एशियाई प्लेटो अफ़लातून महाराजाधिराज सूरजमल महाराज की 25 दिसंबर, 1763 पुण्य तिथि पर विशेष।
आगे बढ़ने से पहले सलंगित पोस्टर में महाराजा सूरजमल की लेफ्ट साइड वाली फोटो नोट करें; खासकर उनकी मूछें!
अब कहावतें व् किस्से:
1 - "बिना जाटां किसने पाणीपत जीते!" - पेशवा जब पानीपत हारे, तब से यह कहावत चली!
2 - "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया!" - पानीपत में हार के बाद घुटनों पे बैठ जब सदाशिवराव भाऊ पेशवा रोया था, तब यह चली!
3 - " गैर-बख्त" बाहर मत जाईयो, हाऊ चिपट ज्यांगे! - खापलैंड की माओं ने अपने बेटी-बेटियों को यह कहावत कहनी शुरू कर दी थी, उनको गैर-बख्त बाहर निकलने पे! भाऊओं की वैचारिक व् व्यवहारिक अस्थिरता देख, खापलैंड की उस वक्त की औरतों ने यह कहावत चलाई थी; व् इनको हाऊ के समकक्ष बता दिया था! हरयाणवी में हाऊ, सफेद रंग का गोलाकार उड़ने वाले कीट को कहते हैं जो छूने में चिरपडा व् छूते ही सिमट के आपके हाथों-कपड़ों पर चिपट जाता है व् उल्टी हो जाने जैसी यक्क वाली भावना पैदा करता है|
4 - "दोशालों पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट गो जाट!" - यही वह तंज था, जिसके चलते सदाशिवराव भाऊ पेशवा, जब जाट महाराजा सूरजमल उनके मुताबिक अंटी में उतरते नहीं दिखे तो अपने छद्म रूप से बाहर आते हुए, अपनी वर्णवादी परवर्ती दिखाते हुए, महाराजा सूरजमल पर बिफर के बोले थे; व् इनकी मिल के लड़ने की ग्वालियर की संधि होते-होते टूट गई थी! दूसरी वजह यह थी कि दिल्ली जीतने के बाद पेशवा दिल्ली, मुग़लों के पास ही रखना चाहते थे, जाटों को नहीं देना चाहते थे!
5 - "बाज्या हे नगाड़ा, म्हारे रणजीत का"! - पंजाब वाले व् लोहागढ़ वाले दोनों रणजीतों के शौर्य के सम्मान में खापलैंड के ब्याह के बानों में यह गाया जाता है!
6 - "लेडी अंग्रेजन रोवैं कलकत्ते में" - 1804 में जब अंग्रजों ने लोहागढ़ सीज कर, 13 बार हमले किये परन्तु जीत नहीं पाये, तब यह कहावत चली थी क्योंकि जाट सेना ने अंधाधुंध अंग्रेज मारे थे!
7 - “तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्टी पड़ी है!” - महारानी किशोरी ने जब यह तंज उनके बेटे जवाहरमल को मारा था तब वह दिल्ली चढ़ाई को तैयार हुए व् दिल्ली जीती गई|
8 - "दिल्ली जाटों की बहु है" - लोहागढ़ व् सिख रियासतों ने उस दौरान दिल्ली इतनी बार जीती थी कि आम जनता यह कहावत कहने लगी कि "दिल्ली तो जाटों की बहु हो ली, जब चाहे लेने चढ़े आते हैं व् जीत के जाते हैं! ताजा उदाहरण किसान आंदोलन की जीत का भी इसी तर्ज पे रहा!
9 - गाँधी जी से पहले महाराजा सूरजमल बरतते थे, "अपराध का जवाब अपराध नहीं" की थ्योरी!
10 - "अरे आवें हो लोहागढ़ के जाट, और दिल्ली की हिला दो चूल और पाट!" - जब गुड़गाम्मा पड़ाव डाला था, गरीब की बेटी हरदौल को मुग़ल-कैद से छुड़वाने के लिए!
11 - भारतीय इतिहास का इकलौता महाराजा जिसका खजांची एक रविदासी दलित हुआ, सेनापति गुज्जर हुआ।
12 - "जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो ले" - जब महाराजा सूरजमल मारे गए तो मुग़लों को यकीं ही नहीं हुआ व् यह बात कही!
13 - महाराजा सूरजमल धर्मनिरपेक्ष इतने धर्मनिरपेक्ष थे कि एक पाले मस्जिद बनवाते थे तो दूसरे पाले मंदिर|
इनके अतिरिक्त, कई सारी छंद-चौपाईयाँ सलंगित पोस्टर में पढ़ें!
जय यौधेय! - फूल मलिक