लेख का उद्देश्य: फंडियों के psychological war-game को समझने हेतु!
क्या कभी एक ही वर्ण के अंदर गिनी जाने वाली जातियों (गिनी जाने वाली लिखा है, क्योंकि जरूरी नहीं कि सभी जाति खुद को किसी वर्ण सिस्टम का हिस्सा मानती हों) में वर्ण-आधारित मनभेद या मतभेद जैसे कि छूत-अछूत, ऊंच-नीच, रंग-नश्ल पाए जाते हैं; नहीं; बल्कि यह सब भेद अंतर-वर्ण पाए जाते हैं| एक वर्ण तो ऐसा है जो अपने वर्ण के धर्म-कर्म-पूजा-पाठ अपने वर्ण से बाहर वाले से नहीं करवाता अपितु खुद ही करते हैं; चाहे बेशक दूसरे वर्ण वाला सर्टिफाइड शास्त्री व् क्वालिफाइड पुजारी ही क्यों ना हो| किधर हैं वो जो कहते हैं कि वर्ण तो कर्म आधारित होते हैं, तो क्यों नहीं करवाते बराबरी के सम्मान से खुद के वर्ण से बाहर वाले से अपने यहाँ के धर्म-कर्म-पूजा-पाठ? "भाईचारा" शब्द का छद्म सहारा सबसे ज्यादा यह खुद के वर्ण के पूजा-पाठ दूसरे वर्ण के शास्त्री-पुजारी से नहीं करवाने वाला ही सबसे ज्यादा लेता है| देखना यह पोस्ट पढ़ते ही रटी-रटाई कूटनीति के तहत कहेंगे कि देखो यह तो "भाईचारा" तोड़ने वाली पोस्ट है; नहीं यह तुम्हारे पाप से भरे भीतर फ़ोड़ने की पोस्ट है, भाई कह कर भी जो अलगाववाद तुम बरतते हो उस पर चोट है, जो इस समाज को दीमक की तरह चाट रहा है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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