Saturday, 24 December 2022

वह कहावतें, लोक्कोक्तियाँ व् छंद-चौपाईयाँ जो महाराजा सूरजमल व् उनके लोहागढ़ साम्राज्य के चलते मिली!

एशियाई प्लेटो अफ़लातून महाराजाधिराज सूरजमल महाराज की 25 दिसंबर, 1763 पुण्य तिथि पर विशेष। 


आगे बढ़ने से पहले सलंगित पोस्टर में महाराजा सूरजमल की लेफ्ट साइड वाली फोटो नोट करें; खासकर उनकी मूछें! 

अब कहावतें व् किस्से:

1 - "बिना जाटां किसने पाणीपत जीते!" - पेशवा जब पानीपत हारे, तब से यह कहावत चली!

2 - "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया!" - पानीपत में हार के बाद घुटनों पे बैठ जब सदाशिवराव भाऊ पेशवा रोया था, तब यह चली!

3 - " गैर-बख्त" बाहर मत जाईयो, हाऊ चिपट ज्यांगे! - खापलैंड की माओं ने अपने बेटी-बेटियों को यह कहावत कहनी शुरू कर दी थी, उनको गैर-बख्त बाहर निकलने पे! भाऊओं की वैचारिक व् व्यवहारिक अस्थिरता देख, खापलैंड की उस वक्त की औरतों ने यह कहावत चलाई थी; व् इनको हाऊ के समकक्ष बता दिया था! हरयाणवी में हाऊ, सफेद रंग का गोलाकार उड़ने वाले कीट को कहते हैं जो छूने में चिरपडा व् छूते ही सिमट के आपके हाथों-कपड़ों पर चिपट जाता है व् उल्टी हो जाने जैसी यक्क वाली भावना पैदा करता है|  

4 - "दोशालों पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट गो जाट!" - यही वह तंज था, जिसके चलते सदाशिवराव भाऊ पेशवा, जब जाट महाराजा सूरजमल उनके मुताबिक अंटी में उतरते नहीं दिखे तो अपने छद्म रूप से बाहर आते हुए, अपनी वर्णवादी परवर्ती दिखाते हुए, महाराजा सूरजमल पर बिफर के बोले थे; व् इनकी मिल के लड़ने की ग्वालियर की संधि होते-होते टूट गई थी! दूसरी वजह यह थी कि दिल्ली जीतने के बाद पेशवा दिल्ली, मुग़लों के पास ही रखना चाहते थे, जाटों को नहीं देना चाहते थे!

5 - "बाज्या हे नगाड़ा, म्हारे रणजीत का"! - पंजाब वाले व् लोहागढ़ वाले दोनों रणजीतों के शौर्य के सम्मान में खापलैंड के ब्याह के बानों में यह गाया जाता है! 

6 - "लेडी अंग्रेजन रोवैं कलकत्ते में" - 1804 में जब अंग्रजों ने लोहागढ़ सीज कर, 13 बार हमले किये परन्तु जीत नहीं पाये, तब यह कहावत चली थी क्योंकि जाट सेना ने अंधाधुंध अंग्रेज मारे थे!

7 - “तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्टी पड़ी है!” - महारानी किशोरी ने जब यह तंज उनके बेटे जवाहरमल को मारा था तब वह दिल्ली चढ़ाई को तैयार हुए व् दिल्ली जीती गई| 

8 - "दिल्ली जाटों की बहु है" - लोहागढ़ व् सिख रियासतों ने उस दौरान दिल्ली इतनी बार जीती थी कि आम जनता यह कहावत कहने लगी कि "दिल्ली तो जाटों की बहु हो ली, जब चाहे लेने चढ़े आते हैं व् जीत के जाते हैं! ताजा उदाहरण किसान आंदोलन की जीत का भी इसी तर्ज पे रहा!

9 - गाँधी जी से पहले महाराजा सूरजमल बरतते थे, "अपराध का जवाब अपराध नहीं" की थ्योरी!

10 -  "अरे आवें हो लोहागढ़ के जाट, और दिल्ली की हिला दो चूल और पाट!" - जब गुड़गाम्मा पड़ाव डाला था, गरीब की बेटी हरदौल को मुग़ल-कैद से छुड़वाने के लिए!

11 - भारतीय इतिहास का इकलौता महाराजा जिसका खजांची एक रविदासी दलित हुआ, सेनापति गुज्जर हुआ।

12 -  "जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो ले" - जब महाराजा सूरजमल मारे गए तो मुग़लों को यकीं ही नहीं हुआ व् यह बात कही!

13 - महाराजा सूरजमल धर्मनिरपेक्ष इतने धर्मनिरपेक्ष थे कि एक पाले मस्जिद बनवाते थे तो दूसरे पाले मंदिर|


इनके अतिरिक्त, कई सारी छंद-चौपाईयाँ सलंगित पोस्टर में पढ़ें!


जय यौधेय! - फूल मलिक





Saturday, 10 December 2022

क्या 2024 लोकसभा चुनाव मोदी-शाह की जोड़ी आरएसएस को ऐसे ही दरकिनार करके लड़ेगी जैसे गुजरात लड़ा व् जीता?

