने इसमें दलित व् पिछड़े को भी लपेटा हुआ है? यही समाज की मानसिक गुलामी व् पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह है|
ऐसे लोगों की यह चुप्पी चाहे जिस भी वजह से है परन्तु इसका दंड यह तो भुगत ही रहे हैं साथ-की-साथ उत्तरी भारत की बड़ी किसान कौमें भी भुगत रही हैं| क्या इनको ज्वाइन करने वाला कोई ओबीसी व् दलित यह बताएगा कि ऐसी कौनसी वजहें हैं जो यह आपको बताते या सिखाते हैं व् आप दिनरात आपके साथ खड़ी रहने वाली व् आपसी रोजगार की सूत्रधार किसान जातियों को छोड़ इनके साथ मिलके आप इन किसान जातियों के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं, जैसे कि फरवरी 2016 का 35 बनाम 1? आप नहीं भी खड़े होते होंगे तो यह इस 35 में आपका नाम तो जोड़ ही लेते हैं| और वह भी बावजूद इसके कि यही वह लोग हैं जो आपको वर्णवाद में शूद्र श्रेणी में रखते हैं, छूत-अछूत, ऊंच-नीच में बांटते हैं? आपका छुआ खाना-पीना तक पसंद नहीं करते?
यह जो जहर इन कच्छाधारी फंडियों ने समाज में नीचे-नीचे उतारा है, इसको साफ़ करने को कदम बढ़ाने होंगे| तब जा कर किसान समेत मजदूर वर्ग अपनी उस आभा-गौरव को वापिस पा सकेंगे जिस पर आ के दिन इन फंडियों के इनके polarisation व् manipulation के जहर की काली स्याही फेरी हुई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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