जब गौशालाओं के लिए धक्के से ही तूड़ी की ट्राली खाली करवाने की बात है तो सारा टंटा ही खत्म; सीधा इन साईलों को ही गौशाला बना दो; एक पंथ दो काज|
लेख का निचोड़: धर्म-दान इच्छा के होते हैं, धक्के के नहीं| क्यों नहीं बोलते यह धर्म पर प्रवचन देने वाले, कथा करने वाले व् धर्मस्थलों पर आगे खड़े-हो-हो चंदे के थाल लेने वाले? यह इनकी ड्यूटी बनती है, अगर यह इस पर चुप हैं तो समझ लो कि फिर त्रिमूर्ति "ब्रह्मा-विष्णु-महेश" के पहले दो सही काम नहीं कर रहे हैं व् आपको तीसरा बन कर तीसरी आँख खोल के इन सबको ठीक करने की जरूरत आन पड़ी हुई है| सारा सामाजिक-धार्मिक सिस्टम बिगाड़ के रख दे रहे हैं, यह फंडी लोग| क्यों चुप हो, रामायण, महाभारत से धर्म-अधर्म की शिक्षा लेने वालो? याद रखो रामायण-महाभारत में धर्म से बाहर के धर्म वालों की वजह से युद्ध नहीं हुए थे; धर्म के भीतर वालों के ही त्राहिमाम मचा देने से युद्ध हुए थे (अगर हुए भी थे तो व् तुम इनको सच मानते हो तो) व् अब वही दौर ला दिया है इन फंडियों ने| यह तुम्हें बाहर से धर्म की रक्षा की पीपनी पकड़ाए हुए हैं जबकि खतरा अंदर से यही खड़ा कर दे रहे हैं, तुम्हारे जीने-मरने का; नहीं?
विवेचना: जब किसान द्वारा बिना कहे ही अपनी श्रद्धा से सबसे ज्यादा व् इतना बड़ा दान दे-दे कर भी अगर गाय को बचाने के लिए इतनी नौबत आ रही है कि धक्के से ट्रॉलियां खाली करवाई जा रही हैं तो इनमें बैठे लोग इस चंदे से क्या 35 बनाम 1 खेल रहे हैं? आखिर लगा कहाँ रहे हैं ये इतने दान को? हिसाब लेना शुरू करो समाज इनसे, वर्ना आज गाय की आड़ ले के तूड़े की ट्राली छीनी हैं, कल को किसी और बहाने से तुम्हारे घरों की बहु-बेटियां नोचेंगे ये लीचड़ लोग; सम्भल लो वक्त रहते|
जब से होश संभाला, हर लामणी सीजन पे मेरे घर से गौशाला में तूड़े की ट्रॉलियां व् अनाज की बोरियां तो फिक्स तौर पर जाती देखता आया हूँ| कई बार तो खुद ट्रेक्टर से ट्राली गौशालाओं में खाली करवा के आया हूँ| बाकी छुटमुट की तो कभी गिनती भी नहीं की| परन्तु यह हिसार-झज्जर में धक्काशाही की खबर सुन के खून उबल रहा है| सुनी है जिले से बाहर तूड़ा नहीं ले जाने पे धारा 144 भी लगाई है? आखिर, इन लोगों ने किसान के कारोबार को समझ क्या लिया है? गाय भी है तो क्या किसान की आमदनी को इतना फॉर-गारंटीड लोगे कि उनकी ट्रॉलियों पर धक्का करोगे? किसान तो पहले से ही अपनी औकात से बाहर जा कर गायों समेत तमाम जानवरों को पाल रहा है, यह बाकी क्या कर रहे हैं? इतनी ही जानवरों को अनाज-चारे की कमी पड़ी है व् धक्के से धर्म सिर्फ किसान से ही पलवाने हैं तो बाकियों के साथ धक्काशाही क्यों नहीं? क्या ऐसे तथाकथित धर्म का ठेका बाकियों का नहीं?
सबसे पहली यह धक्काशाही/सख्ती इस बात पे लागू हो कि हर धार्मिक स्थल की आमदनी सार्वजनिक की जाए व् इसका कहाँ-कितना इस्तेमाल होता है उसका हिसाब दिया जाए व् इसमें से एक फिक्स राशि गौशालाओं के चारा खरीदने के लिए सुनिश्चित की जाए| दिलाओ किसानों को खलिहान-की-खलिहान में तूड़े का मार्किट रेट व् भर लो जितने चाहो उतने गोदाम? यह क्या तरीका हुआ कि उसको एक तो 6 महीने पे आमदनी घर आती है और तुम उसके अपने खर्चे-घर के हालात देखे बिना यूँ धक्के से लूटोगे? क्या उसके बच्चों के ब्याह-भात-पीलिए-पढ़ाई के खर्च तुम भर दे रहे हो? क्या वह अपनी हस्ती-ब्योंत के हिसाब से भी ज्यादा पहले से ही नहीं दान दे रहा है? अब दान के लिए धक्का भी करोगे तो किसान के साथ?
दूसरे नंबर पे पकड़ो, व्यापारियों को; उनके जिम्मे क्यों नहीं लगाते एक-एक गौशाला; अगर तुम्हारे धर्म के ठेकेदारों को मिलने वाले दान को डकारने के बाद भी उनका नहीं भर रहा तो? कॉर्पोरेट वालों का "CSR" का फण्ड मोड़ दो गौशालाओं के लिए? क्या दिक्कत है?
इसके बाद सरकारी कर्मचारियों, प्राइवेट कर्मचारियों पर करो यह धक्काशाही| उनके तो बेसिक सैलरी के अतिरिक्त के सारे एडिशनल बेनिफिट्स का भी आधा ही इन कामों में लगवा लो तो बहुत|
परन्तु यह कैसा धर्म है, कैसा समाज है जिसको खसने के लिए, गालियां देने के लिए तो किसान चाहिए व् दूसरी तरफ उसको मान-सम्मान से अपनी उपज भी नहीं बेचने दी जा रही?
किसान यूनियनों को चाहिए कि इन मसलों बारे कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर की भांति, अपनी हर जिला स्तर पर एक-एक सेल बनाएं व् किसानों की ऐसी समस्याओं हेतु फसल-आवक के हर सीजन पर सतर्क रहें| कब तक इस तथाकथित धर्म नाम की चादर व् फंडियों की सरकार को यूँ झेलोगे? इससे भी काम न चले तो सारी गौशालाओं की मैनेजमेंट किसान सीधा अपने हाथ में ले| हर गौशाला के दान-चंदे का हिसाब पब्लिक हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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