सबसे पहले गुजरात जीतने के फैक्टर्स:

1) JNU में "ब्राह्मण-बनिया देश छोडो" नारों के पोस्टर्स लगवाना मोदी-शाह का प्लान था; इससे इनसे नाराज चल रहा यह तबका थोड़ा घबराया व् काफी हद तक इनसे आन जुड़ा!
2) आप पार्टी को वोट कटुवा के तौर पर ही गुजरात लाया गया था, जिसने कांग्रेस के 13% वोट्स छीन लिए; बदले में आप को MCD दी गई है (परन्तु इसका कण्ट्रोल भी काफी हद तक मोदी-शाह के हाथ में ही रहना है) व् गुजरात में 6% वोट्स शेयर का क्राइटेरिया पार करवा 13% करवा के इनको नेशनल पार्टी का दर्जा दिलवाने में मदद हुई है|
3) कांग्रेस का उग्र हो के गुजरात में ना उतरना, दलित-ओबीसी-मुस्लिम वोटर्स में विश्वास नहीं भर पाया व् वह काफी हद तक वोट देने ही नहीं निकले! इस अविश्वास को अमित शाह के "2002 दंगों बारे" आचार सहिंता तोड़ते हुए भड़काऊ बोलना और बढ़ा गया| कांग्रेस को इस बयान को तुरंत काउंटर करना था पर नहीं किया|
4) वोटिंग के दिन वोटिंग के बाद अचार सहिंता तोड़ते हुए मोदी का 2.5 घंटे का मार्चपास्ट वह भी टीवी से लाइव|
5) मोदी-शाह द्वारा आरएसएस को खुलकर दरकिनार करना, गुजरात में उन लोगों को रास आया जो हिन्दू तो हैं परन्तु आरएसएस को पसंद नहीं करते| साथ ही जैन तबका इसमें सबसे सक्रिय था| आरएसएस के लिए खतरे की घंटी है उसको ऐसे खुलकर दरकिनार किया जाना| ऊपर से मीडिया में व् भाजपा के पोलिटिकल गलियारों में कहीं भी आरएसएस के योगदान का जिक्र ना होना| क्योंकि मोदी-शाह की दर्किनारी के बाद भी "इनको नहीं तो किनको" के सूत्र पर आरएसएस ने वोट्स तो बीजेपी को ही डलवाये हैं|

2024 की शुरुवात जैन-युग की प्रारम्भ:
आरएसएस अब मोदी-शाह समेत जैनी लॉबी के उस दूरगामी प्लान में दरकिनार करने का सबसे मजबूत ध्येय बन चुका है जिसको "काबू सच्चा, झगड़ा झूठा" कहते हैं| जैनी, एक के बाद एक आरएसएस यानि सनातनियों (हिन्दू धर्म में मुख्यत: दो लॉबी तो हैं ही सनातनी व् आर्य समाजी) की मेहनत चट करते जा रहे हैं; जिससे अब वह एजेंडा साफ़ देखा जा रहा जो 2024 में जीत के बाद "जैन युग" से प्रारम्भ होगा व् सनातनी बुरी तरह से इस दिमागी लड़ाई में जैनियों से मात खाने जा रहे हैं|

हरयाणा की राह व् कांग्रेस:
"राहुल-गाँधी जी" की यात्रा को भुनाने का वक्त व् मौका दोनों हैं परन्तु अगर मुद्दों के साथ भुनाई गई तो, तो ही फायदा देगी| वरना गुजरात की तरह खाली बाई-पास दे दिया तो ज्यादा कुछ हासिल होगा इससे, इसमें संदेह है (गुजरात में कहाँ हुआ)| कांग्रेस को इस यात्रा के हरयाणा में एंटर होने से ले और आगामी लोकसभा व् विधानसभा चुनावों तक हर ब्लॉक लेवल तक अपना एजेंडा फिट करके उसको इतना पकाना होगा कि मोदी-शाह की तिगड़मबाजियां मंद पड़ जाएँ| इस यात्रा के तुरंत बाद ही बूथ-मैनेजमेंट, बूथ-कैडर ट्रेनिंग के निरंतर अभियान चलाने होंगे! बीजेपी-आरएसएस के भीतर के असंतोष बाहर लाने होंगे, मीडिया, सोशल मीडिया में उनपे चर्चे करवाने होंगे, ताकि इनका मानसिक बल तोडा जा सके! 35 बनाम 1 पर नब्ज टटोलनी होगी समाज की, जो कि अभी शांत है, परन्तु एलेक्शंस आते ही, बीजेपी इसको ऐसे उठाएगी, जैसे वेस्ट यूपी में किसान आंदोलन के बावजूद भी "मुस्लिम भय" उठाया व् उसके चलते इनसे नाराज होते हुए भी कुछ किसान बीजेपी को ही वोट दे गए; यह यही हरयाणा में करने वाले हैं , ऐन इलेक्शन के वक्त इस भूत को फिर भुनाने की कोशिश करेंगे| इससे निबटने के लिए लोगों की नब्ज टटोल के रखना होगा उनको मानसिक तौर पर उनके रोजगार-महंगाई-भलाई-हित-हितार्थ के मुद्दों से खिसक के इस नफरत की लाइन पे जा के वोट करने से रोकना होगा; जो बीजेपी ने भुनानी ही भुनानी है| असर कितना करेगी, कांग्रेस की सजगता व् ग्राउंड वर्क पर निर्भर करेगा|

फूल मलिक