>-1819 से पहले तक शूद्र पुरुष की शादी के बाद उसकी दुल्हन पहले तीन दिन तक ब्राह्मण शुद्धीकरण के नाम पर अपने पास रखता था,अंग्रेजों ने इस निर्लज्जता को 1819 में समाप्त किया,
>- कुछ सनातनी समुदायों(ब्राह्मण, राजपूत आदि)में पति के मरने पर उसकी चिता पर उसकी पत्नी को सती होने के नाम पर स्वमेव ही आत्महत्या करनी पड़ती थी।अंग्रेजों ने इस क्रूरता को1829 में बंध कराया,
>- धार्मिक आयोजनों पर सवर्ण नर बली के नाम पर शूद्रों की नर बलि दी जाती थी, इस क्रूरता को अंग्रेजों ने 1830 में प्रतिबंध कराया,
>- शूद्रों(दलित, पिछड़ों) को सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठने का अधिकार नही था, अंग्रेजों ने 1835 में ये अधिकार दिया।
>- सार्वजनिक भवन और पुल बनाने पर चरक प्रथा के नाम पर शूद्रों की नर बलि दी जाती थी, यह नीचता अंग्रेजों ने 1863 में बंद कराई,
>- त्रावणकोर(केरल)के ब्राह्मण राजा ने दलित महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में खुले स्तन जाना अनिवार्य था, यदि कोई दलित महिला स्तन ढकती थी तो टैक्स देने पड़ता था।
दलित महिला नागेली टैक्स देने के बदले में राजा के लठैतों को अपने दोनों स्तन काटकर दिये,इस कारण अधिक खून रिसाव से मृत्यु होने के दर्दनाक हादसे के बाद अंग्रेजों ने 26 जुलाई 1859 को दलित औरतों को स्तन ढकने का अधिकार दिया।
>- ब्राह्मण जजों की न्यायप्रियता पर प्रश्न खड़े होने पर अंग्रेजों ने 1919 में ब्राह्मणों को जज बनने पर रोक लगा दी थी,
>- ब्राह्मणों का प्रशासनिक सेवाओं में 100% आरक्षण/कब्ज़ा देखकर अंग्रेजों ने इनका 2.5% आरक्षण कर दिया था।
>- शूद्र समाज की जवान लड़कियों को मंदिर देव दासी के रूप रखी जाती थी,मंदिर के मठाधीश इनके साथ अय्याशी करते थे,इनकी अय्याशी से जो बच्चे पैदा होते थे,उन्हें हरि(ईश्वर) के भोग से उत्पन्न संतान बता उन्हें हरि के जन कहते थे,इसी शब्द से हरिजन जाति बनाई गई। इस नारि अपमान को भी अंग्रेजों बंद कराया था।
अंग्रेजों के अलावा मेरी क़ौम के महान पुरखों के साथ अन्य क़ौमों के महा पुरूषों ने धार्मिक,आर्थिक और राजसिक व्यवस्था के मालिकों की नीचताओं पर अंकुश लगवाया था।
सनातन/वैदिक/हिंदू आदि के लंबरदारी करने वालों पर घमंड करने वालों मैंने ये बहुत थोड़ा सा ही लिखा है।इनकी ऐसी नीचताओं के हज़ारों क्रूर से क्रूर प्रसंगों से अतीत और वर्तमान भरा पड़ा है।
इनकी इन्हीं नीचताओं के कारण भारत भूमि, धर्म,नारि, सभ्यता और सम्पदा को आक्रांताओं ने लूटा भी और हज़ार वर्षों से अधिक समय तक ग़ुलाम भी रखा था।
इन आक्रांताओं से संघर्ष अगर किसी ने किया तो उनमें सर्वाधिक मेरी नस्ल के पुरखों ने किया था और इनसे मुक्ति में बलिदान भी 94%मेरी नस्ल ने दिया है।
🙏जितेंद्र सहरावत🙏
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