Wednesday, 14 July 2021

फ्रांसीसी क्रांति का दिन है आज, 14 July, 1789 कुछ ऐसे ही हालात व् वजहें थी फ्रांस में जिनके चलते आज इंडिया में दिल्ली बॉर्डर्स पर किसान आंदोलन है!

आगे बढ़ने से पहले कहता चलूँ:


मुझे गर्व है कि कुदरत ने मेरी कर्म-स्थली के रूप में मेरे खाते फ्रांस लिखा; लिंगभेद जहाँ विश्व में न्यूनतम है| दरअसल औरतों को बहुत से पैमानों में ठीक उसी तरीके का आधिपत्य है जैसे सर्वखाप की थ्योरी "दादा नगर खेड़ों" की धोक-ज्योत में 100% प्रतिनिधत्व अपनी औरतों को दिया गया है; होंगी कमियां इनमें भी परन्तु ऐसी-ऐसी खूबियां ही सर्वखाप को मेरे लिए अतिप्रिय बनाती हैं और तब तो और भी जब मैं सर्वखाप की धाती का ही वंशानुगत अंश हूँ| और गर्व है इस पर भी कि इसी धाती के इन्हीं सर्वखाप-मिशल-निहंगों के लोग 21वीं सदी की "इंडियन किसान-मजदूर क्रांति" के अग्रणी हैं|

अब जानिए "फ़्रांसिसी क्रांति" के पीछे की वजहें, व् क्यों हैं आज इंडिया में वही 1789 वाले फ्रांस जैसे हालात:

तीन एस्टेट्स में बँटे हुए फ्रांस ने आज के ही दिन (14 July, 1789) पाई थी आंतरिक धार्मिक व् वर्णवाद की कटटरता से आज़ादी| सही-सही वर्णवाद तो नहीं कह सकते, परन्तु वर्गीकरण कुछ ऐसा ही था; जबकि हमारे यहाँ वाला वर्णवाद विश्व में सबसे नीचतम स्तर वाला है| खैर इस दिन को "La Fête nationale (Bastille Day) बोलते हैं यहाँ; फ्रांस का सबसे बड़ा राजकीय त्यौहार है आज| Three estates: the First Estate (clergy); the Second Estate (nobility); and the Third Estate (commoners) होती थी|

"​आंतरिक ​धार्मिक व् वर्णवाद की कटटरता" के तीन एस्टेट रुपी वर्णों में बँटा ईसाई ही ईसाई को कुचल रहा था|

पहली दो एस्टेट्स ने तीसरी एस्टेट को इतना दबाया-कुचला हुआ था, उल-जुलूल टैक्सों व् फसलों में मनमाने मूल्य देने का इतना भार थोंपा हुआ था कि किसानों को ही खाने के इतने लाले पड़े कि 14 जुलाई 1789 को फ्रेंच औरतों को खाने की दुकानों का सामान लूटना पड़ा; इस हद तक अत्याचार था प्रथम दो ऐस्टेटों का तीसरी एस्टेट पर|

दुकानों के बाद बास्तील (Bastille) की जेल (सलंगित फोटो देखिये) तोड़ना थर्ड एस्टेट का निशाना बनी, जहाँ झूठे-सच्चे देशद्रोह तक के ऐसे मुकदमे लगा के थर्ड एस्टेट के लोगों को बंदी बना के डाला गया था कि वह अपने ऊपर हुए केसों पर अपील भी नहीं कर सकते थे| जेल तोड़ी गई व् बेकसूर लोग आज़ाद कराये गए|

उसके बाद चर्चों से पादरियों को निकाल-निकाल कर काट डाला गया| पंद्रहवीं सदी के यूरोप के ब्लैक-प्लेग के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा अभियान था जब पादरियों व् उनके उल-जुलूल तथाकथित ज्ञान को समाज से खदेड़, चर्चों के भीतर सिमित कर दिया गया था| क्योंकि यह भ्रम-भय-नफरत ज्यादा फैलाते थे व् सकारात्मक सामाजिक योगदान नगण्य करते थे| कहते हैं पूरे एक साल में जा के शांत हुई थी यह क्रांति, जिसके समापन की ख़ुशी में 14 जुलाई 1790 को Fête de la Fédération मनाया गया|

यह नोट हिंदी में इसलिए लिखा कि हमारे देशवासी फ्रांस के इस दिन से यह दिशा व् समझ ले सकें कि हमें किस दिशा में जाना है|

चलते-चलते एक और विशेष: आज लोग अपने पुरखों की सर्वखाप की स्थापित इतनी महान प्रैक्टिकल "यत्र पूजयन्ते नारी, तत्र रमन्ते देवता" की लाइन की थ्योरी यानि "धोक-ज्योत में औरतों को 100% प्रतिनिधित्व" देने की सभ्यता छोड़ के धोक-ज्योत में 100% मर्द के प्रतिनिधित्व वाली फंडी थ्योरी में डूबते जा रहे हैं| और शायद यही इनके ग्रास का, पीड़ा का, 35 बनाम 1 झेलने का सबसे बड़े कारणों में से एक कारण है| अपनी लीख पे आ जाओ वापिस, लीख छोड़ के चलने वाले तो बुग्गी में जुते झोटे के ज्योते टूट जाते हैं; तुम क्या चीजों हो| या कम-से-कम अपनी थ्योरियों को सबसे ऊपर प्रचारित रखो, अंगीकृत रखो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक




No comments: