Friday, 29 October 2021

कोल्हू धोक-ज्योत (बड्डी गिरडी) व् गंडा (गन्ना) पाड़ दिवस - कात्यक मास की मौस (अमावस)!

छोटी-गिरडी व् बड्डी-गिरडी - गिरडी, खेतों में ढीम-डळे फोड़ने के काम आने वाला पत्थर का बना रोलर होता है|

कात्यक मास की मौस (अमावस) हरयाणवी-पंजाबी जमींदारी कल्चर में वह दिन होता आया है, जब किसान-जमींदार ईंख की पक चुकी खेती से सीजन का पहला गंडा पाड़, उसकी मिठास चेक करके; कोल्हू-क्लेशर लगाने का आगाज किया करते आए| कोल्हू-क्लेशर की सारी मशीनरी को धो के; कोल्हू में जुतने वाले बैलों को नहला-धो के उनके खुर-सींगों पर तेल व् गले में गांडली व् घंटियां बाँध के (बाकी गाय-भैसों को भी ऐसे ही सजाया जाता है) कोल्हू पीड़ने हेतु कोल्हू पर दिया जला के अपने फसली कारोबारी सीजन का आगाज किया करते थे| कृषक के साथ-साथ उधमी व्यापारी होने का अध्याय शुरू किया करते थे| खेतों में पके खड़े असली धन को गुड़-शक्कर बना के उसको बेचने-बिकवाने की प्रक्रिया शुरू किया करते थे तो सब जोश व् खुशियों से लबालब होते थे| यह थे थारे पुरखे जो तर्क आधारित त्यौहार मनाया करते थे|
अगर चाहते हो कि थारे बालक मिथकीय दुनिया के चमत्कारी तरीकों से मिल सकने वाली माया आदि के चक्कर में पड़ कर्म व् उधम से रहित व् पंगु ना बनें तो उनको बताईये यह अपने पुरखों के सही कांसेप्ट; जिनसे कि वास्तव में तिजोरी में माया आया करती है|
फंडियों ने नाजायज बाजारीकरण (मार्केटिंग तक समझ आता है परन्तु हर तथ्य-बात बाजार से जोड़ के चलाना, कोरी मूर्खता है) को बढ़ावा देने के चलते चेक कीजिए कि कहीं कर्म व् उधम से रहित तो नहीं हो गए?
जय यौधेय! - फूल मलिक

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