जन्म आधारित सही होती तो इसमें जन्मा कोई भी उच्च वर्ण वाला तथाकथित स्वर्ण दिहाड़ी-मजदूरी-रेहड़ी-रिक्शा पुल्लिंग आदि नहीं कर रहा होता और ना ही नीच कहे जाने वाला तथाकथित शूद्र वर्ण से कोई प्रोफेसर बनने का टैलेंट ले पैदा नहीं हो पाता|
कर्म आधारित सही होती तो स्वर्ण वर्ण में आने वाले तमाम दिहाड़ी-मजदूरी-रिक्शा पुल्लर, शूद्र कहलाते; जबकि वह आजीवन उसी वर्ण के कहलाते हैं जिसमें पैदा होते हैं|
सभ्य समाज पर सबसे बड़ा कटाक्ष व् मजाक है यह थ्योरी!
और इन तथाकथित कुलीनों का सुगलापन, हमने बड़े अच्छे से देखा है; भीड़ पड़ी में किसी का झूठा तक नहीं छोड़ते ये| घरों में मख्खियां भिनभिना रही होती हैं बाजे-बाजों के|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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