एक जमाना होता था उदारवादी जमींदारों की औरतों के मध्य:
1 - एक छोटूराम आर्य हो गए,
2 - मैं सूं हरफूल जाट जुलाणी आळा, तू कित लुकैगा तैरे लुड़ेकी मारूंगा,
3 - बाज्या हे नगाड़ा म्हारे रणजीत का (पंजाब वाले महाराजा रणजीत सिंह व् भरतपुर वाले महाराजा रणजीत सिंह, दोनों पर होता आया है यह गीत)
4 - 1857 के गदर के कई गीत
5 - दादा शाहमल तोमर के गीत
6 - दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर व्
7 - सर्वखाप की कई लड़ाइयों व् यौधेयों"
8 - जकड़ी-कात्यक-फाग्गण-साम्मण
के गीतों की भरमार होती थी| इन गीतों में हमारी औरतों की आध्यात्मिक-कल्चरल-वारफेयर सब इच्छाएं स्थाई तौर पर शांत रहती थी| इनकी भरमार होती थी तो ऋषि दयानन्द जैसे उत्तर भारत में जाने गए सबसे बड़े ब्राह्मण भी अपने ग्रंथों में जाटों को अपने से ऊपर का दर्जा देते हुए "जाट जी" व् "जाट देवता" लिखते थे; वह ब्राह्मण जो, किसी भी अन्य जाति तक के आगे-पीछे "जी" नहीं लगाया, किसी भी लेखनी में; उन्हीं ब्राह्मणों ने जाट को "जाट जी" बोला भी व् लिखा भी|
परन्तु एक जमाना यह है, जब समाज की लुगाइयों की जुबान पर अपने पिछोके व् यौधेयों के गीतों को छोड़ हर फंड-पाखंड-उल्ट-सुलट गीत धरे गए हैं व् रिफ़्ल-रिफ़्ल गाती घूम रही हैं|
इनको अहसास ही नहीं कि तुम्हारे समाज पर 35 बनाम 1 के एजेंडा करने वालों के लिए तुम्हारी जुबान पर कैसे गीत-लोकगीत हैं, यह उनके तुम पर 35 बनाम 1 रचने के सबसे बड़े पैमानों में से एक होता है| और इसमें गाम आळीयों से 2 चंदे अगाऊ शहर वाली कूदती हैं|
मेरे जैसों की तो यही लग्न है कि जिस दिन इन गीतों की दिशा मोड़ के वापिस अपने पिछोके-किनशिप पर ले आए; उस दिन 35 बनाम 1 अपने-आप छंटेगा| और यह तथ्य मन्दबुद्धियों को इतना सहज से समझ भी नहीं आता है| बहुतेरे गोबरचौथ तो यह तक तंज करते हैं कि गीत-संगीत की मंडली बनाने से क्या होगा; जरा देख तो लो झांक के हो क्या रहा है इन्हीं के बूते पे? आकंठ मर्दवाद तक डूबे बैठोगे तो तुमको अहसास भी नहीं होगा कि गेम किस स्तर तक व् किधर तक बिगाड़ा जा रहा है|
इसको वही समझेगा जो खाप-खेड़ा-खेत की सीरी-साझी फिलोसॉफी को पढ़ेगा; क्योंकि यही वो फिलोसॉफी रही जिसने तुमको ब्राह्मणों से "जाट जी" व् "जाट देवता" कुहाया-लिखवाया, वो भी बिना गली-गली भटके, घर बैठी-बैठों ने| ये आज वाली कुहा के दिखा सकती हैं क्या "जाट जी" व् "जाट देवता"? जोणसी में यह जज्बा हो, हम उनको ढूंढ रहे हैं|
ब्राह्मण का बार-बार जिक्र इसलिए किया क्योंकि ब्राह्मण का अप्पर वर्ग सबसे बड़ा मार्केटिंग एक्सपर्ट होता है और अगर वह किसी को "जाट जी" व् "जाट देवता" लिखता गाता है तो इसके अर्थ होते हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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