आलोचना नहीं कर रहा हूँ, अपितु एक जीता-जगता उदाहरण दिखा रहा हूँ; लेख को आगे पढ़ने से पहले सलंगित वीडियो देखिए| कई अल्पमति, इन बातों को इसलिए नकार देते हैं क्योंकि यह चीजें, यह बातें उनके यहाँ नहीं पनप पाई तो इनको बाकी कहाँ-कहाँ पनपी हैं उससे मतलब नहीं| जबकि इस धर्म की अंत दशा व् दिशा यही है|
इनको लगता है कि हमें क्या, हमारी औरतों के साथ तो ऐसा नहीं होता ना; शूद्रों यानि दलित-ओबीसी वालियों के साथ होता है, जैसा कि इस वीडियो में बताया गया है; तो हमें क्या पड़ी? मानवता के ऐसे गंभीर मसलों पर भी जो तुम्हें, "मुझे क्या पड़ी की फीलिंग देता हो, वह धर्म नहीं होता; वह आर्गनाइज्ड राजसत्ता पॉलिटिक्स होती है; जिससे तुम तभी बाहर आओगे जब इन मुद्दों को अपना मुद्दा मानोगे|
मान लिया उदारवादी जमींदारी की खाप व्यवस्था ने यह चीजें नार्थ-वेस्ट इंडिया में ज्यादा नहीं फैलने दी सदियों से; परन्तु क्या तुम वह मानदंड तक भी आज के दिन बरकरार करके चल पा रहे हो, जिनके चलते यह फंडी तुम्हारे यहाँ इस हद तक का गंद नहीं फैला पाए, जितना इस वीडियो में दिखाया गया है? शायद नहीं, बल्कि फंडी इस मानसिकता को तुम्हारे यहाँ भी अब घुसा पाने में कामयाब होते जा रहे हैं| तुम शायद इस स्तर के स्वार्थी भी हो कि तुम्हें तुम्हारी पीढ़ी के आगे होते यह नहीं दिखेगा तो तुम नहीं मानोगे; परन्तु यकीन करो तुम्हारी यही सोच तुम्हारी अगली पीढ़ियों को इसी चंगुल में फंसा के जा रही है, जहाँ कल को तुम्हारी बहु-बेटियों को भी देवदासियां बना के यूँ ही बर्बाद किया जायेगा; ज्यूँ यह कर्नाटक की कहानी| साउथ इंडिया वाले इसको झेल चुके हैं, इसीलिए सनातन को डेंगू बोलते हैं; तुम खापों की वजह से इससे बचे रहे हो, इसलिए इस मर्म को अभी समझ नहीं पा रहे हो या समझना नहीं चाहते हो; परन्तु इतना भी बेफिक्रे मत बनो; कबूतर, बिल्ली की नजर में है; बिल्ली यानि फंडी और कबूतर यानि तुम|
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